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तुम अपनी राह चलो,
मैं अपनी राह चलूंगी।
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दोनों अपने-अपने पथ चलें
दोनों अपने-अपने कर्म करें।
होनी-अनहोनी जीवन है,
कल क्या होगा, कौन कहे।
चिन्ता मैं करती हूं,
चिन्ता तुम करते हो।
पीछे मुड़कर न देखो,
अपनी राह बढ़ो।
मैं भी चलती हूं
अपने जीवन-पथ पर,
एक नवजीवन की आस में।
तुम भी जाओ
कर्तव्य निभाने अपने कर्म-पथ पर।
डर कर क्या जीना,
मर कर क्या जीना।
आशाओं में जीते हैं।
आशाओं में रहते हैं।
कल आयेगा ऐसा
साथ चलेगें]
हाथों में हाथ थाम साथ बढ़ेगें।
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कोई तो आयेगा
भावनाओं का वेग
किसी त्वरित नदी की तरह
अविरल गति से
सीमाओं को तोड़ता
तीर से टकराता
कंकड़-पत्थर से जूझता
इक आस में
कोई तो आयेगा
थाम लेगा गति
सहज-सहज।
.
जीवन बीता जाता है
इसी प्रतीक्षा में
और कितनी प्रतीक्षा
और कितना धैर्य !!!!
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नेह का बस एक फूल
जीवन की इस आपाधापी में,
इस उलझी-बिखरी-जि़न्दगी में,
भाग-दौड़ में बहकी जि़न्दगी में,
नेह का बस कोई एक फूल खिल जाये।
मन संवर संवर जाता है।
पत्ती-पत्ती , फूल-फूल,
परिमल के संग चली एक बयार,
मन बहक बहक जाता है।
देखएि कैसे सब संवर संवर जाता है।
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और भी ग़म हैं मुहब्बत के सिवा
समझ नहीं पाते हैं
कि धरा पर
ये कैसे प्राणी रहते हैं
ज़रा-सा पास-पास बैठे देखा नहीं
कि इश्क, मुहब्ब्त, प्यार के
चर्चे होने लगते हैं।
तोता-मैना
की कहानियां बनाने लगते हैं।
अरे !
क्या तुम्हारे पास नहीं हैं
जिन्दगी के और भी मसले
जिन्हें सुलझाने के लिए
कंधे से कंधा मिलाकर चलना पड़ता है,
सोचना-समझना पड़ता है।
देखो तो,
मौसम बदल रहा है
निकाल रहे हो न तुम
गर्म कपड़े, रजाईयां-कम्बल,
हमें भी तो नया घोंसला बनाना है,
तिनका-तिनका जमाना है,
सर्दी भर के लिए भोजन जुटाना है।
बच्चों को उड़ना सिखाना है,
शिकारियों से बचना बताना है।
अब
हमारी जिन्दगी के सारे फ़लसफ़े तो
तुम्हारी समझ में आने से रहे।
गालिब ने कहा था
ज़माने में
और भी ग़म हैं मुहब्बत के सिवा
और
इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
बस इतना ही समझाना है !!!!
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मन की बातें न बताएं
पन्नों पर लिखी हैं मन की वे सारी गाथाएं
जो दुनिया तो जाने थी पर मन था छुपाए
पर इन फूलों के अन्तस में हैं वे सारी बातें
न कभी हम उन्हें बताएं न वो हमें जताएं
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अतिथि तुम तिथि देकर आना
शीत बहुत है, अतिथि तुम तिथि देकर आना
रेवड़ी, मूगफ़ली, गचक अच्छे से लेकर आना
लोहड़ी आने वाली है, खिचड़ी भी पकनी है
पकाकर हम ही खिलाएंगे, जल्दी-जल्दी जाना
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न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो
न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो
न तुम बोले न मैं, मुस्कानों में क्यों बातें करते हो
अनजाने-अनपहचाने रिश्ते अपनों से अच्छे लगते हैं
कदम ठिठकते, दहलीज रोकती, यूं ही मन चंचल करते हो
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हम सजग प्रहरी
द्वार के दोनों ओर खड़े हैं हम सजग प्रहरी
परस्पर हमारी न शत्रुता, न कोई भागीदारी
मध्य में एक रेखा खींचकर हमें किया विलग
इसी विभाजन के समक्ष हमारी मित्रता हारी
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कुछ मीठे बोल बोलकर तो देखते
कुछ मीठे बोल
बोलकर तो देखते
हम यूं ही
तुम्हारे लिए
दिल के दरवाज़े खोल देते।
क्या पाया तुमने
यूं हमारा दिल
लहू-लुहान करके।
रिक्त मिला !
कुछ सूखे रक्त कण !
न किसी का नाम
न कोई पहचान !
-
इतना भी न जान पाये हमें
कि हम कोई भी बात
दिल में नहीं रखते थे।
अब, इसमें
हमारा क्या दोष
कि
शब्दों पर तुम्हारी
पकड़ ही न थी।
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प्रतिबन्धित स्मृतियाँ
जब-जब
प्रतिबन्धित स्मृतियों ने
द्वार उन्मुक्त किये हैं
मन हुलस-हुलस जाता है।
कुछ नया, कुछ पुराना
अदल-बदलकर
सामने आ जाता है।
जाने-अनजाने प्रश्न
सर उठाने लगते हैं
शान्त जीवन में
एक उबाल आ जाता है।
जान पाती हूँ
समझ जाती हूँ
सच्चाईयों से
मुँह मोड़कर
ज़िन्दगी नहीं निकलती।
अच्छा-बुरा
खरा-खोटा,
सुन्दर-असुन्दर
सब मेरा ही है
कुछ भोग चुकी
कुछ भोगना है
मुँह चुराने से
पीछा छुड़ाने से
ज़िन्दगी नहीं चलती
कभी-न-कभी
सच सामने आ ही जाता है
इसलिए
प्रतीक्षा करती हूँ
प्रतिबन्धित स्मृतियों का
कब द्वार उन्मुक्त करेंगी
और आ मिलेंगी मुझसे
जीवन को
नये अंदाज़ में
जीने का
सबक देने के लिए।
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धन-दौलत जीवन का आधार
धन-दौलत पर दुनिया ठहरी, धन-दौलत से चलती है
जीवन का आधार है यह, सुच्ची रोटी इसी से बनती है
छल है, मोह-माया है, चाह नहीं, कहने की बातें हैं
नहीं हाथ की मैल है यह, श्रम से सबको फलती है।