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वीरता दिखा रहे मंच पर आज राजाजी
हाथ उठा अपना ही गुणगान कर रहे हैं राजाजी
धर्म-कर्म, जाति-पाति के नाम पर ‘मत’ देना
बस इतना ही तो समझा रहे हैं राजाजी।
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जब मूक रहे तब मूर्ख कहलाये
जब मूक रहे तब मूर्ख कहलाये
बोले तो हम बड़बोले बन जायें
यूं ही क्यों चिन्तन करता रे मन !
जिसको जो कहना है कहते जायें
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सांझ-सवेरे भागा-दौड़ी
सांझ-सवेरे, भागा-दौड़ी
सूरज भागा, चंदा चमका
तारे बिखरे
कुछ चमके, कुछ निखरे
रंगों की डोली पलटी
हल्के-हल्के रंग बदले
फूलों ने मुख मोड़ लिए
पल्लव देखो सिमट गये
चिड़िया ने कूक भरी
तितली-भंवरे कहाँ गये
कीट-पतंगे बिखर गये
ओस की बूँदें टहल रहीं
देखो तो कैसे बहक रहीं
रंगों से देखो खेल रहीं
अभी यहीं थीं
कहाँ गईं, कहाँ गईं
ढूंढो-ढूंढों कहाँ गईं।
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खोज रहा हूं उस नेता को
खोज रहा हूं उस नेता को
हर पांच साल में आता है
एक रोटी का टुकड़ा
एक घर की चाबी लाता है
कुछ नये सपने दिखलाता,
पैसे देने की बातें करता
देश-विदेश घूमकर आता
वेश बदल-बदलकर आता
बड़ी-बड़ी गाड़ी में आता
खूब भीड़ साथ में लाता
रोज़गार का वादा करता
अरबों-खरबों की बातें करता
नारों-हथियारों की बातें करता
जात-पात, धर्म, आरक्षण
का मतलब बतलाता
वोटों का मतलब समझाता
कारड बनवाने की बातें करता
हाथ में परचा थमा कर जाता
बच्चों के गाल बजाकर जाता
बस मैं-मैं-मैं-मैं करता
अच्छी-अच्छी बातें करता
थाली में रोटी आयेगी
लड़की देखो स्कूल जायेगी।
कभी-कभी कहता है
रोटी खाउंगा, पानी पीउंगा।
खाली थाली बजा रहे हैं
ढोल पीटकर बता रहे हैं
पिछले पांच साल से बैठे हैं
अगले पांच साल की आस में।
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उड़ती चिड़िया के पर गिन लिया करते हैं
सुना है कुछ लोग
उड़ती चिड़िया के
पर गिन लिया करते हैं।
कौन हैं वे लोग
जो उड़ती चिड़िया के
पर गिन लिया करते हैं।
क्या वे
कोई और काम भी करते हैं,
अथवा बस,
उड़ती चिड़िया के
पर ही गिनते रहते हैं।
कौन उड़ा रहा है चिड़िया ?
कितनी चिड़िया उड़ रही हैं ?
जिनके पर गिने जा रहे हैं ?
पहले पकड़ते हैं,
पिंजरे में
पालन-पोषण करते हैं।
लाड़-प्यार जताते हैं।
कुछ पर काट देते हैं,
कि चिड़िया उड़ न जाये।
फिर एक दिन उकता जाते हैं,
और छोड़ देते हैं उसे
आधी-अधूरी उड़ानों के लिए।
फिर अपना अनुभव बखानते हैं,
हम तो उड़ती चिड़िया के
पर गिन लेते हैं।
सच में ही
बहुत गुणी हैं ये लोग।
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डगर कठिन है
बहती धार सी देखो लगती है जिन्दगी।
पहाड़ों पर बहार सी लगती है जिन्दगी।
किन्तु डगर कठिन है उंचाईयां हैं बहुत।
ख्वाबों को संवारने में लगती है जिन्दगी।
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कर लो नारी पर वार
जब कुछ न लिखने को मिले तो कर लो नारी पर वार।
वाह-वाही भरपूर मिलेगी, वैसे समझते उसको लाचार।
कल तक माँ-माँ लिख नहीं अघाते थे सारे साहित्यकार
आज उसी में खोट दिखे, समझती देखो पति को दास
पत्नी भी माँ है क्यों कभी नहीं देख पाते हो तुम
यदि माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजा, किसका है यह दोष
परिवारों में निर्णय पर हावी होते सदा पुरुष के भाव
जब मन में आता है कर लेते नारी के चरित्र पर प्रहार।
लिखने से पहले मुड़ अपनी पत्नी पर दृष्टि डालें एक बार ।
अपने बच्चों की माँ के मान की भी सोच लिया करो कभी कभार
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बस नेह मांगती है
कोई मांग नहीं करती बस नेह मांगती है बहन।
आशीष देती, सुख मांगती, भाई के लिए बहन।
दुख-सुख में साथी, पर जीवन अधूरा लगता है,
जब भाई भाव नहीं समझता, तब रोती है बहन।
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कड़वा-कड़वा देते रहना
नीम करेले का रस पी ले
हंस-बोलकर जीवन जी ले
कड़वा-कड़वा देते रहना
खट्टे की खुद चटनी पी ले
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जब तक चिल्लाओ न, कोई सुनता नहीं
अब शांत रहने से यहां कुछ मिलता नहीं
जब तक चिल्लाओ न, कोई सुनता नहीं
सब गूंगे-बहरे-अंधे अजनबी हो गये हैं यहां
दो की चार न सुनाओ जब तक, काम बनता नहीं
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अपने कर्मों पर रख पकड़
चाहे न याद कर किसी को
पर अपने कर्मों से डर
न कर पूजा किसी की
पर अपने कर्मों पर रख पकड़ ।
न आराधना के गीत गा किसी के
बस मन में शुद्ध भाव ला ।
हाथ जोड़ प्रणाम कर
सद्भाव दे,
मन में एक विश्वास
और आस दे।