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इस छोटी सी उम्र में ही
जान ले ली है मेरी।
बड़ी बड़ी बातें सिखाते हैं
जीवन की राहें बताते हैं
मुझे क्या बनना है जीवन में
सब अपनी-अपनी राय दे जाते हैं।
और न जाने क्या क्या बताते-समझाते हैं।
इस छोटी सी उम्र में ही
एक नियमावली है मेरे लिए
उठने , बैठने, सोने, खाने-पीने की
पढ़ने और अनेक कलाओं में
पारंगत होने की।
अरे !
ज़रा मेरी उम्र तो देखो
मेरा कद, मेरा वजूद तो देखो
मेरा मजमून तो देखो।
किसे किसे समझाउं
मेरे खेलने खाने के दिन हैं।
देख रहे हैं न आप
अभी से मेरे सिर के बाल उड़ गये
आंखों पर चश्मा चढ़ गया।
तो
मैंने भी अपना मार्ग चुन लिया है।
पोथी उठा ली है
धूनी रमा ली है
शाम पांच बजे
मेरा प्रवचन है
आप सब निमंत्रित हैं।
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प्यार इकरार की बात होती है
सुना है
चांदनी रात में
इश्क-मुहब्बत की
बहुत बात होती है।
प्यार भरे दिलों के
इज़हार की बात होती है।
पर हमारे साथ तो
सदा ही बहुत बेइंसाफ़ी होती है।
क्या करें,
जब भी अपने मन में
प्यार-इकरार की बात होती है,
आकाश पर न जाने कहां से
बादलों के
गड़गड़ाने की आवाज़ होती है।
हमारी हर
चांदनी रात, सदा ही
यूं ही बरबाद होती है।
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भावों की छप-छपाक
यूं ही जीवन जीना है।
नयनों से छलकी एक बूंद
कभी-कभी
सागर के जल-सी गहरी होती है,
भावों की छप-छपाक
न जाने क्या-क्या कह जाती है।
और कभी ओस की बूंद-सी
झट-से ओझल हो जाती है।
हो सकता है
माणिक-मोती मिल जायें,
या फिर
किसी नागफ़नी में उलझे-से रह जायें।
कौन जाने, कब
फूलों की सुगंध से मन महक उठे,
तरल-तरल से भाव छलक उठें।
इसी निराश-आस-विश्वास में
ज़िन्दगी बीतती चली जाती है।
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मेरे मन की चांदनी
सुना है मैंने
शरद पूर्णिमा के
चांद की चांदनी से
खीर दिव्य हो जाती है।
तभी तो मैं सोचता था
तुम्हें चांद कह देने से
तुम्हारी सुन्दरता
क्यों द्विगुणित हो जाती है,
मेरे मन की चांदनी
खिल-खिल जाती है।
चंदा की किरणें
धरा पर जब
रज-कण बरसाती हैं,
रूप निखरता है तुम्हारा,
मोतियों-सा दमकता है,
मानों चांदनी की दमक
तुम्हारे चेहरे पर
देदीप्यमान हो जाती है।
कभी-कभी सोचता हूं,
तुम्हारा रूप चमकता है
चांद की चांदनी से,
या चांद
तुम्हारे रूप से रूप चुराकर
चांदनी बिखेरता है।
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मन में विषधर पाले
विषधर तो है !
लेकिन देखना होगा,
विष कहां है?
आजकल लोग
परिपक्व हो गये हैं,
विष निकाल लिया जाता है,
और इंसान के मुख में
संग्रहीत होता है।
तुम यह समझकर
नाग को मारना,
कुचलना चाहते हो,
कि यही है विषधर
जो तुम्हें काट सकता है।
अब न तो
नाग पकड़ने वाले रह गये,
कि नाग का नृत्य दिखाएंगे,
न नाग पंचमी पर
दुग्ध-दहीं से अभिषेक करने वाले।
मन में विषधर पाले
ढूंढ लो चाहे कितने,
मिल जायेंगे चाहने वाले।
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नयनों में घिर आये बादल
धूप खिली, मौसम खुशनुमा, घूम रहे बादल
हवाएं चलीं-चलीं, गगन पर छितराए बादल
कुछ बूंदें बरसी, मन महका-बहका-पगला
तुम रूठे, नयनों में गहरे घिर आये बादल
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झूठे मुखौटे मत चढ़ा
झूठे मुखौटे मत चढ़ा।
असली चेहरा दुनिया को दिखा।
मन के आक्रोश पर आवरण मत रख।
जो मन में है
उसे निडर भाव से प्रकट कर।
यहां डर से काम नहीं चलता।
वैसे भी हंसी चेहरे,
और चेहरे पर हंसी,
लोग ज़्यादा नहीं सह पाते।
इससे पहले
कि कोई उतारे तुम्हारा मुखौटा,
अपनी वास्तविकता में जीओ,
अपनी अच्छाईयों-बुराईयों को
समभाव से समझकर
जीवन का रस पीओे।
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श्मशान में देखो
देश-प्रेम की आज क्यों बोली लगने लगी है
मौत पर देखो नोटों की गिनती होने लगी है
राजनीति के गलियारों में अजब-सी हलचल है
श्मशान में देखो वोटों की गिनती होने लगी है
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सिक्के सारे खन-खन गिरते
कहते हैं जी,
हाथ की है मैल रूपया,
थोड़ी मुझको देना भई।
मुट्ठी से रिसता है धन,
गुल्लक मेरी टूट गई।
सिक्के सारे खन-खन गिरते
किसने लूटे पता नहीं।
नोट निकालो नोट निकालो
सुनते-सुनते
नींद हमारी टूट गई।
छल है, मोह-माया है,
चाह नहीं है
कहने की ही बातें हैं।
मेरा पैसा मुझसे छीनें,
ये कैसी सरकार है भैया।
टैक्सों के नये नाम
समझ न आयें
कोई हमको समझाए भैया
किसकी जेबें भर गईं,
किसकी कट गईं,
कोई कैसे जाने भैया।
हाल देख-देखकर सबका
अपनी हो गई ता-ता थैया।
नोटों की गद्दी पर बैठे,
उठने की है चाह नहीं,
मोह-माया सब छूट गई,
बस वैरागी होने को
मन करता है भैया।
आगे-आगे हम हैं
पीछे-पीछे है सरकार,
बचने का है कौन उपाय
कोई हमको सुझाओ दैया।
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घुमक्कड़ हो गया है मन
घुमक्कड़ हो गया है मन
बिन पूछे बिन जाने
न जाने
निकल जाता है कहां कहां।
रोकती हूं, समझाती हूं
बिठाती हूं , डराती हूं, सुलाती हूं।
पर सुनता नहीं।
भटकता है, इधर उधर अटकता है।
न जाने किस किस से जाकर लग जाता है।
फिर लौट कर
छोटी छोटी बात पर
अपने से ही उलझता है।
सुलगता है।
ज्वालामुखी सा भभकता है।
फिर लावा बहता है आंखों से।
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कुछ सपने बोले थे कुछ डोले थे
कागज की कश्ती में
कुछ सपने थे
कुछ अपने थे
कुछ सच्चे, कुछ झूठ थे
कुछ सपने बोले थे
कुछ डोले थे
कुछ उलझ गये
कुछ बिखर गये
कुछ को मैंने पानी में छोड़ दिया
कुछ को गठरी में बांध लिया
पानी में कश्ती
इधर-उधर तिरती
हिलती
हिचकोले खाती
कहती जाती
कुछ टूटेंगे
कुछ नये बनेंगे
कुछ संवरेंगे
गठरी खुल जायेगी
बिखर-बिखर जायेगी
डरना मत
फिर नये सपने बुनना
नई नाव खेना
कुछ नया चुनना
बस तिरते रहना
बुनते रहना
बहते रहना