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कामना है बस मेरी
जिह्वा पर सदैव
सरस्वती का वास हो।
वीणा से मधुर स्वर
कमल-सा कोमल भाव
जल-तरंगों की तरलता का आभास हो।
मिथ्या भाषण से दूर
वाणी में निहित
भाव, रस, राग हो।
गगन की आभा, सूर्य की उष्मा
चन्द्र की शीतलता, या हों तारे द्युतिमान
वाणी में सदैव सत्य का प्रकाश हो।
हंस सदैव मोती चुगे
जीवन में ऐसी शीतलता का भास हो।
किन्तु जब आन पड़े
तब, कलम क्या
वाणी में भी तलवार की धार सा प्रहार हो।
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होगा कैसे मनोरंजन
कौन कहे ताक-झांक की आदत बुरी, होगा कैसे मनोरंजन
किस घर में क्या पकता, नहीं पता तो कैसे मानेगा मन
अपने बर्तन-भांडों की खट-पट चाहे सुनाये पूरी कथा
औरों की सीवन उधेड़ कर ही तो मिलता है चैन-अमन
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जब नर या कुंजर कहा गया
महाभारत का युद्ध पलट गया जब नर या कुंजर कहा गया।
गज-गामिनी, मदमस्त चाल कहने वाला कवि आज कहां गया।
नहीं भाते इसे मानव-निर्मित वन-अभयारण्य, जल-स्त्रोत यहां।
मुक्त जीव, जब मूड बना, तब मनमौजी हर की पौड़ी नहा गया।
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सौन्दर्य निरख मन हरषा
पलभर में धूप निकलती, कभी बादल बरसें कण-कण।
धरा देखो महक रही, कलियां फूल बनीं, बहक रहा मन।
पल्लव झूम रहे, पंछी डाली-डाली घूम रहे, मन हरषा,
सौन्दर्य निरख, मन भी बहका, सब कहें इसे पागलपन।a
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वनचर इंसानों के भीतर
कहते हैं
प्रकृति स्वयंमेव ही
संतुलन करती है।
रक्षक-भक्षक स्वयं ही
सर्जित करती है।
कभी इंसान
वनचर था,
हिंसक जीवों के संग।
फिर वन छूट गये
वनचरों के लिए।
किन्तु समय बदला
इंसान ने छूटे वनों में
फिर बढ़ना शुरु कर दिया
और अपने भीतर भी
बसा लिए वनचर ।
और वनचर शहरों में दिखने लगे।
कुछ स्वयं आ पहुंचे
और कुछ को हम ले आये
सुरक्षा, मनोरजंन के लिए।
.
अब प्रतीक्षा करते हैं
इंसान फिर वनों में बसता है
या वनचर इंसानों के भीतर।
कहते हैं
प्रकृति स्वयंमेव ही
संतुलन करती है।
रक्षक-भक्षक स्वयं ही
सर्जित करती है।
कभी इंसान
वनचर था,
हिंसक जीवों के संग।
फिर वन छूट गये
वनचरों के लिए।
किन्तु समय बदला
इंसान ने छूटे वनों में
फिर बढ़ना शुरु कर दिया
और अपने भीतर भी
बसा लिए वनचर ।
और वनचर शहरों में दिखने लगे।
कुछ स्वयं आ पहुंचे
और कुछ को हम ले आये
सुरक्षा, मनोरजंन के लिए।
.
अब प्रतीक्षा करते हैं
इंसान फिर वनों में बसता है
या वनचर इंसानों के भीतर।
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प्यार के इज़हार के लिए
आ जा,
आज ज़रा
ताज के साये में
कुछ देर बैठ कर देखें।
क्या एहसास होता है
ज़रा सोच कर देखें।
किसी के प्रेम के प्रतीक को
अपने मन में उतार कर देखें।
क्या सोचकर बनाया होगा
अपनी महबूबा के लिए
इसे किसी ने,
ज़रा हम भी आजमां कर तो देखें।
न ज़मीं पर रहता है
न आसमां पर,
किस के दिल में कौन रहता है
ज़रा जांच कर देखें।
प्यार के इज़हार के लिए
इन पत्थरों की क्या ज़रूरत थी,
बस एक बार
हमारे दिल में उतर कर तो देखें।
एक अनछुए एहसास-सी,
तरल-तरल भाव-सी,
प्रेम की कही-अनकही कहानी
नहीं कह सकता यह ताज जी।
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हमारी राहें ये संवारते हैं
यह उन लोगों का
स्वच्छता अभियान है
जो नहीं जानते
कि राजनीति क्या है
क्या है नारे
कहां हैं पोस्टर
जहां उनकी तस्वीर नहीं छपती
छपती है उन लोगों की छवि
जिनकी
छवि ही नहीं होती
कुछ सफ़ेदपोश
साफ़ सड़कों पर
साफ़ झाड़ू लगाते देखे जाते रहे
और ये लोग उनका मैला ढोते रहे।
प्रकृति भी इनकी परीक्षा लेती है,
तरू अरू पल्लव झरते हैं
एक नये की आस में
हम आगे बढ़ते हैं
हमारी राहें ये
संवारते हैं
और हम इन्हीं को नकारते हैं।
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अपने कर्मों पर रख पकड़
चाहे न याद कर किसी को
पर अपने कर्मों से डर
न कर पूजा किसी की
पर अपने कर्मों पर रख पकड़ ।
न आराधना के गीत गा किसी के
बस मन में शुद्ध भाव ला ।
हाथ जोड़ प्रणाम कर
सद्भाव दे,
मन में एक विश्वास
और आस दे।
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विरोध से दुनिया नहीं चलती
ज़रा ज़रा सी बात पर अक्सर क्रोध करने लगी हूं मैं
किसी ने ज़रा सी बात कह दी तर्क करने लगी हूं मैं
विरोध से दुनिया नहीं चलती, सब समझाते हैं मुझे
समझाने वालों से भी इधर बहुत लड़ने लगी हूं मैं
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चल मन आज भीग लेते हैं ज़रा
चल मन आज भीग लेते हैं ज़रा
हवाओं का रूख देख लेते हैं ज़रा
धरा भी नम होकर स्वागत कर रही
हटा आवरण, हवाओं संग उड़ते हैं ज़रा
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कानून तोड़ना हक है मेरा
जीत हार की बात न करना
गाड़ी यहां अड़ी हुई है।
कितने आगे कितने पीछे,
किसकी आगे, किसकी पीछे,
जांच अभी चली हुई है।
दोपहिए पर बैठे पांच,
चौपहिए में दस-दस बैठें,
फिर दौड़ रहे बाजी लेकर,
कानून तोड़ना हक है मेरा
देखें, किसकी दाल यहां गली हुई है।
गली-गली में शोर मचा है
मार-काट यहां मची हुई है।
कौन है राजा, कौन है रंक
जांच अभी चली हुई है।
राजा कहता मैं हूं रंक,
रंक पूछ रहा तो मैं हूं कौन
बात-बात में ठनी हुई है।
सड़कों पर सैलाब उमड़ता
कौन सही है कौन नहीं है,
आज यहां हैं कल वहां थे,
क्यों सोचे हम,
हमको क्या पड़ी हुई है।
कल हम थे, कल भी होंगे,
यही समझकर
अपनी जेब भरी हुई है।
अभी तो चल रही दाल-रोटी
जिस दिन अटकेगी
उस दिन हम देखेंगे
कहां-कहां गड़बड़ी हुई है।
अभी क्या जल्दी पड़ी हुई है।