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बादल आये, वर्षा लाये।
बूंदे गिरतीं,
टप-टप-टप-टप।
बच्चे भागे ,
छप-छप-छप-छप।
मेंढक कूदे ,
ढप-ढप-ढप-ढप।
बकरी भागी, कुत्ता भागा।
गाय बोली मुझे बचाओ
भीग गई मैं
छाता लाओ, छाता लाओ।
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पहचान नहीं
धन-दौलत थी तो खुले द्वार थे हमारे लिए
जब लुट गई थी द्वार बन्द हुए हमारे लिए
नाम भूल गये, रिश्ते छूट गये, पहचान नहीं
जब दौलत लौटी, हार लिए खड़े हमारे लिए
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तुम मेरी छाया हो
तुम मेरी छाया हो, प्रतिच्छाया हो
पर तुम्हें
अपने कदमों के निशान नहीं दे रहा हूं।
हर छपक-छपाक के साथ
मिट जाते हैं पिछले निशान
और नये बनते हैं
जो आप ही सिमट जाते हैं
जल की गहराईयों में।
इस छपाछप-छपाछप से देखो तो
बूंदें कैसे मोतियों-सी खिलती हैं।
फिर गगन, हवाओं और सागर के बीच
कहीं छूट जाती हैं,
सतरंगी आभा बिखेरकर
अन्तर्मन को छू जाती हैं।
यह जीवन का आनन्द है।
पर याद रखना
गगन की नीलाभा में
पवन के वेग में
और जल की लहरों पर
कभी कोई छाप नहीं छूटती।
इसके लिए कठोर तपती धरा पर
छोड़ने पड़ते हैं
अपने कदमों के निशान
जो सदियों-सदियों तक
ध्वनित होते हैं
गगन की उंचाईयों में
पवन के वेग में
और जल की लहरों में।
पर यह भी याद रखना
छपक-छपाक, छपाछप-छपाछप
जीवन का उतना ही हिस्सा है
जितना गगन, पवन और जल में
नाम अंकित कर सकना।
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ईश्वर के रूप में चिकित्सक
कहते हैं
जीवन में निरोगी काया से
बड़ा कोई सुख नहीं
और रोग से बड़ा
कोई दुख नहीं।
जीवन का भी तो
कोई भरोसा नहीं
आज है कल नहीं।
किन्तु
जब जीवन है
तब रोग और मौत
दोनों के ही दुख से
कहाँ बच पाया है कोई।
किन्तु
कहते हैं
ईश्वर के रूप में
चिकित्सक आते हैं
भाग्य-लेख तो वे भी
नहीं मिटा पाते हैं
किन्तु
अपने जीवन को
दांव पर लगाकर
हमें जीने की आस,
एक विश्वास
और साहस का
डोज़ दे जाते हैं
और हम
यूँ ही मुस्कुरा जाते हैं।
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आँख मूंद सपनों में जीने लगती हूँ
खिड़की से सूनी राहों को तकती हूँ
उन राहों पर मन ही मन चलती हूँ
भटकन है, ठहराव है, झंझावात हैं
आँख मूंद सपनों में जीने लगती हूँ।
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मैं बहुत बातें करता हूं
मम्मी मुझको गुस्सा करतीं
पापा भी हैं डांट पिलाते
मैं बहुत बातें करता हूं
कहते-कहते हैं थक जाते
चिड़िया चीं-चीं-ची-चीं करती
कौआ कां-कां-कां-कां करता
टाॅमी दिन भर भौं-भौं करता
उनको क्यों नहीं कुछ भी कहते
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काश! कह सकूं याद नहीं अब
मैंने कब चलना सीखा
किसने सिखलाया था मुझको,
किसने थामी थी अंगुली
किसने गिरते से उठाया था मुझको,
याद नहीं अब।
कब छूटा था हाथ मेरा,
कब नया हाथ थामा था,
संगी-साथी थे मेरे
या फ़िर चली
अकेली जीवन-पथ पर
किसने समझाया था मुझको,
याद नहीं अब।
कहीं सरल-सुगम राहें थीं
कहीं अनगढ़ दीवारें थीं।
कहीं कंकड़ -पत्थर थे
कहीं पर्वत-सी बाधाएं थीं
क्या चुना था मैंने
याद नहीं अब।
राहों से राहें निकली थीं,
इधर-उधर भटक रही थी
कब लौट-लौटकर
नई शुरूआत कर रही थी,
याद नहीं अब।
क्या पाना चाहा था मैंने,
क्या खोया मैंने ,
बहुत बड़ी गठरी है।
काश!
कह सकूं,
याद नहीं अब।
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वक्त कहां किसी का
वक्त को
जब मैं वक्त नहीं दे पाई
तो वह कहां मेरा होता ।
कहा मेरे साथ चल, हंस दिया।
कहा, ठहर ज़रा,
मैं तैयार तो हो लूं
साथ तेरे चलने के लिए,
उपहास किया मेरा।
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चल आज गंगा स्नान कर लें
चल आज गंगा स्नान कर लें
पाप-पुण्य का लेखा कर लें
अगले-पिछले पाप धो लें
स्वर्ग-नरक से मुक्ति लें लें
*
भीड़ पड़ी है भारी देख
कूड़ा-कचरा फैला देख
अपने मन में मैला देख
लगा हुआ ये मेला देख
वी आई का रेला देख
चुनावों का आगाज़ तू देख
धर्मों का अंदाज़ तू देख
धर्मों का उपहास तू देख
नित नये बाबाओं का मेला देख
हाथी, घोड़े, उंट सवारी
उन पर बैठे बाबा भारी
मोटी-मोटी मालाएं देख
जटाओं का ;s स्टाईल तू देख
लैपटाप-मोबाईल देख
इनका नया अंदाज़ यहां
नित नई आवाज़ यहां
पण्डों-पुजारियों के पाखण्ड तू देख
नये-पुराने रिवाज़ तू देख
बाजों-गाजों संग आगाज़ तू देख।
पैसे का यहां खेला देख
अपने मन का मैला देख
चल आज गंगा स्नान कर लें
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एक फूल झरा
एक फूल झरा।
सबने देखा
रोज़ झरता था एक फूल
देखने के लिए ही
झरता थी फूल।
सबने देखा
और चले गये।
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तितली बोली
तितली उड़ती चुप-चुप, भंवरा करता भुन-भुन
भंवरे से बोली तितली, ज़रा मेरी बात तो सुन
तू काला, मैं सुंदर, रंग-बिरंगी, सबके मन भाती,
फूल-फूल मैं उड़ती फिरती, तू न सपने बुन।