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देखने में तो
कृष्ण ही लगते हो
कलियुग में आये हो
तो पीसो चक्की।
न मिलेगी
यहां यशोदा, गोपियां
जो बहायेंगी
तुम्हारे लिए
माखन-दहीं की धार
वेरका का दूध-घी
बहुत मंहगा मिलता है रे!
और पतंजलि का
है तो तुम्हारी गैया-मैया का
पर अपने बजट से बाहर है भई।
तुम्हारे इस मोहिनी रूप से
अब राधा नहीं आयेगी
वह भी
कहीं पीसती होगी
जीवन की चक्की।
बस एक ही
प्रार्थना है तुमसे
किसी युग में तो
आम इंसान बनकर
अवतार लो।
अच्छा जा अब,
उतार यह अपना ताम-झाम
और रात की रोटी खानी है तो
जाकर अन्दर से
अनाज की बोरी ला ।
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ये त्योहार
ये त्योहार रोज़ रोज़, रोज़ रोज़ आयें
हम मेंहदी लगाएं वे ही रोटियां बनाएं
चूड़ियां, कंगन, हार नित नवीन उपहार
हम झूले पर बैठें वे संग झूला झुलाएं
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धन्यवाद देते रहना हमें Keep Thanking
आकाश को थाम कर खड़े हैं नहीं तो न जाने कब का गिर गया होता
पग हैं धरा पर अड़ाये, नहीं तो न जाने कब का भूकम्प आ गया होता
धन्यवाद देते रहना हमें, बहुत ध्यान रखते हैं हम आप सबका सदैव ही
पानी पीते हैं, नहा-धो लेते हैं नहीं तो न जाने कब का सुनामी आ गया होता।
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आज़ादी की क्या कीमत
कहां समझे हम आज़ादी की क्या कीमत होती है।
कहां समझे हम बलिदानों की क्या कीमत होती है।
मिली हमें बन्द आंखों में आज़ादी, झोली में पाई हमने
कहां समझे हम राष्ट््भक्ति की क्या कीमत होती है।
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शांति बनाये रखने के लिए
अक्सर मुझे
बहुत-सी बातें
समझ नहीं आतीं।
विश्व शांति चाहता है
हर देश चाहता है
कि युद्ध न हों
सब अपने-आपमें
स्वतन्त्र-प्रसन्न रहें।
किन्तु
इस शांति को
बनाये रखने के लिए
भूख, ग़रीबी, शिक्षा
और रोज़गार को पीछे छोड़,
बनाने पड़ते हैं
अरबों-खरबों के
अस्त्र-शस्त्र
लाखों की संख्या में
तैयार किये जाते हैं सैनिक
सीमाएँ बांधी जाती हैं
समझौते किये जाते हैं
मीलों-मील दूर बैठे
निशाने बांध लिए जाते हैं।
जब हम
शांति के लिए
इतनी तैयारी करते हैं
तो युद्ध क्यों हो जाते हैं?
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जीने की चाहत
जीवन में
एक समय आता है
जब भीड़ चुभने लगती है।
बस
अपने लिए
अपनी राहों पर
अपने साथ
चलने की चाहत होती है।
बात
रोशनी-अंधेरे की नहीं
बस
अपने-आप से बात होती है।
जीवन की लम्बी राहों पर
कुछ छूट गया
कुछ छोड़ दिया
किसी से नहीं कोई आस होती है।
न किसी मंज़िल की चाहत है
न किसी से नाराज़गी-खुशी
बस अपने अनुसार
जीने की चाहत होती है।
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क्लोज़िंग डे
हर छ: महीने बाद
वर्ष में दो बार आने वाला
क्लोज़िंग डे
जब पिछले सब खाते
बन्द करने होते हैं
और शुरू करना होता है
फिर से नया हिसाब किताब।
मिलान करना होता है हर प्रविष्टि का,
अनेक तरह के समायोजन
और एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति।
मैंने कितनी ही बार चाहा
कि अपनी ज़िन्दगी के हर दिन को
बैंक का क्लोज़िंग डे बना दूं।
ज़िन्दगी भी तो बैंक का एक खाता ही है
पर फर्क बस इतना है कि
बैंक और बैंक के खाते
कभी तो लाभ में भी रहते हैं
ब्याज दर ब्याज कमाते हैं।
पर मेरी ज़िन्दगी तो बस
घाटे का एक उधार खाता बन कर रह गई है।
रोज़ शाम को
जब ज़िन्दगी की किताबों का
मिलान करने बैठती हूं
तो पाती हूं
कि यहां तो कुछ भी समायोजित नहीं होता।
कहीं कोई प्रविष्टि ही गायब है
तो कहीं एक के उपर एक
इतनी बार लिखा गया है कई कुछ
कि अपठनीय हो गया है सब।
फिर कहीं पृष्ट ही गायब हैं
और कहीं पर्चियां बिना हस्ताक्षर।
सब नियम विरूद्ध।
और कहीं दूर पीछे छूटते लक्ष्य।
कितना धोखा धड़ी भरा खाता है यह
कि सब नामे ही नामे है
जमा कुछ भी नहीं।
फिर खाता बन्द कर देने पर भी
उधार चुकता नहीं होता
उनका नवीनीकरण हो जाता है।
पिछला सब शेष है
और नया शुरू हो जाता है।
पिछले लक्ष्य अधूरे
नये लक्ष्यों का खौफ़।
एक एक कर खिसकते दिन।
दिन दिन से जुड़कर बनते साल।
उधार ही उधार।
कैसे चुकता होगा सब।
विचार ही विचार।
यह दिनों और सालों का हिसाब।
और उन पर लगता ब्याज।
इतिहास सदा ही लम्बा होता है
और वर्तमान छोटा।
इतिहास स्थिर होता है
और वर्तमान गतिशील।
सफ़र जारी है
उस दिन की ओर
जिस दिन
अपनी ज़िन्दगी के खातों में
कोई समायोजित प्रविष्टि,
कोई मिलान प्रविष्टि
करने में सफ़लता मिलेगी।
वही दिन
मेरी जिन्दगी का
ओपनिंग डे होगा
पर क्या कोई ऐसा भी दिन होगा ?
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सब साथ चलें बात बने
भवन ढह गये, खंडहर देखो अभी भी खड़ा है।
लड़खड़ाते कदमों से कौन पर्वत तक चढ़ा है।
जीवन यूं चलता है, सब साथ चलें, बात बने,
कठिन समय सहायक बनें, इंसान वही बड़ा है।
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नदिया से मैंने पूछा
नदिया से मैंने पूछा
कल-कल कर क्यों बहती हो।
बहते-बहते
कभी सिमट-सिमट कर
कभी बिखर-बिखर जाती हो।
कभी मधुर संगीत छेड़ती
कभी विकराल रूप दिखाती हो।
कभी सूखी,
कभी लहर-लहर लहराती हो।
नदिया बोली,
मुझसे क्या पूछ रहे
तुम भी तो ऐसे ही हो मानव।
पर मैं आज तुम्हें चेताती हूं।
इसीलिए,
कल-कल की बातें कहती हूं।
समझ सको तो, सम्हल सको तो
रूक कर, ठहर-ठहर कर
सोचो तुम।
बहते-बहते, सिमट-सिमट कर
अक्सर क्यों बिखर-बिखर जाती हूं ।
मधुर संगीत छेड़ती
क्यों विकराल रूप दिखाती हूं।
जब सूखी,
फिर कहां लहर-लहर लहराती हूं।
मैं आज तुम्हें चेताती हूं।
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काश ! हम कोई शिला होते
पत्थरों में प्यार तराशते हैं
और जिह्वा को कटार बनाये घूमते हैं।
छैनी जब रूप-आकार तराशती है
तब एक संसार आकार लेता है।
तूलिका जब रंग बिखेरती है
तब इन्द्रधनुष बिखरते हैं।
किन्तु जब हम
अन्तर्मन के भावों को
रूप-आकार, रंगों का संसार
देने लगते हैं,
सम्बन्धों को तराशने लगते हैं
तब न जाने कैसे
छैनी-हथौड़े
तीखी कटार बन जाते हैं,
रंग उड़ जाते हैं
सूख जाते हैं।
काश ! हम भी
वास्तव में ही कोई शिला होते
कोई तराशता हमें,
रूप-रंग-आकार देता
स्नेह उंडेलता
कोई तो कृति ढलती,
कोई तो आकृति सजती।
कौन जाने
फिर रंग भी रंगों में आ जाते
और छैनी-हथौड़ी भी
सम्हल जाते।
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विश्वास के लायक कहीं कोई मिला नहीं था
जीवन में क्यों कोई हमारे हमराज़ नहीं था
यूं तो चैन था, हमें कोई एतराज़ नहीं था
मन चाहता है कि कोई मिले, पर क्या करें
विश्वास के लायक कहीं कोई मिला नहीं था