सपनों में जीने लगते हैं

लक्ष्य जितना सरल दिखता है

राहें

उतनी ही कठिन होने लगती हैं।

 

हमें आदत-सी हो जाती है

सब कुछ को

बस यूं ही ले लेने की

अभ्यास और प्रयास

की आदत छोड़ बैठते हैं

सपनों में जीने लगते हैं

लगता है

बस

हाथ बढ़ाएंगे

और चांद पकड़ लेंगे

अपने में खोये

ग्रहण और अमावस को

समझ नहीं पाते हम

सपनों में जीते

चांद को ही दोष देते हैं

सही राह नहीं पकड़ पाते हम।

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लक्ष्य कठिन हो तो

राहें

आप ही सरल हो जाती हैं

क्योंकि तब हम समझ पाते हैं

चांद की दूरियां

और ग्रहण-अमावस का भाव

जीवन में।