प्रकृति की ये कलाएँ

अपने ही रूप को देखो निहार रही ये लताएँ

मन को मुदित कर रहीं मनमोहक फ़िज़ाएँ

जल-थल-गगन मौन बैठे हो रहे आनन्दित

हर रोज़ नई कथा लिखती हैं इनकी अदाएँ

कौन समझ पाया है प्रकृति की ये कलाएँ