वास्तविकता से परे

किसका संधान तू करने चली

फूलों से तेरी कमान सजी

पर्वतों पर तू दूर खड़ी

अकेली ही अकेली

किस युद्ध में तू तनी

कौन-सा अभ्यास है

क्या यह प्रयास है

इस तरह तू क्यों है सजी

वास्तविकता से परे

तेरी यह रूप सज्जा

पल्लू उड़ रहा, सम्हाल

बाजूबंद, करघनी, गजरा

मांगटीका लगाकर यूँ कैसे खड़ी

धीरज से कमान तान

आगे-पीछे  देख-परख

सम्हल कर रख कदम

आगे खाई है सामने पहाड़

अब गिरी, अब गिरी, तब गिरी

या तो वेश बदल या लौट चल।