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फूलों को खिलते देख हमें भी मुस्काराना आ गया
गरजते बादलों को सुन हमें भी जताना आ गया
बहती नदी की धार ने सिखाया हमें चलते जाना
उंचे पर्वतों को देख हमें भी पांव जमाना आ गया
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बसन्त
आज बसन्त मुझे
कुछ उदास लगा
रंग बदलने लगे हैं।
बदलते रंगों की भी
एक सुगन्ध होती है
बदलते भावों के साथ
अन्तर्मन को
महका-महका जाती है।
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गूगल गुरू घंटाल
कम्प्यूटर जी गुरू हो गये, गूगल गुरू घंटाल
छात्र हो गये हाई टैक, गुरू बैठै हाल-बेहाल
नमन करें या क्लिक करें, समझ से बाहर बात
स्मार्ट बोर्ड, टैबलैट,पी सी, ई पुस्तक में उलझे
अपना ज्ञान भूलकर, घूम रहे, ले कंधे बेताल
आॅन-लाईन शिक्षा बनी यहाँ जी का जंजाल
लैपटाॅप खरीदे नये-नये, मोबाईल एंड््रायड्
गूगल बिन ज्ञान अधूरा यह ले अब तू जान
गुरुओं ने लिंक दिये, नैट ने ले लिए प्राण
रोज़-रोज़ चार्ज कराओ, बिल ने ले ली जान
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किसने रची विनाश की लीला
जल जीवन है, जल पावन है
जल सावन है, मनभावन है
जल तृप्ति है, जल पूजा है।
मन डरता है, जल प्लावन है।
कब सूखा होगा
कब होगी अति वृष्टि
मन उलझा है।
कब तरसें बूंद बूंद को
और कब
सागर ही सागर लहरायेगा,
उतर धरा पर आयेगा
मन डरता है।
किसने रची विनाश की लीला
किसने दोहा प्रकृति को,
कौन बतलायेगा।
जीवन बदला, शैली बदली
रहन सहन की भाषा बदली।
अब यह होना था, और होना है
कहने सुनने से क्या होगा।
आयेंगी और जायेंगी
ये विपदाएं।
बस इतना होना है
कि हम सबको
यहां] सदा
साथ साथ होना है।
घन बरसे या सागर उफ़न पड़े
हमें नहीं डरना है
बस इतना ही कहना है।
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मैं करती हूं दुआ
धूप-दीप जलाकर, थाल सजाकर,
मां को अक्सर देखा है मैंने ज्योति जलाते।
टीका करते, सिर झुकाते, वन्दन करते,
पिता को देखा है मैंने आरती उतारते।
हाथ जोड़कर, आंख मूंदकर देखा है मैंने
भाई-बहनों को आरती गाते
मां कहती है सबके दुख-दर्द मिटा दे मां
पिता मांगते सबको बुद्धि, अन्न-धन दे मां
भाई-बहन शिक्षा का आशीष मांगे
और सब करते मेरे लिए दुआ।
मां, पिता, भाई-बहनों की बातें सुनती हूं
आज मैं भी करती हूं तुमसे इन सबके लिए दुआ।
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नाम लिखा है तुम्हारा
रोज़ एक फूल छुपाती थी किताबों में
तुम्हारे चेहरे का अक्स बनाती थी किताबों में
दिल की बात बताती थी किताबों में
फिर एक दिन किताब पुरानी हो गई
पन्ने खुलने लगे, फूल झरने लगे
सूखे फूलों को समेटा, पत्ती पत्ती को सहेजा
कोई देख न ले
इसलिए बंद मुठ्ठी में सहेजा
पर मुठ्ठी की दरारों से, चाहत झरने लगी
फूल फिर रूप लेने लगे,
रंग फिर बहकने लगे
नाम तुम्हारा लिखने लगे
दिल में बाग खिलने लगे
उपहार भेजती हूं तुम्हें
तुम्हारा ही दिल
नाम लिखा है तुम्हारा
फूलों में, कलियों में
इन उलझी लड़ियों में
सलमे सितारों में
तारों में , हारों में ।।।।।।
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आवागमन में बीत जाता है सारा जीवन
झुलसते हैं पांव, सीजता है मन, तपता है सूरज, पर प्यास तो बुझानी है
न कोई प्रतियोगिता, न जीवटता, विवशता है हमारी, बस इतनी कहानी है
इसी आवागमन में बीत जाता है सारा जीवन, न कोई यहां समाधान सुझाये
और भी पहलू हैं जिन्दगी के, न जानें हम, बस इतनी सी बात बतानी है
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रात से सबको गिला है
रात और चांद का अजीब सा सिलसिला है
चांद तो चाहिए पर रात से सबको गिला है
चांद चाहिए तो रात का खतरा उठाना होगा
चांद या अंधेरा, देखना है, किसे क्या मिला है
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जल-विभाग इन्द्र जी के पास
मेरी जानकारी के अनुसार
जल-विभाग
इन्द्र जी के पास है।
कभी प्रयास किया था उन्होंने
गोवर्धन को डुबाने का
किन्तु विफ़ल रहे थे।
उस युग में
कृष्ण जी थे
जिन्होंने
अपनी कनिष्का पर
गोवर्धन धारण कर
बचा लिया था
पूरे समाज को।
.
किन्तु इन्द्र जी,
इस काल में कोई नहीं
जो अपनी अंगुली दे
समाज हित में।
.
इसलिए
आप ही से
निवेदन है,
अपने विभाग को
ज़रा व्यवस्थित कीजिए
काल और स्थान देखकर
जल की आपूर्ति कीजिए,
घटाओं पर नियन्त्रण कीजिए
कहीं अति-वृष्टि
कहीं शुष्कता को
संयमित कीजिए
न हो कहीं कमी
न ज़्यादती,
नदियाँ सदानीरा
और धरा शस्यश्यामला बने,
अपने विभाग को
ज़रा व्यवस्थित कीजिए।
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सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
हाथ भी जलाती हूं, पैर भी जलाती हूं
दिल भी जलाती हूं, दिमाग भी जलाती हूं
पर तवा गर्म नहीं होता।
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, सास ने कहा।
सेंकनी है तुझको ज़िन्दगी की रोटी।
न आग न लपट, न धुंआ न चटक
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, समाज ने कहा।
सेंकनी है तुझको ज़िन्दगी की रोटी।
हाथ भी बंधे हैं, पैर भी बंधे हैं,
मुंह भी सिला है, कान भी कटे हैं।
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, समाज ने कहा।
बोलना मना है, सुनना मना है,
देखना मना है, सोचना मना है,
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, सास ने कहा।
भाव भी मिटाती हूं, आस भी लुटाती हूं
सपने भी बुझाती हूं, आब भी गंवाती हूं
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी
आना मना है, जाना मना है,
रोना मना है, हंसना मना है।
मां ने कहा, बाप ने कहा,
पति ने कहा, सास ने कहा।
सेंकनी है मुझको ज़िन्दगी की रोटी।
हाथ भी जलाती हूं, पैर भी जलाती हूं
दिल भी जलाती हूं, दिमाग भी जलाती हूं
पर तवा गर्म नहीं होता।……………
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अंदाज़ उनका
उलझा कर गया अंदाज़ उनका
बहका कर गया अंदाज़ उनका
अंधेरे में रोशनियाँ हैं चमक रही
पराया कर गया अंदाज़ उनका