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द्वार के दोनों ओर खड़े हैं हम सजग प्रहरी
परस्पर हमारी न शत्रुता, न कोई भागीदारी
मध्य में एक रेखा खींचकर हमें किया विलग
इसी विभाजन के समक्ष हमारी मित्रता हारी
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हाथ जब भरोसे के जुड़ते हैं
हाथ
जब भरोसे के
जुड़ते हैं
तब धरा, आकाश
जल-थल
सब साथ देते हैं
परछाईयाँ भी
संग-संग चलती हैं
जल किलोल करता है
कदम थिरकने लगते हैं
सूरज राह दिखाता है
जीवन रंगीनियों से
सराबोर हो जाता है,
नितान्त निस्पृह
अपने-आप में खो जाता है।
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कौन किसी का होता है
पत्थर संग्रहालयों में सुरक्षित हैं जीवन सड़कों पर रोता है
अरबों-खरबों से खेल रहे हम रुपया हवा हो रहा होता है
किसकी मूरत, किसकी सूरत, न पहचानी, बस नाम दे रहे
बस शोर मचाए बैठे हैं, यहाँ अब कौन किसी का होता है
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घाट-घाट का पानी
शहर में
चूहे बिल्लियों को सुला रहे हैं
कानों में लोरी सुना रहे हैं।
उधर जंगल में गीदड़ दहाड़ रहे हैं।
शेर-चीते पिंजरों में बन्द
हमारा मन बहला रहे हैं।
पढ़ाते थे हमें
शेर-बकरी
कभी एक घाट पानी नहीं पीते,
पर आज
एक ही मंच पर
सब अपनी-अपनी बीन बजा रहे हैं।
यह भी पता नहीं लगता
कब कौन सो जायेगा]
और कौन लोरी सुनाएगा।
अब जहां देखो
दोस्ती के नाम पर
नये -नये नज़ारे दिखा रहे हैं।
कल तक जो खोदते थे कुंए
आज साथ--साथ
घाट-घाट का
पानी पीते नज़र आ रहे हैं।
बच कर चलना ऐसी मित्रता से
इधर बातों ही बातों में
हमारे भी कान काटे जा रहे हैं।
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अंधेरों और रोशनियों का संगम है जीवन
भाव उमड़ते हैं,
मिटते हैं, उड़ते हैं,
चमकते हैं।
पंख फैलाती हैं
आशाएं, कामनाएं।
लेकिन, रोशनियां
धीरे-धीरे पिघलती हैं,
बूंद-बूंद गिरती हैं।
अंधेरे पसरने लगते हैं।
रोशनियां यूं तो
लुभावनी लगती हैं,
लेकिन अंधेरे में
खो जाती हैं
कितनी ही रोशनियां।
मिटती हैं, सिमटती हैं,
जाते-जाते कह जाती हैं,
अंधेरों और रोशनियों का
संगम है जीवन,
यह हम पर है
कि हम किसमें जीते हैं।
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सम्मान उन्हें देना है
आपको नहीं लगता
इधर हम कुछ ज़्यादा ही
आंसू बहाने लगे हैं,
उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा पर
प्रश्नचिन्ह लगाने लगे हैं।
उनके समर्पण, देशप्रेम को
भुनाने में लगे हैं,
उन्होंने चुना है यह पथ,
इसलिए नहीं
कि आप उनके लिए
जार-जार रोंयें
उनके कृत्यों को
महिमामण्डित करें
और अपने कर्त्तव्यों से
हाथ धोयें,
कुछ शब्दों को घोल-घोलकर
तब तक निचोड़ते रहें
जब तक वे घाव बनकर
रिसने न लगें।
वे अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं
और हमें समझा रहे हैं।
देश के दुश्मन
केवल सीमा पर ही नहीं होते,
देश के भीतर,
हमारे भीतर भी बसे हैं।
हम उनसे लड़ें,
कुछ अपने-आप से भी करें
न करें दया, न छिछली भावुकता परोसें
अपने भीतर छिपे शत्रुओं को पहचानें
देश-हित में क्या करना चाहिए
बस इतना जानें।
बस यही सम्मान उन्हें देना है,
यही अभिमान उन्हें देना है।
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चल रही है ज़िन्दगी
थमी-थमी, रुकी-रुकी-सी चल रही है ज़िन्दगी।
कभी भीगी, कभी ठहरी-सी दिख रही है जिन्दगी।
देखो-देखो, बूँदों ने जग पर अपना रूप सजाया
रोशनियों में डूब रही, कहीं गहराती है ज़िन्दगी।
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ज़िन्दगी के रास्ते
यह निर्विवाद सत्य है
कि ज़िन्दगी
बने-बनाये रास्तों पर नहीं चलती।
कितनी कोशिश करते हैं हम
जीवन में
सीधी राहों पर चलने की।
निश्चित करते हैं कुछ लक्ष्य
निर्धारित करते हैं राहें
पर परख नहीं पाते
जीवन की चालें
और अपनी चाहतें।
ज़िन्दगी
एक बहकी हुई
नदी-सी लगती है,
तटों से टकराती
कभी झूमती, कभी गाती।
राहें बदलती
नवीन राहें बनाती।
किन्तु
बार-बार बदलती हैं राहें
बार-बार बदलती हैं चाहतें
बस,
शायद यही अटूट सत्य है।
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मतदान मेरा कर्त्तव्य भी है
मतदान मेरा अधिकार है
पर किसने कह दिया
कि ज़िम्मेदारी भी है।
हां, अधिकार है मेरा मतदान।
पर कौन समझायेगा
कि अधिकार ही नहीं
कर्त्तव्य भी है।
जिस दिन दोनों के बीच की
समानान्तर रेखा मिट जायेगी
उस दिन मतदान सार्थक होगा।
किन्तु
इतना तो आप भी जानते ही होंगें
कि समानान्तर रेखाएं
कभी मिला नहीं करतीं।
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मेरी कागज़ की नाव खो गई
कागज़ की नाव में
जितने सपने थे
सब अपने थे।
छोटे-छोटे थे
पर मन के थे ।
न डूबने की चिन्ता
न सपनों के टूटने की चिन्ता।
तिरती थी,
पलटती थी,
टूट-फूट जाती थी,
भंवर में अटकती थी,
रूक-रूक जाती थी,
एक जाती थी,
एक और आ जाती थी।
पर सपने तो सपने थे
सब अपने थे]
न टूटते थे न फूटते थे,
जीवन की लय
यूं ही बहती जाती थी।
फिर एक दिन
हम बड़े हो गये
सपने भारी-भारी हो गये।
अपने ही नहीं
सबके हो गये।
पता ही नहीं लगा
वह कागज़ की नाव
कहां खो गई।
कभी अनायास यूं ही
याद आ जाती है
तो ढूंढने निकल पड़ते हैं,
किन्तु भारी सपने कहां
पीछा छोड़ते हैं।
सपने सिर पर लादे घूम रहे हैं,
अब नाव नहीं बनती।
मेरी कागज़ की नाव
न जाने कहां खो गई
मिल जाये तो लौटा देना।
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जीवन में सुमधुर गीत रचे हैं
एक बार हमारा आतिथेय स्वीकार करके तो देखो
आनन्दित होकर ही जायेंगे, विश्वास करके तो देखो
मन-उपवन में रंग-बिरंगे भावों की बगिया महकी है
जीवन में सुमधुर गीत रचे हैं संग-संग गाकर तो देखो