पूछूं चांद से

अक्सर मन करता है

पूछूं चांद से

औरों से मिली रोशनी में

चमकने में

यूं कैसे दम भरता है।

मत गरूर कर

कि कोई पूजता है,

कोई गणनाएं करता है।

शायद इसीलिए

दाग लिये घूमता है,

इतना घटता-बढ़ता है,

कभी अमावस

तो कभी ग्रहण लगता है।