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जब भावों का ज्वार उमड़ता है, तब सोच-समझ उड़ जाती है
लिखने बैठें तो अपने ही मन की बात कहां समझ में आती है
कलम को क्यों दोष दूं, क्यों स्याही फैली, सूखी या मिट गई
भावों को किन शब्दों में ढालूं, शब्दों की झोली खाली पाती हूं
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कयामत के दिन चार होते हैं
कहीं से सुन लिया है
कयामत के दिन चार होते हैं,
और ज़िन्दगी भी
चार ही दिन की होती है।
तो क्या कयामत और ज़िन्दगी
एक ही बात है?
नहीं, नहीं,
मैं ऐसे डरने वाली नहीं।
लेकिन
कंधा देने वाले भी तो
चार ही होते हैं
और दो-दूनी भी
चार ही होते हैं।
और हां,
बातें करने वाले भी
चार ही लोग होते हैं,
एक है न कहावत
‘‘चार लोग क्या कहेंगे’’।
वैसे मुझे अक्सर
अपनी ही समझ नहीं आती।।
बात कयामत की करने लगी थी
और दो-दूनी चार के
पहाड़े पढ़ने लगी।
ऐसे थोड़े ही होता है।
चलो, कोई बात नहीं।
फिर कयामत की ही बात करते हैं।
सुना है, कोई
कोरोना आया है,
आयातित,
कहर बनकर ढाया है।
पूरी दुनिया को हिलाया है
भारत पर भी उसकी गहन छाया है।
कहते हैं,
उसके साथ
छुपन-छुपाई खेल लो चार दिन,
भाग जायेगा।
तुम अपने घर में बन्द रहो
मैं अपने घर में।
ढूंढ-ढूंढ थक जायेगा,
और अन्त में थककर मर जायेगा।
तब मिलकर करेंगे ज़िन्दगी
और कयामत की बात,
चार दिन की ही तो बात है,
तो क्या हुआ, बहुत हैं
ये भी बीत जायेंगे।
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क्रांति
क्रांति उस चिड़िया का नाम है
जिसे नई पीढ़ी ने जन्म दिया।
पुरानी पीढ़ी उसके पैदा होते ही
उसके पंख काट देना चाहती है।
लेकिन नई पीढ़ी उसे उड़ना सिखाती है।
जब वह उड़ना सीख जाती है
तो पुरानी पीढ़ी
उसके लिए,
एक सोने का पिंजरा बनवाती है
और यह कहकर उसे कैद कर लेती है
कि नई पीढ़ी तो उसे मार ही डालती।
यह तो उसकी सुरक्षा सुविधा का प्रबन्ध है।
वर्षों बाद
जब वह उड़ना भूल जाती है
तो पिंजरा खोल दिया जाता है
क्योंकि
अब तक चिड़िया उड़ना भूल गई है
और सोने का मूल्य भी बढ़ गया है
इसलिए उसे बेच दिया जाता हे
नया लोहे का लिया जाता है
जिसमें नई पीढ़ी को
इस अपराध में बन्द कर दिया जाता है
आजीवन
कि उसने हमें खत्म करने,
मारने का षड्यन्त्र रचा था
हत्या करनी चाही थी हमारी।
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कोरोनामय वातावरण में मानसिकता
एक बात समझ नहीं पा रही हूं। जब से कोरोना या कोविड -19 आया है, पहले की तरह साधारण बुखार, वायरल, गला खराब, खांसी-जुकाम होना बन्द हो गया है क्या? मौसम बदलने पर, बारिश में भीगने पर, सर्दी लग जाने पर, ज़्यादा धूप में घूमने या लू लग जाने पर, ए सी या कूलर की सीधी हवा लग जाने से उक्त समस्याएं हो जाती थीं। अब क्या ये सब बन्द हो गई हैं, सीधा कोरोना ही होता है क्या? आजकल चिकित्सकों की बात से तो ऐसा ही लगता है। घर में किसी को इनमें से कोई समस्या होने पर किसी चिकित्सक को फोन कीजिए कि एक-दो दिन से बुखार है अथवा उक्त सारी समस्याओं में से कोई समस्या है। सीधा दो टूक उत्तर मिलता है कोरोना टैस्ट करवा लीजिए।
नहीं डाक्टर ऐसी बात नहीं है।
डाक्टर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं।
नहीं पहले आप कोरोना टैस्ट करवा लीजिए, फिर देखेंगे।
लेकिन डाक्टर, उसमें तो दो दिन लग जायेंगे, बुखार तो तेज़ है।
तो ठीक है ये दो गोली नोट कर लीजिए, 100 बुखार होने तक पहली गोली दे देना दिन में एक बार। 101 से ज़्यादा होने पर पी सी एम दे देना।
मिलते-जुलते उत्तर ही मिलते हैं।
अब मान लीजिए 1 तारीख को बुखार हुआ। हर कोई पहले तो घर में ही रखी पी सी एम या क्रोसीन ले लेता है। दूसरे दिन बुखार न उतरने पर डाक्टर को फोन किया। डाक्टर का उत्तर आपने पढ़ लिया। तीसरे दिन टैस्ट करवाया। पांचवें दिन रिपोर्ट मिली। नैगेटिव।
डाक्टर ने नैगेटिव रिपोर्ट की बात सुनकर कहा, चलो ठीक है, आप बुखार की ये दवाई ले लीजिए।
किन्तु वे पांच दिन कितने भारी थे, उन पांच दिन में बुखार बिगड़कर कोई भी रूप ले लेता है, कोरोना का नहीं। क्या उन पांच दिन के लिए साधारण बुखार की या वायरल की दवाई नहीं दी जा सकती थी, मैं तो डाक्टर नहीं हूं। कोई बतायेगा क्या?
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यह भावुकता
कहां है अपना वश !
कब के रूके
कहां बह निकलेगें
पता नहीं।
चोट कहीं खाई थी,
जख्म कहीं था,
और किसी और के आगे
बिखर गये।
सबने अपना अपना
अर्थ निकाल लिया।
अब
क्या समझाएं
किस-किसको
क्या-क्या बताएं।
तह-दर-तह
बूंद-बूंद
बनती रहती हैं गांठें
काल की गति में
कुछ उलझी, कुछ सुलझी
और कुछ रिसती
बस यूं ही कह बैठी,
जानती हूं वैसे
तुम्हारी समझ से बाहर है
यह भावुकता !!!
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स्वर्गिक सौन्दर्य रूप
रूईं के फ़ाहे गिरते थे हम हाथों से सहलाते थे।
वो हाड़ कंपाती सर्दी में बर्फ़ की कुल्फ़ी खाते थे।
रंग-बिरंगी दुनिया श्वेत चादर में छिप जाती थी,
स्वर्गिक सौन्दर्य-रूप, मन आनन्दित कर जाते थे।
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आंखों में लरजते कुछ सपने देखो
न चूड़ियां देखो, न मेंहदी
न साज-श्रृंगार।
बस, आंखों में लरजते
कुछ सपने देखो।
कुछ पीछे छूट गये ,
कुछ बनते, कुछ सजते
कुछ वादे कुछ यादें।
आधी ज़िन्दगी
इधर थी, आधी उधर है।
पर, सपनों की गठरी
इक ही है।
कुछ बांध लिए, कुछ छिन लिए
कुछ पैबन्द लगे, कुछ गांठ पड़ी
कुछ बिखर गये , कुछ नये बुने
कुछ नये बने।
फिर भी सपने हैं, हैं तो, अपने हैं
कोई देख नहीं पायेगा
इस गठरी को, मन में है।
सपने हैं, जैसे भी हैं
हैं तो बस अपने हैं।
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पूछूं चांद से
अक्सर मन करता है
पूछूं चांद से
औरों से मिली रोशनी में
चमकने में
यूं कैसे दम भरता है।
मत गरूर कर
कि कोई पूजता है,
कोई गणनाएं करता है।
शायद इसीलिए
दाग लिये घूमता है,
इतना घटता-बढ़ता है,
कभी अमावस
तो कभी ग्रहण लगता है।
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फिर उनके कंधों पर बंहगी ढूंढते हैं
अपनी संतान के कंधों पर
हमने लाद दिये हैं
अपने अधूरे सपने,
अपनी आशाएं –आकांक्षाएं,
उनके मन-मस्तिष्क पर
ठोंक कर बैठे हैं
अपनी महत्वाकांक्षाओं की कीलें,
उनकी इच्छाओं-अनच्छिाओं पर
बनकर बैठे हैं हम प्रहरी।
आगे, आगे और आगे
निकल लें।
जितनी दूर निकल सकें,
निकल लें।
सबसे आगे, और आगे, और आगे।
धरा को छोड़
आकाश को निगल ले।
और वे भागने लगे हैं
हमसे दूर, बहुत दूर ।
हम स्वयं ही नहीं जानते
उनके कंधों पर कितना बोझ डालकर
किस राह पर उन्हें ढकेल रहे हैं हम ।
धरा के रास्ते बन्द कर दिये हैं
उनके लिए।
बस पकड़ना है तो
आकाश ही आकाश है।
फिर शिकायत करते हैं
कुछ नहीं कर रही नई पीढ़ी
हमारे लिए ।
फिर उनके कंधों पर बंहगी ढूंढते हैं !!!
कमाल है !!!!
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रोज़ पढ़ती हूं भूल जाती हूं
जीवन के सिखाये गये पाठ
बार बार दोहराती हूं।
रोज़ याद करती हूं, पर भूल जाती हूं ।
पुस्तकें पढ़कर नहीं चलता जीवन,
यह जानकर भी
वही पाठ बार-बार दोहराती हूं ।
सब कहते हैं, पढ़ ले, पढ़ ले,
जीवन में कुछ आगे बढ़ ले ।
पर मेरी बात
कोई क्यों नहीं समझ पाता।
कुछ पन्ने, कुछ हिसाब-बेहिसाब
कभी समझ ही नहीं पाती हूं,
लिख-लिखकर दोहराती हूं ।
कभी स्याही चुक जाती है ,
कभी कलम छूट जाती है,
अपने को बार-बार समझाती हूं ।
फिर भी,
रोज़ याद करती हूं ,भूल जाती हूं ।
ज़्यादा गहराईयों से
डर लगता है मुझे
इसलिए कितने ही पन्ने
अधपढ़े छोड़ आगे बढ़ जाती हूं ।
कोई तो समझे मेरी बात ।
कहते हैं,
तकिये के नीचे रख दो किताब,
जिसे याद करना हो बेहिसाब,
पर ऐसा करके भी देख लिया मैंने
सपनों में भी पढ़कर देख लिया मैंने,
बस, इसी तरह जीती चली जाती हूं ।
.
रोज़ पढ़ती हूं भूल जाती हूं ।
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मतदान मेरा कर्त्तव्य भी है
मतदान मेरा अधिकार है
पर किसने कह दिया
कि ज़िम्मेदारी भी है।
हां, अधिकार है मेरा मतदान।
पर कौन समझायेगा
कि अधिकार ही नहीं
कर्त्तव्य भी है।
जिस दिन दोनों के बीच की
समानान्तर रेखा मिट जायेगी
उस दिन मतदान सार्थक होगा।
किन्तु
इतना तो आप भी जानते ही होंगें
कि समानान्तर रेखाएं
कभी मिला नहीं करतीं।