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कुछ रिश्ते
फूलों की तरह होते हैं
और कुछ कांटों की तरह।
फूलों को सहेज लीजिए
कांटों को उखाड़ फेंकिए।
नहीं तो, बहुत
असमंजस की स्थिति
बनी रहती है।
किन्तु, कुछ कांटे
फूलों के रूप में आते हैं ,
और कुछ फूल
कांटों की तरह
दिखाई देते हैं।
और कभी कभी,
दोनों
साथ-साथ उलझे भी रहते हैं।
बड़ा मुश्किल होता है परखना।
पर परखना तो पड़ता ही है।
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More Articles
जीवन अंधेरे और रोशनियों के बीच
अंधेरे को चीरती
ये झिलमिलाती रोशनियां,
अनायास,
उड़ती हैं
आकाश की ओर।
एक चमक और आकर्षण के साथ,
कुछ नये ध्वन्यात्मक स्वर बिखेरतीं,
फिर लौट आती हैं धरा पर,
धीरे-धीरे सिमटती हैं,
एक चमक के साथ,
कभी-कभी
धमाकेदार आवाज़ के साथ,
फिर अंधेरे में घिर जाती हैं।
जीवन जब
अंधेरे और रोशनियों में उलझता है,
तब चमक भी होती है,
चिंगारियां भी,
कुछ मधुर ध्वनियां भी
और धमाके भी,
आकाश और धरा के बीच
जीवन ऐसे ही चलता है।
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पहचान नहीं
धन-दौलत थी तो खुले द्वार थे हमारे लिए
जब लुट गई थी द्वार बन्द हुए हमारे लिए
नाम भूल गये, रिश्ते छूट गये, पहचान नहीं
जब दौलत लौटी, हार लिए खड़े हमारे लिए
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बड़े-बड़े कर रहे आजकल
बड़े-बड़े कर रहे आजकल बात बहुत साफ़-सफ़ाई की
शौचालय का विज्ञापन करके, करते खूब कमाई जी
इनकी भाषा, इनके शब्दों से हमें घिन आती है
बात करें महिलाओं की और करते आंख सिकाई जी
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दिल चीज़ क्या है
आज किसी ने पूछा
‘‘दिल चीज़ क्या है’’?
-
अब क्या-क्या बताएँ आपको
बड़़ी बुरी चीज़ है ये दिल।
-
हाय!!
कहीं सनम दिल दे बैठे
कहीं टूट गया दिल
किसी पर दिल आ गया,
किसी को देखकर
धड़कने रुक जाती हैं
तो कहीं तेज़ हो जाती हैं
कहीं लग जाता है किसी का दिल
टूट जाता है, फ़ट जाता है
बिखर-बिखर जाता है
तो कोई बेदिल हो जाता है सनम।
पागल, दीवाना है दिल
मचलता, बहकता है दिल
रिश्तों का बन्धन है
इंसानियत का मन्दिर है
ये दिल।
कहीं हो जाते हैं
दिल के हज़ार टुकड़े
और किसी -किसी का
दिल ही खो ही जाता है।
कभी हो जाती है
दिलों की अदला-बदली।
फिर भी ज़िन्दा हैं जनाब!
ग़जब !
और कुछ भी हो
धड़कता बहुत है यह दिल।
इसलिए
अपनी धड़कनों का ध्यान रखना।
वैसे तो सुना है
मिनट-भर में
72 बार
धड़कता है यह दिल।
लेकिन
ज़रा-सी ऊँच-नीच होने पर
लाखों लेकर जाता है
यह दिल।
इसलिए
ज़रा सम्हलकर रहिए
इधर-उधर मत भटकने दीजिए
अपने दिल को।
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प्रकृति है जीवन सौन्दर्य
रक्त पीत वर्ण में बासंती बयार फ़लक है।
आकर्षित करता तुम्हारा रूप दृष्टि ललक है।
न जाने कब छा जायें घटाएं, बदले मौसम,
जीवन के सौन्दर्य की यह बस एक झलक है।
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कभी कुछ नहीं बदलता
एक वर्ष
और गया मेरे जीवन से।
.
अथवा
यह कहना शायद
ज़्यादा अच्छा लगेगा,
कि
एक वर्ष
और मिला जीने के लिए।
.
जीवन एक रेखा है,
जिस पर हम
बढ़ते हैं,
चलते तो आगे हैं,
पर पता नहीं क्यों,
पीछे मुड़कर
देखने लगते हैं।
.
समस्याओं,
उलझनों से जूझते,
बीत रहा था 2020।
जैसे रोज़, हर रोज़
प्रतीक्षा करते थे
एक नये वर्ष की,
खटखटाएगा द्वार।
भीतर आकर
सहलायेगा माथा।
न निराश हो,
आ गया हूं अब मैं
सब बदल दूंगा।
.
पर मुझे अक्सर लगता है,
कभी कुछ नहीं बदलता।
कुछ हेर-फ़ेर के साथ
ज़िन्दगी, दोहराती है,
बस हमारी समझ का फ़ेर है।
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मन को किसी गह्वर में रखना है मुझे
कल तक
एक घर मेरा था।
आज अचानक
सब बदल गया।
-
यह रूप-श्रृंगार
यह स्वर्ण-माल
मेरे
अगले जीवन का आधार
एक नया परिवार।
-
मात्र, एक पल लगा
मुझे एक से
दूसरे में बदलने में।
नाम-धाम सब सिमटने में।
-
नये सम्बन्ध, नये भाव
नये कर्तव्य और
पता नहीं कितने अधिकार।
सुना करती थी
बचपन से
पराया धन ! पराया धन !!
आज समझ पाई।
-
यह एक पल
न काम आती है
शिक्षा, न ज्ञान, न अभिमान
बस जीवन-परिवर्तन।
नहीं जानती
क्या मिला, क्या पाया, क्या खोया।
-
एक परिवार था मेरे पास
उसे मैं अपने जीवन के
पच्चीस वर्षों में न समझ पाई
किन्तु
एक नये परिवार को समझने के लिए
मुझे नहीं मिलेंगे
पच्चीस मिनट भी।
शायद पच्चीस पल में ही
मुझे सम्हालने होंगे
सारे नये सम्बन्ध
नये भाव, नया घर, नये लोग,
नई आशाएँ, आकांक्षाएँ।
-
मस्तिष्क एक डायरी बन गया।
-
पिछला क्या-क्या भूल जाना है मुझे
तिलांजलि देनी है
कौन-से सम्बन्धों को
और नया
क्या-क्या याद रखना है मुझे,
कितने कदम पीछे हटना है मुझे
कितने कदम आगे बढ़ना है मुझे।
ड्योढ़ी से अन्दर कदम रखते ही
ज्ञात हो जाना चाहिए सब मुझे।
रिश्तों के नये ताने-बाने को
संवारना है मुझे
सबकी भूख-प्यास का हिसाब
रखना है मुझे
अपने मन को किसी गह्वर में रखना है मुझे।
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बूंदे गिरतीं
बादल आये, वर्षा लाये।
बूंदे गिरतीं,
टप-टप-टप-टप।
बच्चे भागे ,
छप-छप-छप-छप।
मेंढक कूदे ,
ढप-ढप-ढप-ढप।
बकरी भागी, कुत्ता भागा।
गाय बोली मुझे बचाओ
भीग गई मैं
छाता लाओ, छाता लाओ।
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उड़ती चिड़िया के पर न गिनूं मैं
आप अब तक मेरी कविताएँ पढ़कर जान ही चुके होंगे कि मेरी विपरीत बुद्धि है। एक चित्र आया कावय रचना के लिए। आपको इस चित्र में किसके दर्शन हुए? मेरे सभी मित्रों को, किसी को विरहिणी नायिका दिखी, किसी को राधा, किसी को मीरा, किसी को बाट जोहती प्रेमिका आदि-आदि-इत्यादि। किन्तु मुझे जैसा यह चित्र प्रतीत हुआ, रचना आपके सामने है।
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फ़ोटू हो गई हो
मेरे सैयां
तो ये ताम-झाम हटवा दे।
इक कुर्सी-मेज़ ला दे।
उड़ती चिड़िया के पर न गिनूं मैं
फ़्रिज से
थोड़ा शीतल जल पिलवा दे।
कब तक नुमाईश करेगा मेरी,
आप आधुनिक बन बैठा है
मुझको भी नयी ड्रैस सिलवा दे।
अब खाना-वाना
न बनता मुझसे
स्वीगी से मंगवा दे।
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मेहनत करते हैं जीते हैं
मां ने बोला था कल लोहड़ी है, लकड़ी का न हुआ है इंतज़ाम
विद्यालय में कुछ पुराने पेड़ कटे थे, मैं ले आई माली से मांग
बस हर वक्त भूख, रोटी, लड़की, शोषण की ही बात मत कर
मेहनत करते हैं, जीते हैं अपने ढंग से, यह लो तुम भी मान