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किसी दूसरे की व्यथा को अपना बनाकर देख
औरों के लिए सुख का सपना सजाकर तो देख
अपने लिए,अपनों के लिए तो जीते हैं सभी यहां
मैत्री, प्रेम, सौहार्द,स्नेह के निर्झर बहाकर देख
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कह रहा है आइना
कह रहा है आईना
ज़रा रंग बदलकर देख
अपना मन बदलकर देख।
देख अपने-आपको
बार-बार देख।
न देख औरों की नज़र से
अपने-आपको,
बस अपने आईने में देख।
एक नहीं
अनेक आईने लेकर देख।
देख ज़रा
कितने तेरे भाव हैं
कितने हैं तेरे रूप।
तेरे भीतर
कितना सच है
और कितना है झूठ।
झेल सके तो झेल
नहीं तो
आईने को तोड़कर देख।
नये-नये रूप देख
नये-नये भाव देख
साहस कर
अपने-आपको परखकर देख।
देख-देख
अपने-आपको आईने में देख।
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असम्भव
उस दिन मैंने
एक सुन्दर सी कली देखी।
उसमें जीवन था और ललक थी।
आशा थी,
और जिन्दगी का उल्लास,
यौवन से भरपूर,
पर अद्भुत आश्चर्य,
कि उसके आस पास
कितने ही लोग थे,
जो उसे देख रहे थे।
उनके हाथ लम्बे,
और कद उंचे।
और वह कली,
फिर भी डाली पर
सुरक्षित थी।
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सिंदूरी शाम
अक्सर मुझे लगता है
दिन भर
आकाश में घूमता-घूमता
सूरज भी
थक जाता है
और संध्या होते ही
बेरंग-सा होने लगता है
हमारी ही तरह।
ठिठके-से कदम
धीमी चाल
अपने गंतव्य की ओर बढ़ता।
जैसे हम
थके-से
द्वार खटखटाते हैं
और परिवार को देखकर
हमारे क्लांत चेहरे पर
मुस्कान छा जाती है
दिनभर की थकान
उड़नछू हो जाती है
कुछ वैसे ही सूरज
जब बढ़ता है
अस्ताचल की ओर
गगन
चाँद-तारों संग
बिखेरने लगता है
इतने रंग
कि सांझ सराबोर हो जाती है
रंगों से।
और
बेरंग-सा सूरज
अनायास झूम उठता है
उस सिंदूरी शाम में
जाते-जाते हमें भी रंगीनियों से
भर जाता है।
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कभी धरा कभी गगन को छू लें
चल री सखी
आज झूला झूलें,
कभी धरा
तो कभी
गगन को छू लें,
डोर हमारी अपने हाथ
जहां चाहे
वहां घूमें।
चिन्ताएं छूटीं
बाधाएं टूटीं
सखियों संग
हिल-मिल मन की
बातें हो लीं,
कुछ गीत रचें
कुछ नवगीत रचें,
मन के सब मेले खेंलें
अपने मन की खुशियां लें लें।
नव-श्रृंगार करें
मन से सज-संवर लें
कुछ हंसी-ठिठोली
कुछ रूसवाई
कभी मनवाई हो ली।
मेंहदी के रंग रचें
फूलों के संग चलें
कभी बरसे हैं घन
कभी तरसे है मन
आशाओं के दीप जलें
हर दिन यूं ही महक रहे
हर दिन यूं ही चहक रहे।
चल री सखी
आज झूला झूलें
कभी धरा
तो कभी
गगन को छू लें।
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निद्रा पर एक झलकी
जब खरी–खरी कह लेते हैं,नींद भली-सी आती है
ज़्यादा चिकनी-चुपड़ी ठीक नहीं,चर्बी बढ़ जाती है
हृदयाघात का डर नहीं, औरों की नींद उड़ाते हैं
हमको तो जीने की बस ऐसी ही शैली आती है
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शंख-ध्वनि
तुम्हारी वंशी की धुन पर विश्व संगीत रचता है
तुम्हारे चक्र की गति पर जीवन चक्र चलता है
दूध-दहीं माखन, गैया-मैया, ग्वाल-बाल सब
तुम्हारी शंख-ध्वनि से मन में सब बसता है।
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आज़ादी की क्या कीमत
कहां समझे हम आज़ादी की क्या कीमत होती है।
कहां समझे हम बलिदानों की क्या कीमत होती है।
मिली हमें बन्द आंखों में आज़ादी, झोली में पाई हमने
कहां समझे हम राष्ट््भक्ति की क्या कीमत होती है।
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कुछ सपने कुछ अपने
कहने की ही बातें है कि बीते वर्ष अब विदा हुए
सारी यादें, सारी बातें मन ही में हैं लिए हुए
कुछ सपने, कुछ अपने, कुछ हैं, जो खो दिये
आने वाले दिन भी, मन में हैं एक नयी आस लिए
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आशाओं का उगता सूरज
चिड़िया को पंख फैलाए नभ में उड़ते देखा
मुक्त गगन में आशाओं का उगता सूरज देखा
सूरज डूबेगा तो चंदा को भेजेगा राह दिखाने
तारों को दोनों के मध्य हमने विहंसते देखा
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मोती बनीं सुन्दर
बूँदों का सागर है या सागर में बूँदें
छल-छल-छलक रहीं मदमाती बूँदें
सीपी में बन्द हुईं मोती बनीं सुन्दर
छू लें तो मानों डरकर भाग रही बूँदें