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प्रेम, सौहार्द,स्नेह के निर्झर बहाकर देख
किसी दूसरे की व्यथा को अपना बनाकर देख
औरों के लिए सुख का सपना सजाकर तो देख
अपने लिए,अपनों के लिए तो जीते हैं सभी यहां
मैत्री, प्रेम, सौहार्द,स्नेह के निर्झर बहाकर देख
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जल की महिमा
बूंद-बूंद से घट भरे, बूंद-बूंद से न घटे सागर
जल की महिमा वो जाने, जिसके पास न गागर
पानी की बरबादी चुभती है, खड़़े पानी में कीट
अंजुरी-भर पानी ले, सोचिए कैसे रखें पानी बचाकर
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डरने लगे हैं
हम द्वार खुले रखने से डरने लगे हैं
मन पर दूरियों के ताले लगने लगे हैं
कुछ कहने से डरता है मन हर बार
हम छाछ और पानी दोनों से जले हैं
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इंसान भटकता है जिजीविषा की राह ढूंढता
पत्थरों में चेहरे उकेरते हैं,
और इंसानियत के
चेहरे नकारते हैं।
आया होगा
उंट कभी पहाड़ के नीचे,
मुझे नहीं पता,
हम तो इंसानियत के
चेहरे तलाशते हैं।
इधर
पत्थरों में तराशते लगे हैं
आकृतियां,
तब इंसान को
कहां देख पाते हैं।
शिल्पकार का शिल्प
छूता है आकाश की उंचाईयां,
और इंसान
किसी कीट-सा
एक शहर से दूसरे शहर
भटकता है, दूर-दूर
गर्म रेतीली ज़मीन पर
जिजीविषा की राह ढूंढता ।
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जिजीविषा के लिए
रंगों की रंगीनियों में बसी है जि़न्दगी।
डगर कठिन है,
पर जिजीविषा के लिए
प्रतिदिन, यूं ही
सफ़र पर निकलती है जिन्दगी।
आज के निकले कब लौटेंगे,
यूं ही एकाकीपन का एहसास
देती रहती है जिन्दगी।
मृगमरीचिका है जल,
सूने घट पूछते हैं
कब बदलेगी जिन्दगी।
सुना है शहरों में, बड़े-बडे़ भवनों में
ताल-तलैया हैं,
घर-घर है जल की नदियां।
देखा नहीं कभी, कैसे मान ले मन ,
दादी-नानी की परी-कथाओं-सी
लगती हैं ये बातें।
यहां तो,
रेत के दानों-सी बिखरी-बिखरी
रहती है जिन्दगी।
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समझ समझ की बात
कहावत है
बड़ों का कहा
और आंवले का खाया
बाद में मीठा लगता है।
जब किसी ने समझाया था
तब तो
समझ में न आया था।
आज जीवन के इस मोड़ पर
समझ आने से क्या होगा
जो खोना था
खो दिया
और जो मिल सकता था
उससे हाथ धो बैठे।
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कोई तो आयेगा
भावनाओं का वेग
किसी त्वरित नदी की तरह
अविरल गति से
सीमाओं को तोड़ता
तीर से टकराता
कंकड़-पत्थर से जूझता
इक आस में
कोई तो आयेगा
थाम लेगा गति
सहज-सहज।
.
जीवन बीता जाता है
इसी प्रतीक्षा में
और कितनी प्रतीक्षा
और कितना धैर्य !!!!
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डर-डरकर ज़िन्दगी नहीं चलती
डर-डरकर ज़िन्दगी नहीं चलती यह जान ले सखी
उठ हाथ थाम, आगे बढ़, न साथ छोड़ेंगे रे सखी
घन छा रहे, रात घिर आई, नदी-नीर न बैठ अब
नया सोच, चल ज़िन्दगी की राहों को बदलें रे सखी
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जीवन में पतंग-सा भाव ला
जीवन में पतंग-सा भाव ला।
आकाश छूने की कोशिश कर।
पांव धरा पर रख।
सूरज को बांध
पतंग की डोरी में।
उंची उड़ान भर।
रंगों-रंगीनियों से खेल।
मन छोटा न कर।
कटने-टूटने से न डर।
एक दिन
टूटना तो सभी को है।
बस हिम्मत रख।
आकाश छू ले एक बार।
फिर टूटने का,
लौटकर धरा पर
उतरने का दुख नहीं सालता।
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हम ताली बजायेंगे z
चिड़िया रानी, चिड़िया रानी
खाती दाना, पीती पानी
जब देखो उड़ती-फिरती
तूने नहीं क्या क्लास लगानी
जब देखो चूं-चूं करती
इधर-उधर है उड़ती-फिरती
अ आ इ ई पढ़ ले, पढ़ ले
नहीं तो टीचर से पड़ेंगे डंडे
गिन-गिनकर लाना तिनके
गणित में लगेंगे पहाड़े किनके
इतना शोर मचाती हो तुम
कैसे तुम्हें समझाएं हम
क्लास से बाहर खड़ा कर देंगे
रोटी-पानी बन्द कर देंगे
मुर्गा बनाकर कुकड़ूं करवायेंगे
तुम्हें देख हम ताली बजायेंगे।