आपको चाहिए क्या पारिजात वृक्ष

कृष्ण के स्वर्ग पहुंचने से पूर्व

इन्द्र आये थे मेरे पास

इस आग्रह के साथ

कि स्वीकार कर लूं मैं

पारिजात वृक्ष, पुष्पित पल्लवित

जो मेरी सब कामनाएं पूर्ण करेगा।

स्वर्ग के लिए प्रस्थान करते समय

कृष्ण ने भी पूछा था मुझसे

किन्तु दोनों का ही

आग्रह अस्वीकार कर दिया था मैंने।

लौटा दिया था ससम्मान।

बात बड़ी नहीं, छोटी-सी है।

पारिजात आ जाएगा

तब जीवन रस ही चुक जायेगा।

सब भाव मिट जायेंगे,

शेष जीवन व्यर्थ हो जायेगा।

 

जब चाहत न होगी, आहत न होगी

न टूटेगा दिल, न कोई दिलासा देगा

न श्रम का स्वेद होगा

न मोतियों सी बूंदे दमकेंगी भाल पर

न सरस-विरस होगा

न लेन-देन की आशाएं-निराशाएं

न कोई उमंग-उल्लास

न कभी घटाएं तो न कभी बरसात

रूठना-मनाना, लेना-दिलाना

जब कभी तरसता है मन

तब आशाओं से सरस होता है मन

और जब पूरी होने लगती हैं आशाएं-आकांक्षाएं

तब

पारिजात पुष्पों के रस से भी अधिक

सरस-सरस होता है मन।

मगन-मगन होता है मन।

बस

बात बड़ी नहीं, छोटी-सी है।

चाहत बड़ी नहीं, छोटी-सी है।