Share Me
सूरज को रोककर
मैंने पूछा
चलोगे मेरे साथ ?
-
हँस दिया सूरज
मैं तो चलता ही चलता हूँ।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
कभी रुका नहीं
कभी थका नहीं।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
दिन-रात घूमता हूँ
सबके हाल पूछता हूँ।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
रंगीनियों को सहेजता हूँ।
रंगों को बिखेरता हूँ।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
चँदा-तारे मेरे साथी
कौन तुम्हारे साथ ?
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
बादल-वर्षा, आंधी-तूफ़ान
ग्रीष्म-शिशिर सब मेरे साथी।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
-
विस्तार गगन का
किसने नापा।
तुम अपनी बोलो
चलोगे मेरे साथ ?
Share Me
Write a comment
More Articles
नेह का बस एक फूल
जीवन की इस आपाधापी में,
इस उलझी-बिखरी-जि़न्दगी में,
भाग-दौड़ में बहकी जि़न्दगी में,
नेह का बस कोई एक फूल खिल जाये।
मन संवर संवर जाता है।
पत्ती-पत्ती , फूल-फूल,
परिमल के संग चली एक बयार,
मन बहक बहक जाता है।
देखएि कैसे सब संवर संवर जाता है।
Share Me
चोट दिल पर लगती है
चोट दिल पर लगती है
आंसू आंख से बहते हैं
दर्द जिगर में होता है
बात चेहरा बोलता है
आघात कहीं पर होता है
घाव कहीं पर बनता है
जख्म शब्दों के होते हैं
बदला कलम ले लेती है
दूर रहना ज़रा मुझसे
चोट गहरी हो तो
प्रतिघात घातक होता है।
Share Me
कच्चे धागों से हैं जीवन के रिश्ते
हर दिन रक्षा बन्धन का-सा हो जीवन में
हर पल सुरक्षा का एहसास हो जीवन में
कच्चे धागों से बंधे हैं जीवन के सब रिश्ते
इन धागों में विश्वास का एहसास हो जीवन में
Share Me
परिवर्तन नित्य है
सन्मार्ग पर चलने के लिए रोशनी की बस एक किरण ही काफ़ी है
इरादे नेक हों, तो, राही दो हों न हों, बढ़ते रहें, इतना ही काफ़ी है
सूर्य अस्त होगा, रात आयेगी, तम भी फैलेगा, संगी साथ छोड़ देंगे,
तब भी राह उन्मुक्त है, परिवर्तन नित्य है, इतना जानना ही काफ़ी है
Share Me
कदम रखना सम्भल कर
इन राहों पर कदम रखना सम्भल कर, फ़िसलन है बहुत
मन को कौन समझाये इधर-उधर तांक-झांक करे है बहुत
इस श्वेताभ नि:स्तब्धता के भीतर जीवन की चंचलता है
छूकर देखना, है तो शीतल, किन्तु जलन देता है बहुत
Share Me
अपनी कहानियाँ आप रचते हैं
पुस्तकों में लिखते-लिखते
भाव साकार होने लगे।
शब्द आकार लेने लगे।
मन के भाव नर्तन करने लगे।
आशाओं के अश्व
दौड़ने लगे।
सही-गलत परखने लगे।
कल्पना की आकृतियां
सजीव होने लगीं,
लेखन से विलग
अपनी बात कहने लगीं।
पूछने लगीं, जांचने लगीं,
सत्य-असत्य परखने लगीं।
अंधेरे से रोशनियों में
चलने लगीं।
हाथ थाम आगे बढ़ने लगीं।
चल, इस ठहरी, सहमी
दुनिया से अलग चलते हैं
बनी-बनाई, अजनबी
कहानियों से बाहर निकलते हैं,
अपनी कहानियाँ आप रचते हैं।
Share Me
बेटी दिवस पर एक रचना
बेटियों के बस्तों में
किताबों के साथ
रख दी जाती हैं कुछ सतर्कताएं,
कुछ वर्जनाएं,
कुछ आदेश, और कुछ संदेश।
डर, चिन्ता, असुरक्षा की भावना,
जिन्हें
पैदा होते ही पिला देते हैं
हम उन्हें
घुट्टी की तरह।
बस यहीं नहीं रूकते हम।
और बोझा भरते हैं हम,
परम्पराओं, रीति-रिवाज़
संस्कार, मान्यताओं,
सहनशीलता और चुप्पी का।
इनके बोझ तले
दब जाती हैं
उनकी पुस्तकें।
कक्षाएं थम जाती हैं।
हम चाहते हैं
बेटियां आगे बढ़ें,
बेटियां खूब पढें,
बेबाक, बिन्दास।
पर हमारा नज़र रहती है
हर समय
बेटी की नज़र पर।
जैसे ही कोई घटना
घटती है हमारे आस-पास,
हम बेटियों का बस्ता
और भारी कर देते हैं,
और भारी कर देते हैं।
कब दब जाती हैं,
उस भार के नीचे,
सांस घुटती है उनकी,
कराहती हैं,
बिलखती हैं
आज़ादी के लिए
पर हम समझ ही नहीं पाते
उनका कष्ट,
इस अनचाहे बोझ तले,
कंधे झुक जाते हैं उनके,
और हम कहते हैं,
देखो, कितनी विनम्र
परम्परावदी है यह।
Share Me
कड़वा-कड़वा देते रहना
नीम करेले का रस पी ले
हंस-बोलकर जीवन जी ले
कड़वा-कड़वा देते रहना
खट्टे की खुद चटनी पी ले
Share Me
जिन्दगी की डगर
जिन्दगी की डगर यूं ही घुमावदार होती हैं
कभी सुख, कभी दुख की जमा-गुणा होती है
हर राह लेकर ही जाती है धरा से गगन तक
बस कदम-दर-कदम बढ़ाये रखने की ज़रूरत होती है
Share Me
तुम्हारी यह चुप्पी सुहाती नहीं
तुम्हारी यह चुप्पी सुहाती नहीं
उदास बैठी तुम भाती नहीं
कभी तुम्हें यूं देखा नहीं
एकान्तवासी
मौन, गम्भीर, चिन्तित।
लौट आओ
ज़रा अपने अंदाज़ में
तुम्हारी किट–किट–कुट–कुट
डाल डाल फांदती
छुप्पन– छुपाई खेलती
कूदती भागती,
पेड़ों के कोटर से झांकती,
यही अंदाज़ भाता है तुम्हारा।
गुनगुनाती हो
हंसती खिलखिलाती हो मेरे भीतर
जीवन को राग रंग देती हो।
कैसे समझाउं तुम्हें
न तुम मेरी बोली समझती हो
न मैं तुम्हारी।
क्या था, क्या हो गया, क्या होगा
कहां वश रह गया हमारा
चलो, लौट आओ तो ज़रा अपने रंग में।