Share Me
नहीं जा पाये हम शाला, बाहर पड़ा था गहरा पाला
राह में इधर आई गउशाला, और उधर आई मधुशाला
एक कदम इधर जाता था, एक कदम उधर जाता था
न इधर मिली, न उधर मिली, हम रह गये हाला-बेहाला
Share Me
Write a comment
More Articles
बताते हैं क्या कीजिए
सुना है ज्ञान, ध्यान, स्नान एक अनुष्ठान है, नियम, काल, भाव से कीजिए
तुलसी-नीम डालिए, स्वच्छ जल लीजिए, मंत्र पढ़िए, राम-राम कीजिए।।
शून्य तापमान, शीतकाल, शीतल जल, काम इतना कीजिए बस चुपचाप
चेहरे को चमकाईए, क्रीम लगाईए, और हे राम ! हे राम ! कीजिए ।।
Share Me
कवियत्रियों की मारक पुकार
आज मेरा मन गद्गद् है। मेरा मन कभी भी इतनी देशीय, देश-भक्त नहीं हुआ जितना कल रात हुआ।
रात के 11 बजे यह हादसा हुआ।
अब कोई मुझसे पूछे कि इतनी रात मैं फ़ेसबुक पर क्या कर रही थी।
वही कर रही थी जो आप सब करते हैं। किन्तु आजकल किसी भी समय फ़ेसबुक पर जाईये आॅन लाईन काव्य पाठ सुनने को मिल जायेगा और जब मिलेगा तो सुनना भी चाहिए, इस आशा में कि शायद कभी मुझे भी इस मंच से काव्य पाठ का अवसर मिल जाये, इसी आशा में सुनना पड़ता है।
अब सीधे-सीधे मुद्दे की बात करती हूं।
रात्रि 11 बजे एक महान कवियत्री आॅन लाइन काव्य पाठ के माध्यम से चीन को सीधे-सीधे चेतावनी दे रही थी, ललकार रही थी, पुकार रही थी, चिल्ला-चिल्लाकर कह रही थी, अरे बाहर निकल, तुझे तो मैं देख लूंगी। उनकी हुंकार से बड़े-बड़े डर जाते, चीन की तो बात ही क्या। तू बाहर निकल कर तो दिखा, इधर नज़र उठाकर तो दिखा। इस देश की अनेक वीरांगनाओं को भी उन्होंने निमन्त्रण दिया। मुझे पहली बार ज्ञात हुआ कि मेरा देश इतनी वीरांगनाओं से प्लावित और ग्रसित है। मेरा तो ज्ञान ही अल्प मात्रा में है, मुझे तो बस एक झांसी की रानी का ही नाम स्मरण था, किन्तु उनका ज्ञान अद्भुत था। वे तो पता नहीं कितनी ही वीरांगनाओं को बुलाकर मंच पर ले आईं। यहां तक कि पद्मिनी जिसने जौहर किया था, उसे भी तलवार के साथ बुला लिया और पांच सौ और महिलाओं को भी आग से बाहर निकाल कर अपने साथ सेना बना ली, आओ, चीन वालो, तुम्हें तो हम ही देख लेंगे। अब रात्रि 11 बजे का समय था, मुझे डर लगने लगा , नींद के झोंके भी थे। किन्तु बीच-बीच में मुझे द्रौपदी, कुंती, राधा, मीरा, उर्वशी तक के भी नाम सुनाई दिये। मैंने जल्दी से पी सी बन्द किया, एक चादर ली और मुंह ढककर सोने का प्रयास करने लगी, कि कवियत्री महोदया ने आॅन-लाईन में मेरा नाम पढ़ लिया होगा, कहीं मुझे न पुकार ले। इस महोदया को तीन लोग सुन रहे थे, जिनमें एक मैं थी।
किन्तु जाने से पहले एक और बात बताना चाहूंगी कि मैंने सुना है कि इधर सीमाओं पर कवियत्रियों की नियुक्ति की जाने वाली है, कवि सम्मेलन आयोजित किये जाने की बात चल रही है, वे सीमाओं पर अपनी ओजपूर्ण, दहाड़पूर्ण, ललकारपूर्ण, हुंकारपूर्ण कविताएं सुनाएंगी, वे भी गा-गाकर, चीनी सेना तो यूं ही भाग लेगी।
सोचती हूं कुछ दिन के लिए कविताएं लिखना बन्द कर दूं।
Share Me
काजल पोत रहे अंधे
अंधे के हाथ बटेर लगना,
अंधों में काना राजा,
आंख के अंधे नाम नयनसुख,
सुने थे कुछ ऐसे ही मुहावरे।
पर आज ज्ञात हुआ
यहां तो
काजल पोत रहे अंधे।
बड़ी असमंजस की स्थिति बन आई है।
क्यों काजल पोत रहे अंधे।
किसके चेहरे पर हाथ
साफ़ कर रहे ये बंदे।
काजल लगवाने के लिए
उजले मुख लेकर
कौन घूम रहे बंदे।
अंधे तो पहले ही हैं
और कालिमा लेकर
अब कर रहे कौन ये धंधे।
कालिमा लग जाने के बाद
कौन बतलायेगा,
कौन समझायेगा,
कैसे लगी, किसने लगाई।
किसके लगी, कहां से आई।
काजल की है, या कोयले की,
या कर्मोa की,
करेगा कौन निर्णय।
कहीं ऐसा तो नहीं
जो पोत रहे काजल,
सब हैं आंख से चंगे,
और हम ही बन रहे अंधे।
क्योंकि हम देखने से डरने लगे हैं।
समझने से कतराने लगे हैं।
सच बोलने से हटने लगे हैं।
अधिकार की बात करने से बचने लगे हैं।
किसी का साथ देने से कटने लगे हैं।
और
गांधी के तीन बन्दर बनने में लगे हैं ।
न देखो, न सुनो, न बोलो।
‘‘बुरा’’ तो गांधी जी के साथ ही चला गया।
Share Me
विरोध से डरते हैं
सहनशीलता के दिखावे की आदत-सी हो गई है
शालीनता के नाम पर चुप्पी की बात-सी हो गई है
विरोध से डरते हैं, मुस्कुराहट छाप ली है चेहरों पर
सूखे फूलों में खुशबू ढूंढने की आदत-सी हो गई है।
Share Me
अभिनन्दन करते मातृभूमि का
वन्दन करते, अभिनन्दन करते मातृभूमि का जिस पर हमने जन्म लिया।
लोकतन्त्र देता अधिकार असीमित, क्या कर्त्तव्यों की ओर कभी ध्यान दिया।
देशभक्ति के नारों से, कुछ गीतों, कुछ व्याखानों से, जय-जय-जयकारों से ,
पूछती हूं स्वयं से, इससे हटकर देशहित में और कौन-कौन-सा कर्म किया।
Share Me
डर-डर कर जी रहे हैं
खुले आसमान के नीचे
विघ्न-बाधाओं को लांघकर
समुद्र मापकर
आकाश और धरा को नापकर,
हवाओं को बांधकर,
मानव समझ बैठा था
स्वयं को विधाता, सर्वशक्तिमान।
और आज
अपनी ही करनी से,
अपनी ही कथनी से,
अपने ही कर्मों से,
अपने लिए, आप ही,
तैयार कर लिया है कारागार।
सीमाओं में रहना सीख रहा है,
अपनापन अपनाना सीख रहा है।
उच्च विचार पता नहीं,
पर सादा जीवन जी रहा है।
इच्छाओं पर प्रतिबन्ध लगा है।
आशाओं पर तुषारापात हुआ है।
चाबी अपने पास है
पर खोलने से डरा हुआ है।
दूरियों में जी रहा है
नज़दीकियों से भाग रहा है।
हर पल मर-मर कर जी रहा है,
हर पल डर-डर कर जी रहा है।
Share Me
बीहड़ वन आकर्षित करते हैं मुझे
कभी भीतर तक जाकर
देखे तो नहीं मैंने बीहड़ वन,
किन्तु ,
आकर्षित करते हैं मुझे।
कितना कुछ समेटकर रहते हैं
अपने भीतर।
गगन को झुकते देखा है मैंने यहां।
पल भर में धरा पर
उतर आता है।
रवि मुस्कुराता है,
छन-छनकर आती है धूप।
निखरती है, कण-कण को छूती है।
इधर-उधर भटकती है,
न जाने किसकी खोज में।
वृक्ष निःशंक सर उठाये,
रवि को राह दिखाते हैं,
धरा तक लेकर आते हैं।
धाराओं को
यहां कोई रोकता नहीं,
बेरोक-टोक बहती हैं।
एक नन्हें जीव से लेकर
विशाल व्याघ्र तक रहते हैं यहां।
मौसम बदलने से
यहां कुछ नहीं बदलता।
जैसा कल था
वैसा ही आज है,
जब तक वहां मानव का
प्रवेश नहीं होता।
Share Me
तलाश
वे और थे
जो मंज़िल की तलाश में
भटका करते थे।
आज तो
मंज़िल मेरी तलाश में है।
क्योंकि
मंज़िल तक
कोई पहुंचता ही नहीं।
Share Me
बड़ा मुश्किल है Very Difficult
बड़ा मुश्किल है नाम कमाना
मेहनत का फल किसने जाना
बाधाएँ आती हैं आनी ही हैं
किसने राहें रोकी, भूल जाना
Share Me
अपने कदम बढ़ाना
किसी के कदमों के छूटे निशान न कभी देखना
अपने कदम बढ़ाना अपनी राह आप ही देखना
शिखर तक पहुंचने के लिए बस चाहत ज़रूरी है
अपनी हिम्मत लेकर जायेगी शिखर तक देखना