Share Me
इहलोक-परलोक यहीं,स्वर्ग-नरकलोक यहीं,जीवन-मरण भी यहीं
ज़िन्दगी से पहले और बाद कौन जाने कोई लोक है भी या नहीं
पाप-पुण्य के लेखे में फंसे, गणनाएं करते रहे, मरते रहे हर दिन
कल के,काल के डर से,आज ही तो मर-मर कर जी रहे हैं हम यहीं
Share Me
Write a comment
More Articles
नया सूर्य उदित होगा ही
आजकल रोशनियां
डराने लगी हैं,
अंधेरे गहराने लगे हैं।
विपदाओं की कड़ी
लम्बी हो रही है।
इंसान से इंसान
डरने लगा है।
ख़ौफ़ भीतर तक
पसरने लगा है।
राहें पथरीली होने लगी हैं,
पहचान मिटने लगी है।
ज़िन्दगी
बेनाम दिखने लगी है।
पर कब चला है इस तरह जीवन।
कब तक चलेगा इस तरह जीवन।
जानते हैं हम,
बादल घिरते हैं
तो बरस कर छंटते भी हैं।
बिजली चमकती है
तो रोशनी भी देती है।
अंधेरों को
परखने का समय आ गया है।
ख़ौफ़ के साये को
तोड़ने का समय आ गया है।
जीवन बस डर से नहीं चलता,
आशाओं को फिर से
सहेजने का समय आ गया है।
नया सूर्य उदित होने को है,
हाथ बढ़ाओ ज़रा,
हाथ से हाथ मिलाओ ज़रा,
सबको अपना बनाने का
समय आ गया है।
नया सूर्य उदित होगा ही,
अपने लिए तो सब जीते हैं,
औरों के दुख को
अपना बनाने का समय आ गया है।
Share Me
शोर भीतर की आहटों को
बाहर का शोर
भीतर की आहटों को
अक्सर चुप करवा देता है
और हम
अपने भीतर की आवाज़ों-आहटों को
अनसुना कर
आगे निकल जाते हैं,
अक्सर, गलत राहों पर।
मन के भीतर भी एक शोर है,
खलबली है, द्वंद्व है,
वाद-विवाद, वितंडावाद है
जिसकी हम अक्सर
उपेक्षा कर जाते हैं।
अपने-आप को सुनना ही नहीं चाहते।
कहीं डरते हैं
क्योंकि सच तो वहीं है
और हम
सच का सामना करने से
डरते हैं।
अपने-आप से डरते हैं
क्योंकि
जब भीतर की आवाज़ें
सन्नाटें का चीरती हुई
बाहर निकलेंगी
तब कुछ तो अनघट घटेगा
और हम
उससे ही बचना चाहते हैं
इसीलिए से डरते हैं।
Share Me
खाली कागज़ पर लकीरें खींचता रहता हूं मैं
खाली कागज पर लकीरें
खींचती रहती हूं मैं।
यूं तो
अपने दिल का हाल लिखती हूं,
पर सुना नहीं सकती
इस जमाने को,
इसलिए कह देती हूं
यूं ही
समय बिताने के लिए
खाली कागज पर लकीरें
खींचती रहती हूं मैं।
जब कोई देख लेता है
मेरे कागज पर
उतरी तुम्हारी तस्वीर,
पन्ना पलट कर
कह देती हूं,
यूं ही
समय बिताने के लिए
खाली कागज पर
लकीरें
खींचती रहती हूं मैं।
कोई गलतफहमी न
हो जाये किसी को
इसलिए
दिल का हाल
कुछ लकीरों में बयान कर
यूं ही
खाली कागज पर
लकीरें
खींचती रहती हूं मैं।
पर समझ नहीं पाती,
यूं ही
कागज पर खिंची खाली लकीरें
कब रूप ले लेती हैं
मन की गहराईयों से उठी चाहतों का
उभर आती है तुम्हारी तस्वीर ,
डरती हूं जमाने की रूसवाईयों से
इसलिए
अब खाली कागज पर लकीरें
भी नहीं खींचती हूं मैं।
Share Me
कैसा दुर्भाग्य है मेरा
कैसा दुर्भाग्य है मेरा
कि जब तक
मेरे साथ दो बैल
और ग़रीबी की रेखा न हो
मुझे कोई पहचानता ही नहीं।
जब तक
मैं असहाय, शोषित न दिखूँ
मुझे कोई किसान
मानता ही नहीं।
मेरी
इस हरी-भरी दुनियाँ में
एक सुख भरा संसार भी है
लहलहाती कृषि
और भरा-पूरा
परिवार भी है।
गुरूर नहीं है मुझे
पर गर्व करता हूँ
कि अन्न उपजाता हूँ
ग्रीष्म-शिशिर सब झेलता हूँ,
आशाओं में जीता हूँ
आशाएँ बांटता हूँ।
दुख-सुख तो
आने-जाने हैं।
अरबों-खरबों के बड़े-बड़े महल
अक्सर भरभराकर गिर जाते हैं,
तो कृषि की
असामयिक आपदा के लिए
हम सदैव तैयार रहते हैं,
हमारे लिए
दान-दया की बात कौन करता है
हम नहीं जानते।
अपने बल पर जीते हैं
श्रम ही हमारा धर्म है
बस इतना ही हम मानते।
Share Me
एक वृक्ष बरगद का सपना
मेरे आस-पास
एक बंजर है - रेगिस्तान।
मैंने अक्सर बीज बोये हैं।
पर वर्षा नहीं होती।
पर पानी के बिना भी
पता नहीं
कहां से नमी पाकर
अक्सर
हरी-हरी, विनम्र, कोमल-सी
कांेपल उग आया करती है
एक वृक्ष बरगद का सपना लेकर।
लेकिन वज्रपात !
इस बेमौसम
ओलावृष्टि का क्या करूं
जो सब-कुछ
छिन्न-भिन्न कर देती है।
पर मैं
चुप बैठने वाली नहीं हूं।
निरन्तर बीज बोये जा रही हूं।
यह निमन्त्रण है।
Share Me
तेरा ख़याल
उदास कर जाता है तेरा ख़याल
यादों में ले जाता है तेरा ख़याल
यूँ लगता है मानों युग बीत गये
मिलन की आस है तेरा ख़याल
Share Me
विश्वास का एहसास
हर दिन रक्षा बन्धन का-सा हो जीवन में
हर पल सुरक्षा का एहसास हो जीवन में
कच्चे धागों से बंधे हैं जीवन के सब रिश्ते
इन धागों में विश्वास का एहसास हो जीवन में
Share Me
तीर खोज रही मैं
गहरे सागर के अंतस में
तीर खोज रही मैं।
ठहरा-ठहरा-सा सागर है,
ठिठका-ठिठका-सा जल।
कुछ परछाईयां झलक रहीं,
नीरवता में डूबा हर पल।
-
चकित हूं मैं,
कैसे द्युतिमान जल है,
लहरें आलोकित हो रहीं,
तुम संग हो मेरे
क्या यह तुम्हारा अक्स है?
Share Me
जिन्दगी की डगर
जिन्दगी की डगर यूं ही घुमावदार होती हैं
कभी सुख, कभी दुख की जमा-गुणा होती है
हर राह लेकर ही जाती है धरा से गगन तक
बस कदम-दर-कदम बढ़ाये रखने की ज़रूरत होती है
Share Me
चिराग जलायें बैठे हैं
घनघोर अंधेरे में
जुगनुओं को जूझते देखा।
गहरे सागर में
दीपक को राह ढूंढते
तिरते देखा।
गहन अंधेरी रातों में
चांद-तारे भी
भटकते देखे मैंने,
रातों की आहट से
सूरज को भी डूबते देखा।
और हमारी
हिम्मत देखो
चिराग जलायें बैठे हैं
चलो, राह दिखाएं तुमको।