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अब
मुखौटे हाथ में लिए घूमते हैं।
डर नहीं रह गया अब,
कोई खींच के उतार न दे मुखौटा
और कोई देख न ले असली चेहरा
तो, कहां छिपते फिरेंगे।
मुखौटों की कीमत पहले भी थी
अब भी है।
फ़र्क बस इतना है
कि अब खुलेआम
बोली लगाये घूमते हैं।
मुखौटे हाथ में लिए घूमते हैं।
बेचते ही नहीं,
खरीदते भी हैं ।
और ज़रूरत आन पड़े
तो बड़ों बड़ों के मुखौटे
अपने चेहरे पर चढ़ाए
बेधड़क घूमते हैं।
किसी का भी चेहरा नोचकर
उसका मुखौटा बना
अपने चेहरे पर
चढ़ाए घूमते हैं।
जो इन मुखौटों से मिल सकता है
वह असली चेहरा कहां दे पाता कीमत
इसलिए
अपना असली चेहरा
बगल में दबाये घूमते हैं।
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एक नाम और एक रूप हो
एक नाम और एक रूप हो
मन्दिर-मन्दिर घूम रही मैं।
भगवानों को ढूंढ रही मैं।
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तू पालक, तू जगत-नियन्ता
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तू ही कर्ता, तू ही नियामक,
उलट-फेर न समझ रही मैं।
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दिन-भर कितना सोच रही मैं।
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किसको पूजूं, परख रही मैं।
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मेरी भी इक ले सुन,
एक नाम और एक रूप हो,
सबके मन में एक भाव हो,
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गरीबी हटाओ देश बढ़ाओ
पिछले बहत्तर साल से
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योजनाओं की भरमार है
धन अपार है।
मन्दिर-मस्जिद की लड़ाई में
धन की भरमार है।
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वादों की, इरादों की ,
किस्से-कहानियों की दरकार है।
खेलों के मैदान पर
अरबों-खरबों का
खिलवाड़ है।
रोज़ पढ़ती हूं अखबार
देर-देर तक सुनती हूं समाचार।
गरीबी हटेगी, गरीबी हटेगी
सुनते-सुनते सालों निकल गये।
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विकासशील से विकसित देश
बनने जा रहा है।
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खूब बिकते हैं वादे।
वातानूकूलित भवनों में
बन्द बोतलों का पानी पीकर
काजू-मूंगफ़ली टूंगकर
गरीबी की बात करते हैं।
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किसके लिए योजनाएं
और किसे घर
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आँख मूंद सपनों में जीने लगती हूँ
खिड़की से सूनी राहों को तकती हूँ
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इन आंखों का क्या करूं
शब्दों को बदल देने की
कला जानती हूं,
अपनी अभिव्यक्ति को
अनभिव्यक्ति बनाने की
कला जानती हूं ।
पर इन आंखों का क्या करूं
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सही समय पर
धोखा दे जाती हैं।
रोकने पर भी
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क्या-क्या कह जाती हैं।
जहां चुप रहना चाहिए
वहां बोलने लगती हैं
और जहां बोलना चाहिए
वहां
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ताक-झांक करती
धोखा देकर ही रहती हैं।
और कुछ न सूझे तो
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स्त्रियां ही नहीं
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तुम्हारे प्रेम में वियोगी हो गये।
निःसंदेह, सौन्दर्य के रूप हो तुम।
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राधा के साथ
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यमुना के नील जल में
गोपियों के संग रास-लीला,
आह ! मन बहक-बहक जाता है।
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होता था यह जगत।
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प्रेम की नवीन परिभाषा सिखाते थे तुम।
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आंखें बिछाये बैठे हैं हम।