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शिक्षक का नअब मान रहा।
छात्र का न अब प्रतिदान रहा।
व्यवसाय बनी है शिक्षा अब,
व्यापार बना, यह काम रहा।
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झूठ के आवरण चढ़े हैं
चेहरों पर चेहरे चढ़े हैं
असली तो नीचे गढ़े हैं
कैसे जानें हम किसी को
झूठ के आवरण चढ़े हैं
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हिम्मत लेकर जायेगी शिखर तक
किसी के कदमों के छूटे निशान न कभी देखना
अपने कदम बढ़ाना अपनी राह आप ही देखना
शिखर तक पहुंचने के लिए बस चाहत ज़रूरी है
अपनी हिम्मत लेकर जायेगी शिखर तक देखना
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समय समय की बात
वस्त्र सुन्दर, मूल्यवान, यूं अलमारी में चन्द पड़े हैं,
क्या पहने, अब बात नहीं होती घर में बन्द खड़े हैं,
तह लगाते, तह पलटते, देखें कहीं दीमक न खाए
स्वर्णाभूषण यूं लगते मानों देखो सारे जंग गड़े हैं।
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नारी बेचारी नेह की मारी
बस इतना पूछना है
कि क्या अब तुमसे बन्दूक
भी न सम्हल रही
जो मेरे हाथ दे दी!
कहते हो
नारी बेचारी
अबला, ममता, नेह की मारी
कोमल, प्यारी, बेटी बेचारी
घर-द्वार, चूल्हा-चौखट
सब मेरे काम
और प्रकृति का उपहार
ममत्व !
मेरे दायित्व!!
कभी दुर्गा, कभी सीता कहते
कभी रणचण्डी, कभी लक्ष्मीबाई बताते
कभी जौहर करवाते
अब तो हर जगह
बस औरतों के ही काम गिनवाते
कुछ तो तुम भी कर लो
अब क्या तुमसे यह बन्दूक
भी न चल रही
जो मेरे हाथ थमा दी !!
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है हौंसला बुलन्द
उन राहों पर निकले हैं जिनका आदि न कोई अन्त
न आगे है कोई न पीछे है, दिखता दूर कहीं दिगन्त
देखने में रंगीनियां हैं, सफ़र है, समां सुहाना लगता है
टेढ़ी-मेढ़ी राहें हैं, पथ दुर्गम है, पर है हौंसला बुलन्द
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क्रांति
क्रांति उस चिड़िया का नाम है
जिसे नई पीढ़ी ने जन्म दिया।
पुरानी पीढ़ी उसके पैदा होते ही
उसके पंख काट देना चाहती है।
लेकिन नई पीढ़ी उसे उड़ना सिखाती है।
जब वह उड़ना सीख जाती है
तो पुरानी पीढ़ी
उसके लिए,
एक सोने का पिंजरा बनवाती है
और यह कहकर उसे कैद कर लेती है
कि नई पीढ़ी तो उसे मार ही डालती।
यह तो उसकी सुरक्षा सुविधा का प्रबन्ध है।
वर्षों बाद
जब वह उड़ना भूल जाती है
तो पिंजरा खोल दिया जाता है
क्योंकि
अब तक चिड़िया उड़ना भूल गई है
और सोने का मूल्य भी बढ़ गया है
इसलिए उसे बेच दिया जाता हे
नया लोहे का लिया जाता है
जिसमें नई पीढ़ी को
इस अपराध में बन्द कर दिया जाता है
आजीवन
कि उसने हमें खत्म करने,
मारने का षड्यन्त्र रचा था
हत्या करनी चाही थी हमारी।
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समझे बैठे हैं यहां सब अपने को अफ़लातून
जि़न्दगी बिना जोड़-जोड़ के कहां चली है
करता सब उपर वाला हमारी कहां चली है
समझे बैठे हैं यहां सब अपने को अफ़लातून
इसी मैं-मैं के चक्कर में सबकी अड़ी पड़ी है
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क्या होगा वक्त के उस पार
वक्त के इस पार ज़िन्दगी है,
खुशियां हैं वक्त के इस पार।
दुख-सुख हैं, आंसू, हंसी है,
आवागमन है वक्त के इस पार।
कल किसने देखा है,
कौन जाने क्या होगा,
क्यों सोच में डूबे,
आज को जी लेते हैं,
क्यों डरें,
क्या होगा वक्त के उस पार।
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आज़ादी की क्या कीमत
कहां समझे हम आज़ादी की क्या कीमत होती है।
कहां समझे हम बलिदानों की क्या कीमत होती है।
मिली हमें बन्द आंखों में आज़ादी, झोली में पाई हमने
कहां समझे हम राष्ट््भक्ति की क्या कीमत होती है।
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तब विचार अच्छे बनते हैं
बीमारी एक बड़ी है आई
साफ़ सफ़ाई रखना भाई
कूड़ा-करकट न फै़लाना
सुंदर-सुंदर पौधे लाना
बगिया अपनी खूब खिलाना
हाथों को साफ़ है रखना
बार-बार है धोना
मुंह, नाक, आंख न छूना
घर में रहना सुन लो ताई
मुंह को रखना ढककर तुम
हाथों की दूरी है रखनी
दूर से सबसे बात है करनी
प्लास्टिक का उपयोग न करना
घर में बैठकर रोज़ है पढ़ना
जब साफ़-सफ़ाई रखते हैं
तब विचार अच्छे बनते हैं
स्वच्छ अभियान बढ़ायेंगें
देश का नाम चमकाएंगें।