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बड़ी देर से निहार रही हूं
इस चित्र को]
और सोच रही हूं
क्या ये सास-बहू हैं
टैग ढूंढ रही हूं
कहां लिखा है
कि ये सास-बहू हैं।
क्यों सबको
सास-बहू ही दिखाई दे रही हैं।
मां-बेटी क्यों नहीं हो सकती
या दादी-पोती।
नाराज़ दादी अपनी पोती से
करती है इसरार
मैं भी चलूंगी साथ तेरे
मुझको भी ऐसा पहनावा ला दे
बहुत कर लिया चैका-बर्तन
मुझको भी माॅडल बनना है।
बूढ़ी हुई तो क्या
पढ़ा था मैंने अखबारों में
हर उमर में अब फैशन चलता है]
ले ले मुझसे चाबी-चैका]
मुझको
विश्व-सुन्दरी का फ़ारम भरना है।
चलना है तो चल साथ मेरे
तुझको भी सिखला दूंगी
कैसे करते कैट-वाक,
कैसे साड़ी में भी सब फबता है
दिखलाती हूं तुझको,
सिखलाती हूं तुझको
इन बालों का कैसे जूड़ा बनता है।
चल साथ मेरे
मुझको विश्व-सुन्दरी बनना है।
दे देना दो लाईक
और देना मुझको वोट
प्रथम आने का जुगाड़ करना है,
अब तो मुझको ही विश्व-सुन्दरी बनना है।
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जीवन की नवीन शुरुआत
जीवन के कुछ पल
अनमोल हुआ करते हैं,
बड़ी मुश्किल से
हाथ आते हैं
जब हम
सारे दायित्वों को
लांघकर
केवल अपने लिए
जीने की कोशिश करते हैं।
नहीं अच्छा लगता
किसी का हस्तक्षेप
किसी का अपनापन
किसी की निकटता
न करे कोई
हमारी वृद्धावस्था की चिन्ता
हमारी हँसी-ठिठोली में
न बने बाधा कोई
न सोचे कोई हमारे लिए
गर्मी-सर्दी या रोग,
अब लेने दो हमें
टेढ़ेपन का आनन्द
ये जीवन की
एक नवीन शुरुआत है।
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कुहासे में उलझी जि़न्दगी
कभी-कभी
छोटी-छोटी रोशनी भी
मन आलोकित कर जाती है।
कुहासे में उलझी जि़न्दगी
एक बेहिसाब पटरी पर
दौड़ती चली जाती है।
राहों में आती हैं
कितनी ही रोशनियां
कितने ठहराव
कुछ नये, कुछ पुराने,
जाने-अनजाने पड़ाव
कभी कोई अनायास बन्द कर देता है
और कभी उन्मुक्तु हो जाते हैं सब द्वार
बस मन आश्वस्त है
कि जो भी हो
देर-सवेर
अपने ठिकाने पहुंच ही जाती है।
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समझ लो क्या होते हैं कुकुरमुत्ते
बस कहने की बात है
बस मुहावरा भर है
कि उगते हैं कुकुरमुत्ते-से।
चले गये वे दिन
जब यहां वहां
जहां-तहां
दिखाई देते थे कुकुरमुत्ते।
लेकिन
अब नहीं दिखाई देते
कुकुरमुत्ते
जंगली नहीं रह गये
अब कुकुरमुत्ते
कीमत हो गई है इनकी
बिकते और खरीदे जाते हैं
वातानुकूलित भवनों में उगते हैं
भाव रखते हैं
ताव रखते हैं
किसी की ज़िन्दगी जीने का
हिसाब रखते हैं
घर-घर होते हैं कुकुरमुत्ते।
कहने को हैं
सब्जी-भर
समझ सको तो
समझ लो
अब क्या होते हैं कुकुरमुत्ते।
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किस बात का हम मान करें
कहते हैं
मिट्टी की यह देह
मिट्टी में मिल जायेगी।
मिट्टी चुन-चुन
थाप-थापकर
घट का निर्माण करें।
रंग-रूप में,
चमक-दमक में,
अपनी यूं ही शान करें।
ज़रा-सी धमक,
बिखर कर
फिर मिट्टी के नाम करें।
मिट्टी से बनते हैं,
फिर मिट्टी में मिल जाते हैं।
किस बात का हम मान करें।
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ताउते एवं यास तूफ़ान के दृष्टिगत रचना
अपनी सीमाओं का
अतिक्रमण करते हुए
लहरें आज शहरों में प्रवेश कर गईं।
उठते बवंडर ने
सागर में कश्तियों से
अपनी नाराज़गी जताई।
हवाओं की गति ने
सब उलट-पलट दिया।
घटाएं यूं घिरीं, बरस रहीं
मानों कोई आतप दिया।
प्रकृति के सौन्दर्य से
मोहित इंसान
इस रौद्र रूप के सामने
बौना दिखाई दिया।
प्रकृति संकेत देती है,
आदेश देती है, निर्देश देती है।
अक्सर
सम्हलने का समय भी देती है।
किन्तु हम
सदा की तरह
आग लगने पर
कुंआ खोदने निकलते हैं।
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आनन्द के कुछ पल
संगीत के स्वरों में कुछ रंग ढलते हैं
मनमीत के संग जीवन के पल संवरते हैं
ढोल की थाप पर तो नाचती है दुनिया
हम आनन्द के कुछ पल सृजित करते हैं।
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रंगीनियां तो बिखेर कर ही जाता है
सूर्य उदित हो रहा हो
अथवा अस्त,
प्रकाश एवं तिमिर
दोनों को लेकर आता है
और
रंगीनियां तो
बिखेर कर ही जाता है
आगे अपनी-अपनी समझ
कौन किस रूप में लेता है।
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मूर्तियों की आराधना
चित्राधारित रचना
जब मैं अपना शोध कार्य रही थी तब मैंने मूर्तिकला एवं वास्तुकला पर भी कुछ पुस्तकें पढ़ी थीं।
मैंने अपने अध्ययन से यह जाना कि प्रत्येक मूर्ति एवं वास्तु के निर्माण की एक विधि होती है। किसी भी मूर्ति को यूँ ही सजावट के तौर पर कहीं भी बैठकर नहीं बनाया जा सकता यदि उसका निर्माण पूजा-विधि के लिए किया जा रहा है। स्थान, व्यक्ति, निर्माण-सामग्री, निर्माण विधि सब नियम-बद्ध होते हैं। जो व्यक्ति मूर्ति का निर्माण करता है वह अनेक नियमों का पालन करता है, शाकाहारी एवं बहुत बार उपवास पर भी रहता है जब तक उसका कार्य पूरा नहीं हो जाता।
हमारे धर्म में अनेक देवी-देवताओं की पूजा होती है उनमें गणेश जी भी एक हैं। प्राचीन काल में प्रत्येक देवी-देवता की सम्पूर्ण पूजा विधि का पालन किया जाता था और उसी के अनुसार मूर्ति-निर्माण एवं स्थापना का कार्य।
आज हमारी पूजा-अर्चना व्यापारिक हो गई है। यह सिद्ध है कि प्रत्येक देवी-देवता की पूजा-विधि, मूर्ति-निर्माण विधि, पूजन-सामग्री एवं पूजा-स्थल में उनकी स्थापना विधि अलग-अलग है। किन्तु आज इस पर कोई विचार ही नहीं करता। एक ही धर्म-स्थल पर एक ही कमरे में सारे देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है, जबकि प्राचीन काल में ऐसा नहीं था।
सबसे बड़ी बात यह कि हम यह मानते हैं कि हमारा स्थान ईश्वर के चरणों में है न कि ईश्वर हमारे चरणों में।
हम निरन्तर यह तो देख रहे हैं कि कौन किसे खींच रहा है, कौन देख रहा है किन्तु यह नहीं देख पा रहे कि गणेश जी की मूर्ति को पैरों में रखकर ले जाया जा रहा है, कैसे होगी फिर उनकी पूजा-आराधना?
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प्यार की तलाश करना
हरा-हराकर सिखाया है ज़िन्दगी ने आगे बढ़ना
फूलों ने सिखाया है पतझड़ से मुहब्बत करना
कलम जब साथ नहीं देती, तब अन्तर्मन बोलता है
नफ़रतें तो हम बोते हैं, बस प्यार की तलाश करना
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रेखाओं का खेल है प्यारे
रेखाओं का खेल है प्यारे, कुछ शब्दों में ढल जाते हैं कुछ आकारों में
कुछ चित्रों को कलम बनाती, कुछ को उकेरती तूलिका विचारों में
भावों का संसार विचित्र, स्वयं समझ न पायें, औरों को क्या समझायें
न रूप बने न रंग चढ़े, उलझे-सुलझे रह जाते हैं अपने ही उद्गारों में