Share Me
बड़े-बड़े कर रहे आजकल बात बहुत साफ़-सफ़ाई की
शौचालय का विज्ञापन करके, करते खूब कमाई जी
इनकी भाषा, इनके शब्दों से हमें घिन आती है
बात करें महिलाओं की और करते आंख सिकाई जी
Share Me
Write a comment
More Articles
अनुप्रास अलंकार छन्दमुक्त रचना
अभी भी अक्तूबर में
ठहर ठहर कर
बेमौसम बारिश।
लौट लौट कर
आती सर्दी।
और ये ओले
रात फिर रजाई बाहर आई।
धुले कपड़े धूप में सुखाये।
पर खबरों ने खराब किया मन।
बेमौसम बारिश
बरबाद कर गई फ़सलें।
किसानों को कर्ज़
चुकाने में हुई चूक।
सरकार ने सदा की तरह
वो वादे किये
जो जानते थे सब
न निभायेगी सरकार
और टीवी वाले टंकार कर रहे हैं
नेताओं के निराले वादे।
और इस बीच
कितने किसानों ने
कड़वे आंसू पीकर
कर ली अपनी जीवन लीला समाप्त।
और हमने कागज़-कलम उठा ली
किसी कविता मंच पर
कविता लिखने के लिए।
Share Me
कभी धरा कभी गगन को छू लें
चल री सखी
आज झूला झूलें,
कभी धरा
तो कभी
गगन को छू लें,
डोर हमारी अपने हाथ
जहां चाहे
वहां घूमें।
चिन्ताएं छूटीं
बाधाएं टूटीं
सखियों संग
हिल-मिल मन की
बातें हो लीं,
कुछ गीत रचें
कुछ नवगीत रचें,
मन के सब मेले खेंलें
अपने मन की खुशियां लें लें।
नव-श्रृंगार करें
मन से सज-संवर लें
कुछ हंसी-ठिठोली
कुछ रूसवाई
कभी मनवाई हो ली।
मेंहदी के रंग रचें
फूलों के संग चलें
कभी बरसे हैं घन
कभी तरसे है मन
आशाओं के दीप जलें
हर दिन यूं ही महक रहे
हर दिन यूं ही चहक रहे।
चल री सखी
आज झूला झूलें
कभी धरा
तो कभी
गगन को छू लें।
Share Me
यह दिल की बात है
कभी दिल है
कभी दिलदार होगा ।
बादलों में
यूं हमारा नाम होगा ।
कभी होती है झड़ी
कभी चांद का रोब-दाब होगा ।
देखो , झांकती है रोशनी ।
कहती है दिलदार से
दीदार होगा ।
कभी टूटते हैं
कभी जुड़ते हैं दिल ।
इस बात का भी
कोई तो जवाबदार होगा ।
ज़रा-सी आह से
पिघल जाते हैं,
ऐसे दिल से दिल लगाकर,
कौन-सा सरोकार होगा ।
बदलते मौसम के आसार हैं ये ।
न दिल लगा
नहीं तो बुरा हाल होगा ।
Share Me
बड़े मसले हैं रोटी के
बड़े मसले हैं रोटी के।
रोटी बनाने
और खाने से पहले
एक लम्बी प्रक्रिया से
गुज़रना पड़ता है
हम महिलाओं को।
इस जग में
कौन समझा है
हमारा दर्द।
बस थाली में रोटी देखते ही
टूट पड़ते हैं।
मिट्टी से लेकर
रसोई तक पहुंचते-पहुंचते
किसे कितना दर्द होता है
और कितना आनन्द मिलता है
कौन समझ पाता है।
जब बच्चा
रोटी का पहला कौर खाता है
तब मां का आनन्द
कौन समझ पाता है।
जब किसी की आंखों में
तृप्ति दिखती है
तब रोटी बनाने की
मानों कीमत मिल जाती है।
लेकिन बस
इतना ही समझ नहीं आया
मुझे आज तक
कि रोटी गोल ही क्यों।
ठीक है
दुनिया गोल, धरती गोल
सूरज-चंदा गोल,
नज़रें गोल,
जीवन का पहिया गोल
पता नहीं और कितने गोल।
तो भले-मानुष
रोटी चपटी ही खा लो।
वही स्वाद मिलेगा।
Share Me
मर्यादाओं की चादर ओढ़े
मर्यादाओं की चादर में लिपटी खड़ी है नारी
न इधर राह न उधर राह, देख रही है नारी
किसको पूछे, किससे कह दे मन की व्यथा
फ़टी-पुरानी, उधड़ी चादर ओढ़े खड़ी है नारी
Share Me
बचपन-बचपन खेलें
हमने फ़ोन बनाया
न बिल आया
न हैंग हुआ।
न पैसे लगे
न टैंग हुआ।
न टूटे-फ़ूटे,
न सिग्नल की चिन्ता
न चार्ज किया।
न लड़ाई
न बहस-बसाई।
जब तक
चाहे बात करो
कोई न रोके
कोई न टोके।
हम भी लें लें
तुम भी ले लो
आओ आओ
बचपन-बचपन खेलें।
Share Me
दिल चीज़ क्या है
आज किसी ने पूछा
‘‘दिल चीज़ क्या है’’?
-
अब क्या-क्या बताएँ आपको
बड़़ी बुरी चीज़ है ये दिल।
-
हाय!!
कहीं सनम दिल दे बैठे
कहीं टूट गया दिल
किसी पर दिल आ गया,
किसी को देखकर
धड़कने रुक जाती हैं
तो कहीं तेज़ हो जाती हैं
कहीं लग जाता है किसी का दिल
टूट जाता है, फ़ट जाता है
बिखर-बिखर जाता है
तो कोई बेदिल हो जाता है सनम।
पागल, दीवाना है दिल
मचलता, बहकता है दिल
रिश्तों का बन्धन है
इंसानियत का मन्दिर है
ये दिल।
कहीं हो जाते हैं
दिल के हज़ार टुकड़े
और किसी -किसी का
दिल ही खो ही जाता है।
कभी हो जाती है
दिलों की अदला-बदली।
फिर भी ज़िन्दा हैं जनाब!
ग़जब !
और कुछ भी हो
धड़कता बहुत है यह दिल।
इसलिए
अपनी धड़कनों का ध्यान रखना।
वैसे तो सुना है
मिनट-भर में
72 बार
धड़कता है यह दिल।
लेकिन
ज़रा-सी ऊँच-नीच होने पर
लाखों लेकर जाता है
यह दिल।
इसलिए
ज़रा सम्हलकर रहिए
इधर-उधर मत भटकने दीजिए
अपने दिल को।
Share Me
कोल्हू के बैल सरकारी मेहमान हो गये हैं
कोल्हू के बैलों की
आजकल
नियुक्ति बदल गई है,
कुछ कार्यविधि भी।
गांवों से शहरों में
विस्थापित होकर
सरकारी मेहमान हो गये हैं।
अब वे पिसते नहीं
पीसते हैं तेल।
वे किस-किसका तेल निकालते हैं
पता नहीं।
यह भी पता नहीं लग पा रहा
कि कौन-सा तेल निकालते हैं।
वैसे तो पिछले 18 दिन से
चर्चा में है कोई तेल,
वही निकाल रहे हैं
या कोई और।
एक समिति का गठन
कर लिया गया है जांच के लिए।
पर कोई भी तेल निकालें
अन्ततः
निकलना तो हमारा ही है।
किन्तु ध्यान रहे
पीपा लेकर मत आ जाना
भरने के लिए।
इस तेल से रोटी न बना डालना,
क्योंकि, अभी सरकारी जांच जारी है,
कोई विदेशी सामान न लगा हो कोल्हू में।
Share Me
शायद यही जीवन है
इन राहों पर
खतरनाक अंधे मोड़
होते हैं
जो दिखते तो नहीं
बस अनुभव की बात होती है
कि आप जान जायें
पहचान जायें
इन अंधों मोड़ों को
नहीं जान पाते
नहीं देख पाते
नहीं समझ पाते
कि उस पार से आने वाला
जीवन लेकर आ रहा है
या मौत।
इधर ऊँचे खड़े पहाड़
कभी छत्रछाया-से लगते हैं
और कभी दरकते-खिसकते
जीवन लीलते।
उधर गहरी खाईयां डराती हैं
मोड़ों पर।
.
फिर
बादलों के घेरे
बरसती बूंदें
अनुपम, अद्भुत,
अनुभूत सौन्दर्य में
उलझता है मन।
.
शायद यही जीवन है।
Share Me
चल न मन,पतंग बन
आकाश छूने की तमन्ना है
पतंग में।
एक पतली सी डोर के सहारे
यह जानते हुए भी
कि कट सकती है,
फट सकती है,
लूट ली जा सकती है
तारों में उलझकर रह सकती है
टूटकर धरा पर मिट्टी में मिल सकती है।
किन्तु उन्मुक्त गगन
जीवन का उत्साह
खुली उड़ान,
उत्सव का आनन्द
उल्लास और उमंग।
पवन की गति,
कुछ हाथों की यति
रंगों की मति
राहें नहीं रोकते।
* * * *
चल न मन,
पतंग बन।