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जीवन में क्यों कोई हमारे हमराज़ नहीं था
यूं तो चैन था, हमें कोई एतराज़ नहीं था
मन चाहता है कि कोई मिले, पर क्या करें
विश्वास के लायक कहीं कोई मिला नहीं था
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चांद मानों मुस्कुराया
चांद मानों हड़बड़ाया
बादलों की धमक से।
सूरज की रोशनी मिट चुकी थी,
चांद मानों लड़खड़ाया
अंधेरे की धमक से।
लहरों में मची खलबली,
देख तरु लड़खड़ाने लगे।
जल में देख प्रतिबिम्ब,
चांद मानों मुस्कुराया
अपनी ही चमक से।
अंधेरों में भी रोशनी होती है,
चमक होती है, दमक होती है,
यह समझाया हमें चांद ने
अपनेपन से मनन से ।
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अपना साहस परखता हूँ मैं
आसमान में तिरता हूँ मैं।
धरा को निहारता हूँ मैं।
अपना साहस परखता हूँ मैं।
मंज़िल पाने के लिए
खतरों से खेलता हूँ मैं।
यूँ भी जीवन का क्या भरोसा
लेकिन अपने भरोसे
आगे बढ़ता ही बढ़ता हूँ मैं।
हवाएँ घेरती हैं मुझे,
ज़माने की हवाओं को
परखता हूँ मैं।
साथी नहीं, हमसफ़र नहीं
अकेले ही
अपनी राहों को
तलाशता हूँ मैं।
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मन के इस बियाबान में
मन के बियाबान में
जब राहें बनती हैं
तब कहीं समझ पाते हैं।
मौसम बदलता है।
कभी सूखा,
तो कभी
हरीतिमा बरसती है।
जि़न्दगी बस
राहें सुझाती है।
उपवन महकता है,
पत्ती-पत्ती गुनगुन करती है।
फिर पतझड़, फिर सूखा।
फिर धरा के भीतर से ,
पनपती है प्यार की पौध।
उसी के इंतजार में खड़े हैं।
मन के इस बियाबान में
एकान्त मन।
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पर मूर्ख बहुत था रावण
कहते हैं दुराचारी था, अहंकारी था, पर मूर्ख बहुत था रावण
बहन के मान के लिए उसने दांव पर लगाया था सिंहासन
जानता था जीत नहीं पाउंगा, पर बहन का मान रखना था उसे
अपने ही कपटी थे, जानकर भी, दांव पर लगाया था सिंहासन
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नहीं करूंगी इंतज़ार
मैं नहीं करूंगी
इंतज़ार तेरा कयामत तक।
.
कयामत की बात
नहीं करती मैं।
कयामत होने का
इंतज़ार नहीं करती मैं।
यह ज़िन्दगी
बड़ी हसीन है।
इसलिए
बात करती हूं
ज़िन्दगी की।
सपनों की।
अपनों की।
पल-पल की
खुशियों की।
मिलन की आस में
जीती हूं,
इंतज़ार की घड़ियों में
कोई आनन्द
नहीं मिलता है मुझे।
.
आना है तो आ,
नहीं तो
जहां जाना है वहां जा।
मैं नहीं करूंगी
इंतज़ार तेरा कयामत तक।
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आज का रावण
हमारे शास्त्रों में, ग्रंथों में जो कथाएं सिद्ध हैं, आम जन तक पहुंचते-पहुंचते बहुत बदल जाती हैं। सत्य-असत्य से अलग हो जाती हैं। हमारी अधिकांश कथाओं के आधार और परिणाम वरदान और श्राप पर आधारित हैं।
प्राचीन ग्रंथों एवं रामायण में वर्णित कथानक के अनुसार रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकाण्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था। रावण के शासन काल में लंका का वैभव अपने चरम पर था इसलिये उसकी लंकानगरी को सोने की लंका कहा जाता है।
हिन्दू ज्योतिषशास्त्र में रावण संहिता को एक बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक माना जाता है और इसकी रचना रावण ने की थी।
रावण ने राम के लिए उस पुल के लिए यज्ञ किया, जिसे पारकर राम की सेना लंका पहुंच सकती थी, यह जानते हुए भी रावण ने राम के निमन्त्रण को स्वीकार किया और अपना कर्म किया।
रावण अपने समय का सबसे बड़ा विद्वान माना जाता है और रामायण के अनुसार जब रावण मृत्यु शय्या पर था तब राम ने लक्ष्मण को रावण से शिक्षा ग्रहण करने का आदेश दिया था और रावण ने यहां भी अपना कर्म किया था।
निःसंदेह हमारी धार्मिकता, आस्था, विश्वास, चरित्र आदि विविध गुणों के कारण राम का चरित्र सर्वोपरि है। रावण रामायण का एक केंद्रीय प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।
रावण राक्षस कुल का था, अतः उसकी वृत्ति भी राक्षसी ही थी। यही स्थिति शूर्पनखा की भी थी। उसने प्रेम निवेदन किया, विवाह-प्रस्ताव किया जिसे राम एवं लक्ष्मण ने अस्वीकार किया। इस अस्वीकार का कारण सीता को मानते हुए शूर्पनखा ने सीता को हानि पहुंचाने का प्रयास किया, इस कारण लक्ष्मण ने शूर्पनखा को आहत किया, उसकी नाक काट दी।
रावण ने घटना को जानकर अपनी बहन का प्रतिशोध लेने के लिए सीता का अपहरण किया, किन्तु उसे किसी भी तरह की कोई हानि नहीं पहुंचाई। रावण अपनी पराजय भी जानता था किन्तु फिर भी उसने बहन के सम्मान के लिए अपने हठ को नहीं छोड़ा।
समय के साथ एवं साहित्येतिहास में कुछ प्रतीक रूढ़ हो जाते हैं, और फिर वे ही उसकी अर्थाभिव्यक्ति बन कर रह जाते हैं। बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में यह कथा रूढ़ हुई और रावण के गुणों पर उसका कृत्य हावी हुआ। किसी भी समाज के उत्थान के लिए इससे अच्छी बात कोई नहीं कि अच्छाई का प्रचार हो, हमारे भीतर उसका समावेश हो, और हम उस परम्परा को आगे बढ़ाएं। राम-कथा हमें यही सिखाती है। किन्तु गुण-अवगुण दोनों में एक संतुलन बना रहे, यह हमारा कर्तव्य है।
बात करते हैं आज के रावण की।
आज के दुराचारियों अथवा कहें दुष्कर्मियों को रावण कह कर सम्बोधित किया जा रहा है। वर्तमान समाज के अपराधियों को, महिलाओं पर अत्याचार करने वाले युवकों को रावण कहने का औचित्य। क्या सत्य में ही दोनों के अपराध समान हैं । यदि अपराध समान हैं तो परिणाम क्यों नहीं समान हैं?
किन्तु आज कहां है रावण ?
आज रावण नहीं है। यदि रावण है तो राम भी होने चाहिए। किन्तु राम भी तो नहीं है।
आज वे उच्छृंखल युवक हैं जो निडर भाव से अपराधों में लिप्त हैं। वे जानते हैं वे अपने हर अपकृत्य से बच निकलेंगे। समाज एवं परम्पराओं के भय से पीड़ित अपनी व्यथा प्रकट नहीं करेगा, और यदि कर भी देगा तब भी परिवार से तो संरक्षण मिलेगा ही, अपने दांव-पेंच से कानून से भी बच निकलेंगे।
रावण शब्द का प्रयोग बुराई के प्रतीक के रूप में किया जाता है। उस युग में तो राम थे, रावण रूपी बुराई का अन्त करने के लिए। आज हम उस रावण का पुतला जलाने के लिए तो तैयार बैठे रहते हैं वर्ष भर। आज हमने बुराई का प्रतीक रावण तो बना लिया किन्तु उसके समापन के लिए राम कौन-कौन बनेगा?
यदि हम रावण शब्द का प्रयोग बुराई के प्रतीक के रूप में करते हैं तो इस बुराई को दूर करने के उपाय अथवा साधन भी सोचने चाहिए। बेरोजगारी, अशिक्षा, पिछड़ापन, रूढ़ियों के रावण विशाल हैं। लड़कियों में डर का रावण और युवकों में छूट का रावण हावी है।
जिस दिन हम इससे विपरीत मानसिकता का विकास करने में सफल हो गये, उस दिन हम रावण की बात करना छोड़ देंगे। अर्थात् किसी के भी मन में अपराध का इतना बड़ा डर हो कि वह इस राह पर कदम ही न बढ़ा पाये और जिसके प्रति अपराध होते हैं वे इतने निडर हों कि अपराधी वृत्ति का व्यक्ति आंख उठाकर देख भी न पाये।
यदि फिर भी अपराध हों, तो हम जिस प्रकार आज राम को स्मरण कर अच्छाई की बात करते हैं, वैसे ही सत्य का समर्थन करने का साहस करें और जैसे आज रावण को एक दुराचारी के रूप में स्मरण करते हैं वैसे ही अपराधी के प्रति व्यवहार करें, तब सम्भव है कोई परिवर्तन दिखाई दे, और आज का रावण लुप्त हो।
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द्वार पर सांकल लगने लगी है
उत्सवों की चहल-पहल अब भीड़ लगने लगी है
अपनों की आहट अब गमगीन करने लगी है
हवाओं को घोटकर बैठते हैं सिकुड़कर हम
कोई हमें बुला न ले, द्वार पर सांकल लगने लगी है
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हिन्दी कहां गई कि इसको अपना मनवाना है
हिन्दी कहां गई कि इसको अपना मनवाना है
हिन्दी मेरा मान है,
मेरा भारत महान है।
घूमता जहान है।
किसकी भाषा,
कौन सी भाषा,
किसको कितना ज्ञान है।
जबसे जागे
तब से सुनते,
हिन्दी को अपनाना है।
समझ नहीं पाई आज तक
कहां से इसको लाना है।
जब है ही अपनी
तो फिर से क्यों अपनाना है।
कहां गई थी चली
कि इसको
फिर से अपना मनवाना है।
’’’’’’’’’.’’’’’’
कुछ बातें
समय के साथ
समझ से बाहर हो जाती हैं,
उनमें हिन्दी भी एक है।
काश! कविताएं लिखने से,
एक दिन मना लेने से,
महत्व बताने से,
किसी का कोई भला हो पाता।
मिल जाती किसी को सत्ता,
खोया हुआ सिंहासन,
जिसकी नींव
पिछले 72 वर्षों से
कुरेद रहे हैं।
अपनी ही
भाषाओं और बोलियों के बीच
सत्ता युद्ध करवा रहे हैं।
कबूतर के आंख बंद करने मात्र से
बिल्ली नहीं भाग जाती।
काश!
यह बात हमारी समझ में आ जाती,
चलने दो यारो
जैसा चल रहा है।
हां, हर वर्ष
दो-चार कविताएं लिखने का मौका
ज़रूर हथिया ले लेना
और कोई पुरस्कार मिले
इसका भी जुगाड़ बना लेना।
फिर कहना
हिन्दी मेरा मान है,
मेरा भारत महान है।
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ब्लॉक
कब सालों-साल बीत गये
पता ही नहीं लगा
जीवन बदल गया
दुनिया बदल गई
और मैं
वहीं की वहीं खड़ी
तुम्हारी यादों में।
प्रतिदिन
एक पत्र लिखती
और नष्ट कर देती।
अक्सर सोचा करती थी
जब मिलोगे
तो यह कहूँगी
वह कहूँगी।
किन्तु समय के साथ
पत्र यादों में रहने लगे
स्मृतियाँ धुँधलाने लगी
और चेहरा मिटने लगा।
पर उस दिन फ़ेसबुक पर
अनायास तुम्हारा चेहरा
दमक उठा
और मैं
एकाएक
लौट गई सालों पीछे
तुम्हारे साथ।
खोला तुम्हारा खाता
और चलाने लगी अंगुलियाँ
भावों का बांध
बिखरने लगा
अंगुलियाँ कंपकंपान लगीं
क्या कर रही हूँ मैं।
इतने सालों बाद
क्या लिखूँ अब
ब्लॉक का बटन दबा दिया।
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मेरा आधुनिक विकासशील भारत
यह मेरा आधुनिक विकासशील भारत है
जो सड़क पर रोटियां बना रहा है।
यह मेरे देश की
पचास प्रतिशत आबादी है
जो सड़क पर अपनी संतान को
जन्म देती है
उनका लालन-पालन करती है
और इस प्राचीन
सभ्य, सुसंस्कृत देश के लिए
नागरिक तैयार करती है।
यह मेरे देश की वह भावी पीढ़ी है
जिसके लिए
डिजिटल इंडिया की
संकल्पना की जा रही है।
यह मेरे देश के वे नागरिक हैं
जिनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास
के विज्ञापनों पर
अरबों-खरबों रूपये लगाये जा रहे हैं,
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
अभियान चला रहे हैं।
इन सब की सुरक्षा
और विकास के लिए
धरा से गगन तक के
मार्ग बनाये जा रहे हैं।
क्या यह भारत
चांद और उपग्रहों से नहीं दिखाई देता ?