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हवाएं बहक रहीं
मौसम सुहाना है
सावन में पंछी कूक रहे
वृक्षों पर
डाली-डाली
पल्लव झूम रहे
कहीं रिमझिम-रिमझिम
तो कहीं फुहारें
मन सरस-सरस
कोयल कूके
पिया-पिया
मैं निहार रही सूनी राहें
कब लौटोगे पिया
और तुम पूछ रहे
मन उदास-उदास क्यों है ?
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चंचल हैं सागर की लहरें
चंचल हैं सागर की लहरें।
कुछ कहना चाहती हैं।
किनारे तक आती हैं,
किन्तु नहीं मिलता किनारा,
लौट जाती हैं,
अपने-आपमें,
कभी बिखर कर,
कभी सिमट कर।
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वास्तविकता और कल्पना
सच कहा है किसी ने
कलाकार की तूलिका
जब आकार देती है
मन से कुछ भाव देती है
तब मूर्तियाँ बोलती हैं
बात करती हैं।
हमें कभी
कलाकार नहीं बताता
अपने मन की बात
कला स्वयँ बोलती है
कहानी बताती है
बात कहती है।
.
निरखती हूँ
कलाकार की इस
अद्भुत कला को,
सुनना चाहती हूँ
इसके मन की बात
प्रयास करती हूँ
मूर्ति की भावानाओं को
समझने का।
आपको
कुछ रुष्ट-सी नहीं लगी
मानों कह रही
हे पुरुष !
अब तो मुझे आधुनिक बना
अपने आनन्द के लिए
यूँ न सँवार-सजा
मैं चाहती हूँ
अपने इस रूप को त्यागना।
घड़े हटा, घर में नल लगवा।
वैसे आधुनिकाओं की
वेशभूषा पर
करते रहते हो टीका-टिप्पणियाँ,
मेरी देह पर भी
कुछ अच्छे वस्त्र सजाते
सुन्दर वस्त्र पहनाते।
देह प्रदर्शनीय होती हैं
क्या ऐसी
कामकाजी घरेलू स्त्रियाँ।
गांव की गोरी
क्या ऐसे जाती है
पनघट जल भरन को ?
हे आदमी !
वास्तविकता और अपनी कल्पना में
कुछ तो तालमेल बना।
समझ नहीं पाती
क्यों ऐसी दोगली सोच है तुम्हारी !!
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अन्तर्मन की आवाजें
अन्तर्मन की आवाजें अब कानों तक पहुंचती नहीं
सन्नाटे को चीरकर आती आवाजें अन्तर्मन को भेदती नहीं
यूं तो पत्ता भी खड़के, तो हम तलवार उठा लिया करते हैं
पर बडे़-बडे़ झंझावातों में उजडे़ चमन की बातें झकझोरती नहीं
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मन के इस बियाबान में
मन के बियाबान में
जब राहें बनती हैं
तब कहीं समझ पाते हैं।
मौसम बदलता है।
कभी सूखा,
तो कभी
हरीतिमा बरसती है।
जि़न्दगी बस
राहें सुझाती है।
उपवन महकता है,
पत्ती-पत्ती गुनगुन करती है।
फिर पतझड़, फिर सूखा।
फिर धरा के भीतर से ,
पनपती है प्यार की पौध।
उसी के इंतजार में खड़े हैं।
मन के इस बियाबान में
एकान्त मन।
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तरुणी की तरुणाई
मौसम की तरुणाई से मन-मग्न हुई तरुणी
बादलों की अंगड़ाई से मन-भीग गई तरूणी
चिड़िया चहकी, कोयल कूकी, मोर बोले मधुर
मन मधुर-मधुर, प्रेम-रस में डूब गई तरुणी
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मुस्कुराहटें बांटती हूँ
टोकरी-भर मुस्कुराहटें बांटती हूँ।
जीवन बोझ नहीं, ऐसा मानती हूँ।
काम जब ईमान हो तो डर कैसा,
नहीं किसी का एहसान माँगती हूँ।
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उल्लू बोला मिठू से
उल्लू बोला मिठू से
चल आज नाम बदल लें
तू उल्लू बन जा
और मैं बनता हूँ तोता,
फिर देखें जग में
क्या-क्या होता।
जो दिन में होता
गोरा-गोरा,
रात में होता काला।
मैं रातों में जागूँ
दिन में सोता
मैं निद्र्वंद्व जीव
न मुझको देखे कोई
न पकड़ सके कोई।
-
आजा नाम बदल लें।
-
फिर तुझको भी
न कोई पिंजरे में डालेगा,
और आप झूठ बोल-बोलकर
तुझको न बोलेगा कोई
हरि का नाम बोल।
-
चल आज नाम बदल लें
चल आज धाम बदल लें
कभी तू रातों को सोना
कभी मैं दिन में जागूँ
फिर छानेंगे दुनिया का
सच-झूठ का कोना-कोना।
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ज़िन्दगी में एक सबक
अंधेरे में भी रोशनी की एक चमक होती है
रोशनी में भी अंधेरे की एक लहर होती है
देखने वाली आंखें ही देख पाती हैं इन्हें
सहेज लें इन्हें, ज़िन्दगी में एक सबक होती है
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गीत मधुर हम गायेंगे
गीत मधुर हम गायेंगे
गई थी मैं दाना लाने
क्यों बैठी है मुख को ताने।
दो चींटी, दो पतंगे,
तितली तीन लाई हूं।
अच्छे से खाकर
फिर तुझको उड़ना
सिखलाउंगी।
पानी पीकर
फिर सो जाना,
इधर-उधर नहीं है जाना।
आंधी-बारिश आती है,
सब उजाड़ ले जाती है।
नीड़ से बाहर नहीं है आना।
मैं अम्मां के घर लेकर जाउंगी।
देती है वो चावल-रोटी
कभी-कभी देर तक सोती।
कई दिन से देखा न उसको,
द्वार उसका खटखटाउंगी,
हाल-चाल पूछकर उसका
जल्दी ही लौटकर आउंगी।
फिर मिलकर खिचड़ी खायेंगे,
गीत मधुर हम गायेंगे।
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बस एक हिम्मत की चाह
जीवन बोझ-सा
समस्याएं नाग-सी
तब चाहिए
तुम्हारा साथ
हाथ पकड़ा है
मैं तुम्हें समस्याओं से बचाउं
तुम मेरे साथ
तो जीवन भी बोझ-सा नहीं
बस एक हिम्मत की चाह
होंगे हम साथ-साथ