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मौसम बदला, फूल खिले, भंवरे गुनगुनाते हैं।
सूरज ने धूप बिखेरी, पंछी मधुर राग सुनाते हैं।
जी चाहता है भूल जायें दुनियादारी के किस्से,
चलो मिलकर प्रेम-प्यार के मधुर गीत गाते हैं।
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वादों की फुलवारी
यादों का झुरमुट, वादों की फुलवारी
जीवन की बगिया , मुस्कानों की क्यारी
सुधि लेते रहना मेरी पल-पल, हर पल
मैं तुझ पर, तू मुझ पर हर पल बलिहारी
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मेरी आंखों में आँसू देख
मुझसे
प्याज न कटवाया करो।
मुझे
प्याज के आँसू न रुलाया करो।
मेरी आंखों में आँसू देख
न मुस्कुराया करो।
खाना बनाने की
रोज़-रोज़
नई-नई
फ़रमाईशें न बताया करो।
रोज़-रोज़ मुझसे खाना बनवाते हो
कभी तो बनाकर खिलाया करो।
चलो, न बनाओ
तो बस
कभी तो हाथ बंटाया करो।
श्रृंगार किये बैठी थी मैं
कुछ तो
मुझ पर तरस खाया करो।
श्रृंगार का सामान मांगती हूँ
तब मँहगाई का राग न गाया करो।
मेरी आँसू देखकर
न जाने कितनी कहानियाँ बनेंगीं,
हँस-हँसकर मुझे न चिड़ाया करो।
शब्दों से न सही
भावों से ही
कभी तो प्रेम-भाव जतलाया करो।
रूठकर बैठती हूँ
कभी तो मनाने आ जाया करो।
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मेरा नाम श्रमिक है
कहते हैं
पैरों के नीचे
ज़मीन हो
और सिर पर छत
तो ज़िन्दगी
आसान हो जाती है।
किन्तु
जिनके पैरों के नीचे
छत हो
और सिर पर
खुला आसमान
उनका क्या !!!
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मौसम के रूप समझ न आयें
कोहरा है या बादलों का घेरा, हम बनते पागल।
कब रिमझिम, कब खिलती धूप, हम बनते पागल।
मौसम हरदम नये-नये रंग दिखाता, हमें भरमाता,
मौसम के रूप समझ न आयें, हम बनते पागल।
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आशाओं के दीप
सुना है
आशाओं के
दीप जलते हैं।
शायद
इसी कारण
बहुत छोटी होती है
आशाओं की आयु।
और
इसी कारण
हम
रोज़-हर-रोज़
नया दीप प्रज्वलित करते हैं
आशाओं के दीप
कभी बुझने नहीं देते।
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अपना ही साथ हो
उम्र के इस पड़ाव पर
अनजान सुनसान राहों पर
जब नहीं पाती हूं
किसी को अपने आस पास
तब अपनी ही प्रतिकृति तराशती हूं ।
मन का कोना कोना खोलती हूं उसके साथ।
बालपन से अब तक की
कितनी ही यादें और कितनी ही बातें
सब सांझा करती हूं इसके साथ।
लौट आता है मेरा बचपना
वह अल्हड़पन और खुशनुमा यादें
वो बेवजह की खिलखिलाहटें
वो क्लास में सोना
कंचे और गोटियां, सड़क पर बजाई सीटियां
छत की पतंग
आमपापड़ और खट्टे का स्वाद
पुरानी कापियां देकर
चूरन और रेती खाने की उमंग
गुल्लक से चुराए पैसे
फिल्में देखीं कैसे कैसे
टीचर की नकल, उनके नाम
और पता नहीं क्या क्या
अब सब तो बताया नहीं जा सकता।
यूं ही
खुलता है मन का कोना कोना।
बांटती हूं सब अपने ही साथ।
जिन्हें किसी से बांटने के लिए तरसता था मन
अपना ही हाथ पकड़कर आगे बढ़ जाती हूं
नये सिरे से।
यूं ही डरती थी, सहमी थी।
अब जानी हूं
ज़िन्दगी को पहचानी हूं।
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धन्यवाद देते रहना हमें Keep Thanking
आकाश को थाम कर खड़े हैं नहीं तो न जाने कब का गिर गया होता
पग हैं धरा पर अड़ाये, नहीं तो न जाने कब का भूकम्प आ गया होता
धन्यवाद देते रहना हमें, बहुत ध्यान रखते हैं हम आप सबका सदैव ही
पानी पीते हैं, नहा-धो लेते हैं नहीं तो न जाने कब का सुनामी आ गया होता।
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समझ लो क्या होते हैं कुकुरमुत्ते
बस कहने की बात है
बस मुहावरा भर है
कि उगते हैं कुकुरमुत्ते-से।
चले गये वे दिन
जब यहां वहां
जहां-तहां
दिखाई देते थे कुकुरमुत्ते।
लेकिन
अब नहीं दिखाई देते
कुकुरमुत्ते
जंगली नहीं रह गये
अब कुकुरमुत्ते
कीमत हो गई है इनकी
बिकते और खरीदे जाते हैं
वातानुकूलित भवनों में उगते हैं
भाव रखते हैं
ताव रखते हैं
किसी की ज़िन्दगी जीने का
हिसाब रखते हैं
घर-घर होते हैं कुकुरमुत्ते।
कहने को हैं
सब्जी-भर
समझ सको तो
समझ लो
अब क्या होते हैं कुकुरमुत्ते।
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कहां सीख पाये हैं हम
नयनों की एक बूंद
सागर के जल से गहरी होती है
ढूंढोगे तो किन्तु
जलराशि जब अपने तटबन्धों को
तोड़ती है
तब भी विप्लव होता है
और जब भीतर ही भीतर
सिमटती है तब भी।
कहां सीख पाये हैं हम
सीमाओं में रहना।
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जीना चाहती हूँ
पीछे मुड़कर
देखना तो नहीं चाहती
जीना चाहती हूँ
बस अपने वर्तमान में।
संजोना चाहती हूँ
अपनी चाहतें
अपने-आपमें।
किन्तु कहाँ छूटती है
परछाईयाँ, यादें और बातें।
उलझ जाती हूँ
स्मृतियों के जंजाल में।
बढ़ते कदम
रुकने लगते हैं
आँखें नम होने लगती हैं
यादों का घेरा
चक्रव्यूह बनने लगता है।
पर जानती हूँ
कुछ नया पाने के लिए
कुछ पुराना छोड़ना पड़ता है,
अपनी ही पुरानी तस्वीर को
दिल से उतारना पड़ता है,
लिखे पन्नों को फ़ाड़ना पड़़ता है,
उपलब्धियों के लिए ही नहीं
नाकामियों के लिए भी
तैयार रहना पड़ता है।