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मेरा अपना मन है।
बताने की बात तो नहीं,
फिर भी मैंने सोचा
आपको बता दूं
कि मेरा अपना मन है।
आपको अच्छा लगे
या बुरा,
आज,
मैंने आपको बताना
ज़रूरी समझा कि
मेरा अपना मन है।
यह बताना
इसलिए भी ज़रूरी समझा
कि मैं जैसी भी हूॅं,
अच्छी या बुरी,
अपने लिए हूॅं
क्योंकि मेरा अपना मन है।
यह बताना
इसलिए भी
ज़रूरी हो गया था
कि मेरा अपना मन है,
कि मैं अपनी कमियाॅं
जानती हूॅं
नहीं जानना चाहती आपसे
क्योंकि मेरा अपना मन है।
जैसी भी हूॅं, जो भी हूॅं
अपने जैसी हूॅं,
क्योंकि मेरा अपना मन है।
चाहती हू
किसी की कमियाॅं न देखूॅं
बस अपनी कमियाॅं निकालती रहूॅं
क्योंकि मेरा अपना मन है।
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पत्थरों में भगवान ढूंढते हैं
इंसान बनते नहीं,
पत्थर गढ़ते हैं,
भाव संवरते नहीं
पूजा करते हैं,
इंसानियत निभाते नहीं
निर्माण की बात करते हैं।
सिर ढकने को
छत दे सकते नहीं
आकाश छूती
मूर्तियों की बात करते हैं।
पत्थरों में भगवान
ढूंढते हैं
अपने भीतर की इंसानियत
को मारते हैं।
* * * *
अपने भीतर
एक विध्वंस करके देख।
कुछ पुराना तोड़
कुछ नया बनाकर देख।
इंसानियत को
इंसानियत से जोड़कर देख।
पतझड़ में सावन की आस कर।
बादलों में
सतरंगी आभा की तलाश कर।
झड़ते पत्तों में
नवीन पंखुरियों की आस देख।
कुछ आप बदल
कुछ दूसरों से आस देख।
बस एक बार
अपने भीतर की कुण्ठाओं,
वर्जनाओं, मृत मान्यताओं को
तोड़ दे
समय की पुकार सुन
अपने को बदलने का साहस गुन।
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खड़ी करनी है मज़बूत इमारत, प्यादों पर भरोसा कीजिए
जोकर, इक्का, बेगम, गुलाम, सबकी चाल चलनी आनी चाहिए
सारी चालें हैं वज़ीर के हाथ, इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए
मुहावरों पर मत जाना कि गिरते देखे हैं ताश के महल भरभरा कर
“गर खड़ी करनी है मज़बूत इमारत, प्यादों पर भरोसा करना चाहिए
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पुरानी कथाओं से सीख नहीं लेते
पता नहीं
कब हम इन
कथा-कहानियों से
बाहर निकलेंगे।
पता नहीं
कब हम वर्तमान की
कड़वी सच्चाईयों से
अपना नाता जोड़ेंगे।
पुरानी कथा-कहानियों को
चबा-चबाकर,
चबा-चबाकर खाते हैं,
और आज की समस्याओं से
नाता तोड़ जाते हैं।
प्रभु से प्रेम की धार बहाईये,
किन्तु उनके मोह के साथ
मानवता का नाता भी जोड़िए।
पुस्तकों में दबी,
कहानियों को ढूंढ लेते हैं,
क्यों उनके बल पर
जाति और गरीबी की
बात उठाते हैं।
राम हों या कृष्ण
सबको पूजिए,
पर उनके नाम से आज
बेमतलब की बातें मत जोड़िए।
उनकी कहानियों से
सीख नहीं लेते,
किसी के लिए कुछ
नया नहीं सोचते,
बस, चबा-चबाकर,
चबा-चबाकर,
आज की समस्याओं से
मुंह मोड़ जाते हैं।
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मन में बस सम्बल रखना
चिड़िया के बच्चे सी
उतरी थी मेरे आंगन में।
दुबकी, सहमी सी रहती थी
मेरे आंचल में।
चिड़िया सी चीं-चीं करती
दिन भर
घर-भर में रौनक भरती।
फिर कब पंख उगे
उड़ना सिखलाया तुझको।
धीरे धीरे भरना पग
समझाया तुझको।
दुर्गम हैं राहें,
तपती धरती है,
कंकड़ पत्थर बिखरे हैं,
कदम सम्हलकर रखना
बतलाया तुझको।
हाथ छोड़कर तेरा
पीछे हटती हूं।
अब तुझको
अपने ही दम पर
है आगे बढ़ना।
हिम्मत रखना।
डरना मत ।
जब मन में कुछ भ्रम हो
तो आंखें बन्द कर
करना याद मुझे।
कहीं नहीं जाती हूं
बस तेरे पीछे आती हूं।
मन में बस इतना ही
सम्बल रखना।
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दर्दे दिल के निशान
काश! मेरा मन रेत का कोई बसेरा होता।
सागर तट पर बिखरे कणों का घनेरा होता।
दर्दे दिल के निशान मिटा देतीं लहरें, हवाएं,
सागर तल से उगता हर नया सवेरा होता।
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गुरु शिष्य परम्परा
समय के साथ गुरु और शिष्य दोनों की धारणा बदली है और हम इस बदली हुई धारणा एवं व्यवस्था में ही जी रहे हैं। परन्तु पता नहीं क्यों हमें पिष्ट-पेषण में आनन्द मिलता है। आज के गुरुओं की बुराई, शिष्यों के प्रति अनादर भाव हमारी प्रकृति बन गया है। प्राचीन गुरु शिष्य परम्परा निःसंदेह अति उत्तम थी किन्तु काल परिवर्तन के साथ वर्तमान में वह सम्भव ही नहीं है। जो आज है हम उस पर विचार नहीं करते कि उसे और अच्छा कैसे बनाया जा सकता है, प्राचीनता के निरर्थक मोह में वर्तमान को कोसना हमारी आदत बन चुका है। हमारे प्राचीन साहित्य से अच्छा कुछ नहीं, किन्तु वर्तमान में मिल रही शिक्षा का भी अपना महत्व है उसे हम नकार नहीं सकते। समयानुसार आज के गुरु भी समर्पित हैं और शिष्य भी, भेद तो प्राचीन काल में भी रहा है।
तो चलिए आज से वर्तमान में जीने का , उसे समझने का, उसे और बेहतर बनाने का प्रयास करें और पिछले को स्मरण अवश्य रखें, उसका पूरा सम्मान करें किन्तु वर्तमान के सम्मान के साथ।
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मुहब्बतों की कहानियां
मुझे इश्तहार सी लगती हैं
ये मुहब्बतों की कहानियां
कृत्रिम सजावट के साथ
बनठन कर खिंचे चित्र
आँखों तक खिंची
लम्बी मुस्कान
हाथों में यूँ हाथ
मानों
कहीं छोड़कर न भाग जाये।
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तरुणी की तरुणाई
मौसम की तरुणाई से मन-मग्न हुई तरुणी
बादलों की अंगड़ाई से मन-भीग गई तरूणी
चिड़िया चहकी, कोयल कूकी, मोर बोले मधुर
मन मधुर-मधुर, प्रेम-रस में डूब गई तरुणी
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मैं और मेरी बिल्लो रानी
छुप्पा छुप्पी खेल रहे थे
कहां गये सब साथी
हम यहां बैठे रह गये
किसने मारी भांजी
शाम ढली सब घर भागे
तू मत डर बिल्लो रानी
मेरे पीछे आजा
मैं हूं आगे आगे
दूध मलाई रोटी दूंगी
मां मंदिर तो जा ले।
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यादें बिखर जाती हैं
पन्ने खुल जाते हैं
शब्द मिट जाते हैं
फूल झर जाते हैं
सुगंध उड़ जाती है
यादें बिखर जाती हैं
लुटे भाव रह जाते हैं