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मेरी आंखों के सामने
एक चिड़िया तार में फंसी,
उलझी-उलझी,
चीं-चीं करती
धीरे-धीरे मरती रही,
और हम दूर खड़े बेबस
शायद तमाशबीन से
देख रहे थे उसे
वैसे ही
धीरे-धीरे मरते।
तभी
चिड़ियों का एक दल
कहीं दूर से
उड़ता आया,
और उनकी चिड़चिडाहट से
गगन गूंज उठा,
रोंगटे खड़े हो गये हमारे,
और दिल दहल गया।
उनके प्रयास विफ़ल थे
किन्तु उनका दर्द
धरा और गगन को भेदकर
चीत्कार कर उठा था।
कुछ देर तक हम
देखते रहे, देखते रहे,
चिड़िया मरती रही,
चिड़ियां रूदन करती रहीं,
इतने में ही
कहीं से एक बाज आया,
चिड़ियों के दल को भेदता,
तार में फ़ंसी चिड़िया के पैर खींचे
और ले उड़ा,
कुछ देर चर्चा करते रहे हम।
फिर हम भीतर आकर
टी. वी. पर
दंगों के समाचारों का
आनन्द लेने लगे।
क्रूरता की कोई सीमा नहीं ।
हर चीज़ मर गई
अगर एहसास मर गया।
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सुन्दर-सुन्दर दुनियाd
परीलोक के सपने मन में
झूला झूलें नील गगन में
सुन्दर-सुन्दर दुनिया सारी
चंदा-तारों संग मन मगन में
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युग प्रदर्शन का है
मैं आज तक
समझ नहीं पाई
कि मोर शहर में
क्यों नहीं नाचते।
जंगल में नाचते हैं
जहां कोई देखता नहीं।
सुना है
मोरनी को लुभाने के लिए
नृत्य करते हो तुम।
बादल-वर्षा की आहट से
इंसान का मन-मयूर नाच उठता है,
तो तुम्हारी तो बात ही क्या।
तुम्हारी पायल से मुग्ध यह संसार
वन-वन ढूंढता है तुम्हें।
अद्भुत सौन्दर्य का रूप हो तुम।
रंगों की निराली छटा
मनमोहक रूप हो तुम।
पर कहां
जंगल में छिपे बैठे तुम।
कृष्ण अपने मुकुट में
पंख तुम्हारा सजाये बैठे हैं,
और तुम वहां वन में
अपना सौन्दर्य छिपाये बैठे हो।
युग प्रदर्शन का है,
दिखावे और चढ़ावे का है,
काक और उलूव
मंचों पर कूकते हैं यहां,
गर्धभ और सियार
शहरों में घूमते हैं यहां।
मांग बड़ी है।
एक बार तो आओ,
एक सिंहासन तुम्हें भी
दिलवा देंगे।
राष्ट््र पक्षी तो हो
दो-चार पद और दिलवा देंगे।
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आज मुझे देश की याद सता गई
सोच में पड़ गई
आज न तो गणतन्त्र दिवस है,
न स्वाधीनता दिवस, न शहीदी दिवस
और न ही किसी बड़े नेता की जयन्ती ।
न ही समाचारों में ऐसा कुछ देखा
कि देश की याद सता जाती।
फिर आज मुझे
देश की याद क्यों सता गई ।
कुछ गिने-चुने दिनों पर ही तो
याद आती है हमें अपने देश की,
जब एक दिन का अवकाश मिलता है।
और हम आगे-पीछे के दिन गिनकर
छुट्टियां मनाने निकल जाते हैं
अन्यथा अपने स्वार्थ में डूबे,
जोड़-तोड़ में लगे,
कुछ भी अच्छा-बुरा होने पर
सरकार को कोसते,
अपना पल्ला झाड़ते
चाय की चुस्कियों के साथ राजनीति डकारते
अच्छा समय बिताते हैं।
पर सोच में पड़
आज मुझे देश की याद क्यों सता गई
पर कहीं अच्छा भी लगा
कि अकारण ही
आज मुझे देश की याद सता गई ।
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ज़िन्दगी निकल जाती है
कहाँ जान पाये हम
किसका ध्वंस उचित है
और किसका पालन।
कौन सा कर्म सार्थक होगा
और कौन-सा देगा विद्वेष।
जीवन-भर समझ नहीं पाते
कौन अपना, कौन पराया
किसके हित में
कौन है
और किससे होगा अहित।
कौन अपना ही अरि
और कौन है मित्र।
जब बुद्धि पलटती है
तब कहाँ स्मरण रहते हैं
किसी के
उपदेश और निर्देश।
धर्म और अधर्म की
गाँठे बन जाती हैं
उन्हें ही
बांधते और सुलझाते
ज़िन्दगी निकल जाती है
और एक नये
युद्धघोष की सम्भावना
बन जाती है।
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आजकल मेरी कृतियां
आजकल
मेरी कृतियां मुझसे ही उलझने लगी हैं।
लौट-लौटकर सवाल पूछने लगी हैं।
दायरे तोड़कर बाहर निकलने लगी हैं।
हाथ से कलम फिसलने लगी है।
मैं बांधती हूं इक आस में,
वे चौखट लांघकर
बाहर का रास्ता देखने में लगी हैं।
आजकल मेरी ही कृतियां,
मुझे एक अधूरापन जताती हैं ।
कभी आकार का उलाहना मिलता है,
कभी रूप-रंग का,
कभी शब्दों का अभाव खलता है।
अक्सर भावों की
उथल-पुथल हो जाया करती है।
भाव और होते हैं,
आकार और ले लेती हैं,
अनचाही-अनजानी-अनपहचानी कृतियां
पटल पर मनमानी करने लगती हैं।
टूटती हैं, बिखरती हैं,
बनती हैं, मिटती हैं,
रंग बदरंग होने लगते हैं।
आजकल मेरी ही कृतियां
मुझसे ही दूरियां करने में लगी हैं।
मुझे ही उलाहना देने में लगी हैं।
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सागर का मन
पूर्णिमा के चांद को देख
चंचल हो उठता है
सागर का मन,
उत्ताल तरंगें
उमड़ती हैं
उसके मन में,
वैसे ही सीमा-विहीन है
सागर का मन।
ऐसे में
और बिखर-बिखर जाता है,
कौन समझा है यहां।
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एक बोध कथा
बचपन में
एक बोध कथा पढ़ाई जाती थी:
आंधी की आहट से आशंकित
घास ने
बड़े बड़े वृक्षों से कहा
विनम्रता से झुक जाओ
नहीं तो यह आंधी
तुम्हें नष्ट कर देगी।
वृक्ष सुनकर मुस्कुरा दिये
और आकाश की ओर सिर उठाये
वैसे ही तनकर खड़े रहे।
आंधी के गुज़र जाने के बाद
घास मुस्कुरा रही थी
और वृक्ष धराशायी थे।
किन्तु बोध कथा के दूसरे भाग में
जो कभी समझाई नहीं गई
वृक्ष फिर से उठ खड़े हुए
अपनी जड़ों से
आकाश की ओर बढ़ते हुए
एक नई आंधी का सामना करने के लिए
और झुकी हुई घास
सदैव पैरों तले रौंदी जाती रही।
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कोरोनामय वातावरण में मानसिकता
एक बात समझ नहीं पा रही हूं। जब से कोरोना या कोविड -19 आया है, पहले की तरह साधारण बुखार, वायरल, गला खराब, खांसी-जुकाम होना बन्द हो गया है क्या? मौसम बदलने पर, बारिश में भीगने पर, सर्दी लग जाने पर, ज़्यादा धूप में घूमने या लू लग जाने पर, ए सी या कूलर की सीधी हवा लग जाने से उक्त समस्याएं हो जाती थीं। अब क्या ये सब बन्द हो गई हैं, सीधा कोरोना ही होता है क्या? आजकल चिकित्सकों की बात से तो ऐसा ही लगता है। घर में किसी को इनमें से कोई समस्या होने पर किसी चिकित्सक को फोन कीजिए कि एक-दो दिन से बुखार है अथवा उक्त सारी समस्याओं में से कोई समस्या है। सीधा दो टूक उत्तर मिलता है कोरोना टैस्ट करवा लीजिए।
नहीं डाक्टर ऐसी बात नहीं है।
डाक्टर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं।
नहीं पहले आप कोरोना टैस्ट करवा लीजिए, फिर देखेंगे।
लेकिन डाक्टर, उसमें तो दो दिन लग जायेंगे, बुखार तो तेज़ है।
तो ठीक है ये दो गोली नोट कर लीजिए, 100 बुखार होने तक पहली गोली दे देना दिन में एक बार। 101 से ज़्यादा होने पर पी सी एम दे देना।
मिलते-जुलते उत्तर ही मिलते हैं।
अब मान लीजिए 1 तारीख को बुखार हुआ। हर कोई पहले तो घर में ही रखी पी सी एम या क्रोसीन ले लेता है। दूसरे दिन बुखार न उतरने पर डाक्टर को फोन किया। डाक्टर का उत्तर आपने पढ़ लिया। तीसरे दिन टैस्ट करवाया। पांचवें दिन रिपोर्ट मिली। नैगेटिव।
डाक्टर ने नैगेटिव रिपोर्ट की बात सुनकर कहा, चलो ठीक है, आप बुखार की ये दवाई ले लीजिए।
किन्तु वे पांच दिन कितने भारी थे, उन पांच दिन में बुखार बिगड़कर कोई भी रूप ले लेता है, कोरोना का नहीं। क्या उन पांच दिन के लिए साधारण बुखार की या वायरल की दवाई नहीं दी जा सकती थी, मैं तो डाक्टर नहीं हूं। कोई बतायेगा क्या?
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खत लिखने से डरते थे।
मन ही मन
उनसे प्यार बहुत करते थे
पर खत लिखने से डरते थे।
कच्ची पैंसिल, फटा लिफ़ाफ़ा
आटे की लेई,
कापी का आखिरी पन्ना।
फिर सुन लिया
लोग लिफ़ाफ़ा देखकर
मजमून भांप लिया करते हैं।
उनसे प्यार बहुत करते थे
पर इस कारण
खत लिखने से डरते थे।
अब हमें
मजमून का अर्थ तो पता नहीं था
लेकिन
मजमून से
कुछ मजनूं की-सी ध्वनि
प्रतिध्वनित होती थी।
कुछ लैला-मजनूं की-सी।
और कभी-कभी जूं की-सी।
और
इन सबसे हम डरते थे ।
उनसे प्यार बहुत करते थे
पर इस कारण
खत लिखने से डरते थे।
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साथ समय के चलना होगा
तुमको क्यों ईर्ष्या होती है मैंने भी आई-फोन लिया है।
साथ समय के चलना होगा इतना मैंने समझ लिया है।
चिट्ठियां-विट्ठियां पीछे छूटीं, इतना ज्ञान मिला है मुझको,
ई-मेल, फेसबुक, ट्विटर सब कुछ मैंने खोल लिया है।