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बड़े-बड़े कर रहे आजकल
बड़े-बड़े कर रहे आजकल बात बहुत साफ़-सफ़ाई की
शौचालय का विज्ञापन करके, करते खूब कमाई जी
इनकी भाषा, इनके शब्दों से हमें घिन आती है
बात करें महिलाओं की और करते आंख सिकाई जी
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ज़िन्दगी में एक सबक
अंधेरे में भी रोशनी की एक चमक होती है
रोशनी में भी अंधेरे की एक लहर होती है
देखने वाली आंखें ही देख पाती हैं इन्हें
सहेज लें इन्हें, ज़िन्दगी में एक सबक होती है
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मानसून की आहट
मानसून की आहट डराने लगी है
गलियों में तालाब दिखाने लगी है
मेंढक टर्राते हैं रात भर नींद कहाँ
मच्छरों की भिन-भिन सताने लगी है।
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जिन्दगी कोई तकरार नहीं है
जिन्दगी गणित का कोई दो दूनी चार नहीं है
गुणा-भाग अगर कभी छूट गया तो हार नहीं है
कभी धूप है तो कभी छांव और कभी है आंधी
सुख-दुख में बीतेगी, जिन्दगी कोई तकरार नहीं है
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अब मौन को मुखर कीजिए
बस अब बहुत हो चुका,
अब मौन को मुखर कीजिए
कुछ तो बोलिए
न मुंह बन्द कीजिए।
संकेतों की भाषा
कोई समझता नहीं
बोलकर ही भाव दीजिए।
खामोशियां घुटती हैं कहीं
ज़रा ज़ोर से बोलकर
आवाज़ दीजिए।
जो मन न भाए
उसका
खुलकर विरोध कीजिए।
यह सोचकर
कि बुरा लगेगा किसी को
अपना मन मत उदास कीजिए।
बुरे को बुरा कहकर
स्पष्ट भाव दीजिए,
और यही सुनने की
हिम्मत भी
अपने अन्दर पैदा कीजिए।
चुप्पी को सब समझते हैं कमज़ोरी
चिल्लाकर जवाब दीजिए।
कलम की नोक तीखी कीजिए
शब्दों को आवाज़ कीजिए।
मौन को मुखर कीजिए।
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इस मौसम में
इस मौसम में कहाॅं चली तू ऐसे छोरी।
देख मौसम कैसा काला-काला होरी
पुल लचीला, रात अॅंधेरी
जल गहरा है, गिर न जाईयो छोरी।
बहकी-बहकी-सी चल रही
लिए लालटेन हाथ।
बरसात आई, बिजली कड़की,
ले लेती किसी को साथ।
दूर से देखे तुझे कोई
तो डर जायेगा छोरी।
फिर घर की बत्ती भी न बंद की
बिल आयेगा बहुत, कौन भरेगा गोरी।
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अब कांटों की बारी है
फूलों की बहुत खेती कर ली
अब कांटों की बारी है।
पत्ता–पत्ता बिखर गया
कांटों की सुन्दर मोहक क्यारी है।
न जाने कितने बीज बोये थे
रंग-बिरंगे फूलों के।
सपनों में देखा करती थी
महके महके गुलशन के रंगों के।
मिट्टी महकी, बरसात हुई
तब भी, धरा न जाने कैसे सूख गई।
नहीं जानती, क्योंकर
फूलों के बीजों से कांटे निकले
परख –परख कर जीवन बीता
कैसे जानूं कहां-कहां मुझसे भूल हुई।
दोष नहीं किसी को दे सकती
अब इन्हें सहेजकर बैठी हूं।
वैसे भी जबसे कांटों को अपनाया
सहज भाव से जीवन में
फूलों का अनुभव दे गये
रस भर गये जीवन में।
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एहसास
किसी के भूलने के
एहसास की वह तीखी गंध,
उतरती चली जाती है,
गहरी, कहीं,अंदर ही अंदर,
और कचोटता रहता है मन,
कि वह भूल
सचमुच ही एक भूल थी,
या केवल एक अदा।
फिर
उस एक एहसास के साथ
जुड़ जाती हैं,
न जाने, कितनी
पुरानी यादें भी,
जो सभी मिलकर,
मन-मस्तिष्क पर ,
बुन जाती हैं,
नासमझी का
एक मोटा ताना-बाना,
जो गलत और ठीक को
समझने नहीं देता।
ये सब एहसास मिलकर
मन पर,
उदासी का,
एक पर्दा डाल जाते हैं,
जो आक्रोश, झुंझलाहट
और निरुत्साह की हवा लगते ही
नम हो उठता है ,
और यह नमी,
न चाहते हुए भी
आंखों में उतर आती है।
न जाने क्या है ये सब,
पर लोग, अक्सर इसे
भावुकता का नाम दे जाते हैं।
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मन गया बहक बहक
चिड़िया की कुहुक-कुहुक, फूलों की महक-महक
तुम बोले मधुर मधुर, मन गया बहक बहक
सरगम की तान उठी, साज़ बजे, राग बने,
सतरंगी आभा छाई, ताल बजे ठुमक ठुमक
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सुन्दर-सुन्दर दुनियाd
परीलोक के सपने मन में
झूला झूलें नील गगन में
सुन्दर-सुन्दर दुनिया सारी
चंदा-तारों संग मन मगन में