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जीवन बड़ा सरल सहज अपना-सा हो जाता है
रूढ़ियों के प्रतिकार का जब साहस आ जाता है
डरते रहते हैं हम यूं ही समाज की बातों से
बंधनों का विरोध कर मन तुष्टि पा जाता है
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जरा सी रोशनी के लिए
जरा सी रोशनी के लिए
सूरज धरा पर उतारने में लगे हैं
जरा सी रोशनी के लिए
दीप से घर जलाने में लगे हैं
ज़रा-सी रोशनी के लिए
हाथ पर लौ रखकर घुमाने में लगे हैं
ज़रा-सी रोशनी के लिए
चांद-तारों को बहकाने में लगे हैं
ज़रा-सी रोशनी के लिए
आज की नहीं
कल की बात करने में लगे हैं
ज़रा -सी रोशनी के लिए
यूं ही शोर मचाने में लगे हैं।
.
यार ! छोड़ न !!
ट्यूब लाईट जला ले,
या फिर
सी एफ़ एल लगवा ले।।।
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हम श्मशान बनने लगते हैं
इंसान जब मर जाता है,
शव कहलाता है।
जिंदा बहुत शोर करता था,
मरकर चुप हो जाता है।
किन्तु जब मर कर बोलता है,
तब प्रेत कहलाता है।
.
श्मशान में टूटती चुप्पी
बहुत भयंकर होती है।
प्रेतात्माएं होती हैं या नहीं,
मुझे नहीं पता,
किन्तु जब
जीवित और मृत
के सम्बन्ध टूटते हैं,
तब सन्नाटा भी टूटता है।
कुछ चीखें
दूर तक सुनाई देती हैं
और कुछ
भीतर ही भीतर घुटती हैं।
आग बाहर भी जलती है
और भीतर भी।
इंसान है, शव है या प्रेतात्मा,
नहीं समझ आता,
जब रात-आधी-रात
चीत्कार सुनाई देती है,
सूर्यास्त के बाद
लाशें धधकती हैं,
श्मशान से उठती लपटें,
शहरों को रौंद रही हैं,
सड़कों पर घूम रही हैं,
बेखौफ़।
हम सिलेंडर, दवाईयां,
बैड और अस्पताल का पता लिए,
उनके पीछे-पीछे घूम रहे हैं
और लौटकर पंहुच जाते हैं
फिर श्मशान घाट।
.
फिर चुपचाप
गणना करने लगते हैं, भावहीन,
आंकड़ों में उलझे,
श्मशान बनने लगते हैं।
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अस्त्र उठा संधान कर
घृणा, द्वेष, हिंसा, अपराध, लोभ, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता के रावण बहुत हैं।
और हम हाथ जोड़े, बस राम राम पुकारते, दायित्व से भागते, सयाने बहुत हैं।
न आयेंगे अब सतयुग के राम तुम्हारी सहायता के लिए इन का संधान करने।
अपने भीतर तलाश कर, अस्त्र उठा, संधान कर, साहस दिखा, रास्ते बहुत हैं।
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हिंदी दिवस की आवश्यकता क्यों
14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को संविधान में राष्ट््रभाषा के रूप में मान्यता दी गई और हम इस दिन हिन्दी दिवस मनाने लगे। क्यों मनाते हैं हम हिन्दी दिवस? हिन्दी के लिए क्या करते हैं हम इस दिन? कितना चिन्तन होता है इस दिन हिन्दी के बारे में। हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर सरकारी, गैर सरकारी हिन्दी संस्थाएं कितनी योजनाएं बनती हैं? अखिल भारतीय स्तर के हिन्दी संस्थान हिन्दी की स्थिति पर क्या चिन्तन करते हैं? क्या कभी इस बात पर किसी भी स्तर पर चिन्तन किया जाता है कि वर्तमान में हिन्दी की देश में स्थिति क्या है और भविष्य के लिए क्या योजना होना चाहिए? शिक्षा में हिन्दी का क्या स्तर है, क्या इस बात पर कभी चर्चा होती है?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं में हैं।
प्रत्येक कार्यालय में हिन्दी दिवस मनाया जाता है। भाषण-प्रतियोगिताएं, लेखन प्रतियोगिताएं, कवि-सम्मेलन, कुछ सम्मान और पुरस्कार, और अन्त में समोसा, चाय, गुलाबजामुन के साथ हिन्दी दिवस सम्पन्न। तो इसलिए मनाते हैं हम हिन्दी दिवस।
नाम हिन्दी में लिख लिए, नामपट्ट हिन्दी में लगा लिए, जैसे छोटे-छोटे प्रचारात्मक प्रयासों से हिन्दी का क्या होगा?
हम चाहते हैं कि हिन्दी का प्रचार-प्रसार हो, हिन्दी शिक्षा का माध्यम बने, किन्तु क्या हम कोई प्रयास करते हैं? क्या आज तक किसी संस्था ने हिन्दी दिवस के दिन सरकार को कोई ज्ञापन दिया है कि हिन्दी को देश में किस तरह से लागू किया जाना चाहिए। हिन्दी संस्थानों का कार्य केवल हिन्दी की कुछ तथाकथित पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित करना, पुरस्कार बांटना और कुछ छात्रवृत्तियां देने तक ही सीमित है। हां, हिन्दी सरल होनी चाहिए, दूसरी भाषाओं के शब्दों को हिन्दी में लिया जाना चाहिए, हिन्दी बोलचाल की भाषा बननी चाहिए, अंग्रेज़ी का विरोध किया जाना चाहिए, बस हमारी इतनी ही सोच है।
वर्तमान में भारतीय भाषा वैभिन्नय एवं वैश्विक स्तर से यदि देखें तो हिन्दी में] हिन्दी माध्यम में एवं प्रत्येक विधा, ज्ञान का अध्ययन असम्भव प्रायः है, यह बात हमें ईमानदारी से मान लेनी चाहिए। हिन्दी को अपना स्थान चाहिए न कि अन्य भाषाओं का विरोध।
आज हिन्दी वर्णमाला का कोई एक मानक रूप नहीं दिखाई देता। दसवीं कक्षा तक विवशता से हिन्दी पढ़ाई और पढ़ी जाती है। किन्तु यदि हिन्दी विषय को, भाषा, साहित्य, इतिहास को प्रत्येक स्तर पर अनिवार्य कर दिया जाये तब हिन्दी को सम्भवतः उसका स्थान मिल सकता है। उच्च शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर हिन्दी की एक परीक्षा, अध्ययन अनिवार्य होना चाहिए, हिन्दी साहित्येतिहास, अनिवार्य कर दिया जाये, तब हिन्दी की स्थिति में सुधार आ सकता है।
आज हम बच्चों के लिए अपनी संस्कृति,परम्पराओं की बात करते हैं। यदि हम हिन्दी पढ़ते हैं तब हम अपनी संस्कृति, सभ्यता, प्राचीन साहित्य, कलाओं, परम्पराओं , सभी का अध्ययन कर सकते हैं। और इसके लिए एक बड़े अभियान की आवश्यकता है न कि हम यह सोच कर प्रसन्न हो लें कि अब तो फ़ेसबुक पर भी सब हिन्दी लिखते हैं।
अतः किसी एक दिन हिन्दी दिवस मनाने की आवश्यकता नहीं है, दीर्घकालीन योजना की आवश्यकता है।
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प्रकृति जब तेवर दिखाती है
जीवन-अंकुरण
प्रकृति का स्व-नियम है।
नई राहें
आप ढूंढती है प्रकृति।
जिजीविषा, न जाने
किसके भीतर कहां तक है,
इंसान कहां समझ पाया।
जीवन में हम
बनाते रह जाते हैं
नियम कानून,
बांधते हैं सरहदें,
कहां किसका अधिकार,
कौन अनधिकार।
प्रकृति
जब तेवर दिखाती है,
सब उलट-पुलट कर जाती है।
हालात तो यही कहते हैं,
किसी दिन रात में उगेगा सूरज
और दिन में दिखेंगें तारे।
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अस्त होते सूर्य को नमन करें
हार के बाद भी जीत मिलती है
चलो आज हम अस्त होते सूर्य को नमन करें
घूमकर आयेगा, तब रोशनी देगा ही, मनन करें
हार के बाद भी जीत मिलती है यह जान लें,
न डर, बस लक्ष्य साध कर, मन से यत्न करें
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कहां किस आस में
सूर्य की परिक्रमा के साथ साथ ही परिक्रमा करता है सूर्यमुखी
अक्सर सोचती हूं रात्रि को कहां किस आस में रहता है सूर्यमुखी
सम्भव है सिसकता हो रात भर कहां चला जाता है मेरा हमसफ़र
शायद इसीलिए प्रात में अश्रुओं से नम सुप्त मिलता है सूर्यमुखी
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अधिकार और कर्तव्य
अधिकार यूं ही नहीं मिल जाते,कुछ कर्त्तव्य निभाने पड़ते हैं
मार्ग सदैव समतल नहीं होते,कुछ तो अवरोध हटाने पड़ते हैं
लक्ष्य तक पहुंचना सरल नहीं,पर इतना कठिन भी नहीं होता
बस कर्त्तव्य और अधिकार में कुछ संतुलन बनाने पड़ते हैं
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ठकोसले बहुत हैं
न मन थका-हारा, न तन थका-हारा
किसी झूठ, किसी सच में फंसा बेचारा
यहां दुनियादारी के ठकोसले बहुत हैं
किस-किससे निपटे, बुरा फंसा बेचारा