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न जाने कौन कह गया भलाई का ज़माना चला गया
किस राह चलें, क्यों चलें, हमें कहां कोई समझा गया
ज़माने का मिज़ाज़ न बदला है कभी, न बदलेगा कभी
हमारी सोच बिगड़ती है, यह समझने का ज़माना आ गया
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डगर कठिन है
बहती धार सी देखो लगती है जिन्दगी।
पहाड़ों पर बहार सी लगती है जिन्दगी।
किन्तु डगर कठिन है उंचाईयां हैं बहुत।
ख्वाबों को संवारने में लगती है जिन्दगी।
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फागुन आया
बादलों के बीच से
चाँद झांकने लगा
हवाएँ मुखरित हुईं
रवि-किरणों के
आलोक में
प्रकृति गुनगुनाई
मन में
जैसे तान छिड़ी,
लो फागुन आया।
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जिन्दगी का एक नया गीत
चलो
आज जिन्दगी का
एक नया गीत गुनगुनाएं।
न कोई बात हो
न हो कोई किस्सा
फिर भी अकारण ही मुस्कुराएं
ठहाके लगाएं।
न कोई लय हो न धुन
न करें सरगम की चिन्ता
ताल सब बिखर जायें।
कुछ बेसुरी सी लय लेकर
सारी धुनें बदल कर
कुछ बेसुरे से राग नये बनाएं।
अलंकारों को बेसुध कर
तान को बेसुरा गायें।
न कोई ताल हो न कोई सरगम
मंद्र से तार तक
हर सप्तक की धज्जियां उड़ाएं
तानों को खींच –खींच कर
पुरज़ोर लड़ाएं
तारों की झंकार, ढोलक की थाप
तबले की धमक, घुंघुरूओं की छनक
बेवजह खनकाएं।
मीठे में नमकीन और नमकीन में
कुछ मीठा बनायें।
चाहने वालों को
ढेर सी मिर्ची खिलाएं।
दिन भर सोयें
और रात को सबको जगाएं।
पतंग के बहाने छत पर चढ़ जाएं
इधर-उधर कुछ पेंच लड़ाएं
कभी डोरी खींचे
तो कभी ढिलकाएं।
और, इस आंख का क्या करें
आप ही बताएं।
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चिड़-चिड़ करती गौरैया
चिड़-चिड़ करती गौरैया
उड़-उड़ फिरती गौरैया
दाना चुगती, कुछ फैलाती
झट से उड़ जाती गौरैया
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श्याम-पटल पर लिख रहे हम
जीवन में
दो गुणा दो चार होते हैं
किन्तु बहुत बाद में पता लगा
कि दो और दो भी चार ही होते हैं।
समस्या तब आती है
जब हम देखते हैं कि
दो गुणा तीन तो छ: होते ह ैं
किन्तु दो और तीन तो छ: नहीं होते।
और जीवन में
पन्द्र्ह और सोलह
कब और कैसे हो जाते हैं
समझ ही नहीं पाते ।
श्याम-पटल पर लिख रहे हम
श्वेताक्षर,
मिट जाते हैं,
किन्तु जीवन का गुणा-भाग
जीवन का स्याह-सफ़ेद
नहीं मिटता कभी
श्याम-पटल से जीवन-पटल की राहें
सुगम नहीं ,
पर इतनी दुर्गम भी नहीं
जब जीवन की पुस्तक में
साथ हो
एक गुरू का, शिक्षक का ।
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जीवन का राग
रात में सूर्य रश्मियां द्वार खटखटाती हैं
दिन भर जीवन का राग सुनाती हैं
शाम ढलते ढलते सुर साज़ बदल जाते हैं
तब चंद्र किरणें थपथपाकर सुलाती हैं
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समझ लो क्या होते हैं कुकुरमुत्ते
बस कहने की बात है
बस मुहावरा भर है
कि उगते हैं कुकुरमुत्ते-से।
चले गये वे दिन
जब यहां वहां
जहां-तहां
दिखाई देते थे कुकुरमुत्ते।
लेकिन
अब नहीं दिखाई देते
कुकुरमुत्ते
जंगली नहीं रह गये
अब कुकुरमुत्ते
कीमत हो गई है इनकी
बिकते और खरीदे जाते हैं
वातानुकूलित भवनों में उगते हैं
भाव रखते हैं
ताव रखते हैं
किसी की ज़िन्दगी जीने का
हिसाब रखते हैं
घर-घर होते हैं कुकुरमुत्ते।
कहने को हैं
सब्जी-भर
समझ सको तो
समझ लो
अब क्या होते हैं कुकुरमुत्ते।
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छनक-छन तारे छनके
ज़रा-सा मैंने हाथ बढ़ाया, नभ मेरे हाथ आया
छनक-छनक-छन तारे छनके, चंदा भी मुस्काया
सूरज की गठरी बांधी, सपनों की सीढ़ी तानी
इन्द्रधनुष ने रंग बिखेरे, मनमोहक चित्र बनाया
बदली के पीछे से कुछ बूंदे निकली, मन भरमाया
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मर रहा है आम आदमी : कहीं अपनों हाथों
हम एक-दूसरे को नहीं जानते
नहीं जानते
किस देश, धर्म के हैं सामने वाले
शायद हम अपनी
या उनकी
धरती को भी नहीं पहचानते।
जंगल, पहाड़, नदियां सब एक-सी,
एक देश से
दूसरे देश में आती-जाती हैं।
पंछी बिना पूछे, बिना जाने
देश-दुनिया बदल लेते हैं।
किसने हमारा क्या लूट लिया
क्या बिगाड़ दिया,
नहीं जानते हम।
जानते हैं तो बस इतना
कि कभी दो देश बसे थे
कुछ जातियां बंटी थीं
कुछ धर्म जन्मे थे
किसी को सत्ता चाहिये थी
किसी को अधिकार।
और वे सब तमाशबीन बनकर
उंचे सिंहासनों पर बैठे हैं
शायद एक साथ,
जहां उन्हें कोई छू भी नहीं सकता।
वे अपने घरों में
बारूद की खेती करते हैं
और उसकी फ़सल
हमारे हाथों में थमा देते हैं।
हमारे घर, खेत, शहर
जंगल बन रहे हैं।
जाने-अनजाने
हम भी उन्हीं फ़सलों की बुआई
अपने घर-आंगन में करने लगे हैं
अपनी मौत का सामान जमा करने लगे हैं
मर रहा है आम आदमी
कहीं अपनों से
और कहीं अपने ही हाथों
कहीं भी, किसी भी रूप में।
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प्रश्न सुलझा नहीं पाती मैं
वैसे तो
आप सबको
बहुत बार बता चुकी हूँ
कि समझ ज़रा छोटी है मेरी।
आज फिर एक
नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ
मेरे सामने।
पता नहीं क्यों
बहुत छोटे-छोटे प्रश्न
सुलझा नहीं पाती मैं
इसलिए
बड़े प्रश्नों से तो
उलझती ही नहीं मैं।
जब हम छोटे थे
तब बस इतना जानते थे
कि हम बच्चे हैं
लड़का-लड़की
बेटा-बेटी तो समझ ही नहीं थी
न हमें
न हमारे परिवार वालों को।
न कोई डर था न चिन्ता।
पूजा-वूजा के नाम पर
ज़रूर लड़कियों की
छंटाई हुआ करती थी
किन्तु और किसी मुद्दे पर
कभी कोई बात
होती हो
तो मुझे याद नहीं।
अब आधुनिक हो गये हैं हम
ठूँस-ठूँसकर भरा जाता है
सोच में
लड़का-लड़की एक समान।
बेटा-बेटी एक समान।
किसी को पता हो तो
बताये मुझे
अलग कब हुए थे ये।