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कितना मनोरम दिखता है
प्रकृति का यह रूप।
मानों मेरे मन के
सारे भाव चुराकर
पसर गई है
यहां अनेक रूपों में।
कभी हृदय
पाषाण-सा हो जाता है
कभी भाव
तरल-तरल बहकते हैं।
लहरें मानों
कसमसाती हैं
बहकती हैं
किनारों से टकराती हैं
और लौटकर
मानों
मन मसोसकर रह जाती हैं।
जल अपनी तरलता से
प्रयासरत रहता है
धीरे-धीरे
पाषाणों को आकार देने के लिए।
हरी दूब की कोमलता में
पाषाण कटु भावों-से
नेह-से पिघलने लगते हैं
एक छाया मानों सान्त्वना
के भाव देती है
और मन हर्षित हो उठता है।
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मैमोरैण्डम
हर डायरी के
प्रारम्भ और अन्त में
जड़े कुछ पृष्ठ पर
जिन पर लिखा होता है
‘मैमोरैण्डम’ अर्थात् स्मरणीय।
मैमोरी के लिए
स्मरण रखने के लिए है क्या ?
वे बीते क्षण
जो बीतकर
या तो बीत गये हैं
या बीतकर भी
अनबीते रह गये हैं।
अथवा वे आने वाले क्षण
जो या तो आये ही नहीं
या बिना आये ही चले गये हैं।
बीत गये क्षण: एक व्यर्थता -
बडे़-बड़े विद्वानों ने कहा है
भूत को मत देखो
भविष्य में जिओ।
भविष्य: एक अनबूझ पहेली
उपदेश मिलता है
आने वाले कल की
चिन्ता क्यों करते हो
आज को तो जी लो।
और आज !
आज तो आज है
उसे क्या याद करें।
तो फिर मैमोरैण्डम फाड़ डालें।
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तिरंगे का एहसास
जब हम दोनों
साथ खड़े होते हैं
तब
तिरंगे का
एहसास होता है।
केसरिया
सफ़ेद और हरा
मानों
साथ-साथ चलते हैं
बाहों में बाहें डाले।
चलो, यूँ ही
आगे बढ़ते हैं
अपने इस मैत्री-भाव को
अमर करते हैं।
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जीवन महकता है
जीवन महकता है
गुलाब-सा
जब मनमीत मिलता है
अपने ख्वाब-सा
रंग भरे
महकते फूल
जीवन में आस देते हैं
एक विश्वास देते हैं
अपनेपन का आभास देते हैं।
सूखेंगे कभी ज़रूर
सूखने देना।
पत्ती –पत्ती सहेजना
यादों की, वादों की
मधुर-मधुर भावों से
जीवन-भर यूं ही मन हेलना ।
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चूड़ियां उतार दी मैंने
चूड़ियां उतार दी मैंने, सब कहते हैं पहनने वाली नारी अबला होती है
यह भी कि प्रदर्शन-सजावट के पीछे भागती नारी कहां सबला होती है
न जाने कितनी कहावतें, मुहावरे बुन दिये इस समाज ने हमारे लिये
सहज साज-श्रृंगार भी यहां न जाने क्यों बस उपहास की बात होती है
चूड़ी की हर खनक में अलग भाव होते हैं,कभी आंसू, कभी हास होते हैं
कभी न समझ सका कोई, यहां तो नारी की हर बात उपहास होती है
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जीवन यूं ही करवट लेता है
गुब्बारों में अरमानों की हवा भरी है कुछ खाली बन्द पड़े हैं
कुछ में रंग-बिरंगी आशाएं हैं, कुछ में रंगीन जल भरे हैं
कब हवा का रूख बदलेगा, हाथों से छूटेंगे फूटेंगे, पिचकेंगे
जीवन यूं ही करवट लेता है, ये क्यों न हम समझ सके हैं
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शाम
हाइकु
शाम सुहानी
चंद्रमा की चांदनी
मन बहका
-
शाम सुहानी
पुष्प महक उठे
रंग बिखरे
-
किससे कहूं
रंगीन हुआ मन
शाम सुहानी
-
शाम की बात
सूरज डूब रहा
मन में तारे
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एक उपहार है ज़िन्दगी
हर रोज़ एक नई कथा पढ़ाती है जिन्दगी
हर दिन एक नई आस लाती है ज़िन्दगी
कभी हंसाती-रूलाती-जताती है ज़िन्दगी
हर दिन एक नई राह दिखाती है ज़िन्दगी
कदम दर कदम नई आस दिलाती है जिन्दगी
घनघोर घटाओं में भी धूप दिखाती है जिन्दगी
कभी बादलों में कड़कती-चमकती-सी है ज़िन्दगी
कुछ पाने के लिए निरन्तर भगाती है जिन्दगी
भोर से शाम तक देखो जगमगाती है जिन्दगी
झड़ी में भी कभी-कभी धूप दिखाती है जिन्दगी
कभी आशाओं का सागर लहराती है जिन्दगी
और कभी कभी खूब धमकाती भी है जिन्दगी
तब दांव पर पूरी लगानी पड़ती है जिन्दगी
यूं ही तो नहीं आकाश दिला देती है जिन्दगी
पर कुल मिलाकर देखें तो एक उपहार है ज़िन्दगी
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कोई तो आयेगा
भावनाओं का वेग
किसी त्वरित नदी की तरह
अविरल गति से
सीमाओं को तोड़ता
तीर से टकराता
कंकड़-पत्थर से जूझता
इक आस में
कोई तो आयेगा
थाम लेगा गति
सहज-सहज।
.
जीवन बीता जाता है
इसी प्रतीक्षा में
और कितनी प्रतीक्षा
और कितना धैर्य !!!!
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हमें भी मुस्काराना आ गया
फूलों को खिलते देख हमें भी मुस्काराना आ गया
गरजते बादलों को सुन हमें भी जताना आ गया
बहती नदी की धार ने सिखाया हमें चलते जाना
उंचे पर्वतों को देख हमें भी पांव जमाना आ गया
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जीवन पथ पर
बिन नाविक मैं बहती जाती
अपनी छाया से कहती जाती
तुम साथ चलो या न हो कोई
जीवन पथ पर बढ़ती जाती