आगमन बसन्त का

बसन्त

यूं ही नहीं आ जाता

कि वर्ष बदले,

तिथि बदली,

दिन बदले

और लीजिए

आ गया बसन्त।

 

मन के उपवन में

सुमधुर भावों की रिमझिम

कहीं धूप, कहीं छाया निखरी।

पल्ल्व मचल रहे

ओस की बूंदे बिखरीं,

कलियां फूल बनीं

रंगों में रंग खिले।

कहीं कोयल कूकी,

कुछ खुशबू

कुछ रंगों के संग

महका-बहका मन