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शिक्षक का नअब मान रहा।
छात्र का न अब प्रतिदान रहा।
व्यवसाय बनी है शिक्षा अब,
व्यापार बना, यह काम रहा।
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नयन क्यों भीगे
मन के उद्गारों को कलम उचित शब्द अक्सर दे नहीं पाती
नयन क्यों भीगे, यह बात कलम कभी समझ नहीं पाती
धूप-छांव तो आनी-जानी है हर पल, हर दिन जीवन में
इतनी सी बात क्यों इस पगले मन को समझ नहीं आती
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चेहरों पर फूल मन में कांटे
हमारी आदतें भी अजीब सी हैं
बस एक बार तय कर लेते हैं
तो कर लेते हैं।
नज़रिया बदलना ही नहीं चाहते।
वैसे मुद्दे तो बहुत से हैं
किन्तु इस समय मेरी दृष्टि
इन कांटों पर है।
फूलों के रूप, रस, गंध, सौन्दर्य
की तो हम बहुत चर्चा करते हैं
किन्तु जब भी कांटों की बात उठती है
तो उन्हें बस फूलों के
परिप्रेक्ष्य में ही देखते हैं।
पता नहीं फूलों के संग कांटे होते हैं
अथवा कांटों के संग फूल।
लेकिन बात दोनों की अक्सर
साथ साथ होती है।
इधर कांटों में भी फूल खिलने लगे है
और फूल
कांटों से चुभने लगे हैं।
लेकिन जब कांटों पर खिलते हैं फूल
तो हम कभी उनकी चर्चा ही नहीं करते।
बस इतना ही याद रख लिया है हमने
कि कांटों से चुभन होती है।
हां, होती है कांटों से चुभन।
लेकिन कांटा भी तो
कांटे से ही निकलता है।
और कभी छीलकर देखा है कांटों को
भीतर से कितने रसपूर्ण होते हैं ।
यह कांटे की प्रवृत्ति है
कि बाहर से तीक्ष्ण है,
पर भीतर ही भीतर खिलते हैं फूल।
एक अलग-सा
आकर्षण और सौन्दर्य
निहित होता है इनमें
जिसे परखना पड़ता है।
संजोकर देखना इन्हें,
जीवन भर अक्षुण्ण साथ देते है।
और जब मन में कांटे उगते हैं
तो यह पलभर का उद्वेलन नहीं होता।
जीवन रस
सूख सूख कर कांटों में बदल जाता है।
कोई जान न पाये इसे
इसलिए
कांटों की प्रवृत्ति के विपरीत
हम चेहरों पर फूल उगा लेते हैं
और मन में कांटे संजोये रहते हैं ।
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कलश तेरी माया अद्भुत है
कलश तेरी माया अद्भुत है, अद्भुत है तेरी कहानी।
माटी से निर्मित, हमें बताता जीवन की पूरी कहानी।
जल भरकर प्यास बुझाता, पूजा-विधि तेरे बिना अधूरी,
पर, अंतकाल में कलश फूटता, बस यही मेरी कहानी।
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देश और ध्वज
देश
केवल एक देश नहीं होता
देश होता है
एक भाव, पूजा, अर्चना,
और भक्ति का आधार।
-
ध्वज
केवल एक ध्वज नहीं होता
ध्वज होता है प्रतीक
देश की आन, बान,
सम्मान और शान का।
.
और यह देश भारत है
और है आकाश में लहराता
हमारा तिरंगा
और जब वह भारत हो
और हो हमारा तिरंगा
तब शीश स्वयं झुकता है
शीश मान से उठता है
जब आकाश में लहराता है तिरंगा।
.
रंगों की आभा बिखेरता
शक्ति, साहस
सत्य और शांति का संदेश देता
हमारे मन में
गौरव का भाव जगाता है तिरंगा।
.
जब हम
निरखते हैं तिरंगे की आभा,
गीत गाते हैं
भारत के गौरव के,
शस्य-श्यामला
धरा की बात करते हैं
तल से अतल तक विस्तार से
गर्वोन्नत होते हैं
तब हमारा शीश झुकता है
उन वीरों की स्मृति में
जिनके रक्त से सिंची थी यह धरा।
.
स्वर्णिम आज़ादी का
उपहार दे गये हमें।
आत्मसम्मान, स्वाभिमान
का भान दे गये हमें
देश के लिए जिएँ
देश के लिए मरें
यह ज्ञान दे गये हमें।
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स्वर्णिम आज़ादी का
उपहार दे गये हमें।
आत्मसम्मान, स्वाभिमान
का भान दे गये हमें
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सौन्दर्य निरख मन हरषा
पलभर में धूप निकलती, कभी बादल बरसें कण-कण।
धरा देखो महक रही, कलियां फूल बनीं, बहक रहा मन।
पल्लव झूम रहे, पंछी डाली-डाली घूम रहे, मन हरषा,
सौन्दर्य निरख, मन भी बहका, सब कहें इसे पागलपन।a
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मन हर्षाए बादल
बिन मौसम आज आये बादल
कड़क-कड़क यूँ डराये बादल
पानी बरस-बरस मन भिगाये
शाम सुहानी, मन हर्षाए बादल
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छोड़ी हमने मोह-माया
नहीं करने हमें
किसी के सपने साकार।
न देखें हमारी आयु छोटी
न समझे कोई हमारे भाव।
मां कहती
पढ़ ले, पढ़ ले।
काम कर ले ।
पिता कहते
बढ़ ले बढ़ ले।
सब लगाये बैठे
बड़ी-बड़ी आस।
ले लिया हमने
इस दुनिया से सन्यास।
छोड़ी हमने मोह-माया
हो गई हमारी कृश-काया।
हिमालय पर हम जायेंगे।
वहीं पर धूनी रमायेंगे।
आश्रम वहीं बनायेंगे।
आसन वहीं जमायेंगे।
चेले-चपाटे बनायेंगे।
सेवा खूब करायेंगे।
खीर-पूरी खाएंगें।
लौटकर घर न आयेंगे।
नाम हमारा अमर होगा,
धाम हमारा अमर होगा,
ज्ञान हमारा अमर होगा।
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हम क्यों आलोचक बनते जायें
खबरों की हम खबर बनाएं,
उलट-पलटकर बात सुझाएं,
काम किसी का, बात किसी की,
हम यूं ही आलोचक बनते जाएं।
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जो रीत गया वह बीत गया
चेहरे की रेखाओं की गिनती मत करना यारो
जरा,अनुभव,पतझड़ की बातें मत करना यारो
यहां मदमस्त मौमस की मस्ती हम लूट रहे हैं
जो रीत गया उसका क्यों है दु:ख करना यारो
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मुस्कानों की भाषा लिखूं
छलक-छलक-छलकती बूंदें,
मन में रस भरती बूंदें
लहर-लहर लहराता आंचल
मन हरषे जब घन बरसे
मुस्कानों की भाषा लिखूं
हवाओं संग उड़ान भरूं मैं
राग बजे और साज बजे
मन ही मन संगीत सजे
धारा संग बहती जाती
अपने में ही उड़ती जाती
कोई न रोके कोई न टोके
जीवन-भर ये हास सजे।