वो प्यारी-सी एक चिड़िया

वो प्यारी-सी एक चिड़िया थी

जो याद बहुत आती है।

चुपके-चुपके टूटी खिड़की

या खुले द्वार से

घर के अन्दर तक

चली आती थी।

छत के किसी कोने में

जाने कब घरौंदा बना

अपना अधिकार जमा जाती थी।

घास के तिनकों से

घर भर में

उधम मचाती

नाच-नाच जाती थी।

पीने के पानी में

सूखी रोटी

भिगो-भिगोकर खाती थी।

बच्चे उसके चूं-चूं करते

दिन-भर शोर मचाते

उनको दाना-पानी देकर

जाने कहाँ उड़ जाती थी।

सांझ ढले लौटकर

बच्चों संग सो जाती थी।

किन्तु जाने कब

बच्चों संग उड़ गई वो

घर सूना-सूना हो गया।

तिनके झरते-झरते

घर भर में फैले थे कुछ दिन,

याद दिलाते थे चिड़िया की।

 

मौसम बदला

एक दिन फिर चहकी चिड़िया

नये तिनके, नया जीवन

फिर लगी घरौंदा बनाने।

लेकर आई नवजीवन की आस।