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जीवन महकता है
गुलाब-सा
जब मनमीत मिलता है
अपने ख्वाब-सा
रंग भरे
महकते फूल
जीवन में आस देते हैं
एक विश्वास देते हैं
अपनेपन का आभास देते हैं।
सूखेंगे कभी ज़रूर
सूखने देना।
पत्ती –पत्ती सहेजना
यादों की, वादों की
मधुर-मधुर भावों से
जीवन-भर यूं ही मन हेलना ।
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समझाती है ज़िन्दगी
कदम-दर-कदम यूँ ही आगे बढ़ती है ज़िन्दगी
कौन आगे, कौन पीछे, नहीं देखती है ज़िन्दगी।
बालपन क्या जाने, क्या पीठ पर, क्या हाथ में
अकेले-दुकेले, समय पर आप ही समझाती है ज़िन्दगी।
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उनकी यादों में
क्यों हमारे दिन सभी मुट्ठियों से फ़िसल जायेंगे
उनकी यादों में जीयेंगे, उनकी यादों में मर जायेंगे
मरने की बात न करना यारो, जीने की बात करें
दिल के आशियाने में उनकी एक तस्वीर सजायेंगे।
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प्यार इकरार की बात होती है
सुना है
चांदनी रात में
इश्क-मुहब्बत की
बहुत बात होती है।
प्यार भरे दिलों के
इज़हार की बात होती है।
पर हमारे साथ तो
सदा ही बहुत बेइंसाफ़ी होती है।
क्या करें,
जब भी अपने मन में
प्यार-इकरार की बात होती है,
आकाश पर न जाने कहां से
बादलों के
गड़गड़ाने की आवाज़ होती है।
हमारी हर
चांदनी रात, सदा ही
यूं ही बरबाद होती है।
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बाल-मन की बात
हाथ जोड़कर तुम क्या मांग रहे मुझको कुछ भी नहीं पता
बैठा था गर्मी की छुट्टी की आस में, क्या की थी मैंने खता
मैं तो बस मांगूं एक टी.वी., एक पी.सी, एक आई फोन 6
और मांगू, गुम हो जाये चाबी स्कूल की, और मेरा बस्ता
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किस बात का हम मान करें
कहते हैं
मिट्टी की यह देह
मिट्टी में मिल जायेगी।
मिट्टी चुन-चुन
थाप-थापकर
घट का निर्माण करें।
रंग-रूप में,
चमक-दमक में,
अपनी यूं ही शान करें।
ज़रा-सी धमक,
बिखर कर
फिर मिट्टी के नाम करें।
मिट्टी से बनते हैं,
फिर मिट्टी में मिल जाते हैं।
किस बात का हम मान करें।
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पूछती है मुझसे मेरी कलम
राष्ट्र भक्ति के गीत लिखने के लिए कलम उठाती हूं जब जब
पूछती है मुझसे मेरी कलम, देश हित में तूने क्या किया अब तक
भ्रष्ट्राचार, झूठ, रिश्वतखोरी,अनैतकिता के विरूद्ध क्या लड़ी कभी
गीत लिखकर महान बनने की कोशिश करोगे कवि तुम कब तक
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जब तक जीवन है मस्ती से जिये जाते हैं
कितना अद्भुत है यह गंगा में पाप धोने, डुबकी लगाने जाते हैं।
कितना अद्भुत है यह मृत्योपरान्त वहीं राख बनकर बह जाते हैं।
कितने सत्कर्म किये, कितने दुष्कर्म, कहां कर पाता गणना कोई।
पाप-पुण्य की चिन्ता छोड़, जब तक जीवन है, मस्ती से जिये जाते हैं।
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आत्मनिर्भर हूं
देशभक्ति बस राजगद्दी पर बैठे लोगों की बपौती नहीं है
तिरंगा बेचती हूं,आत्मनिर्भर हूं,कोई फिरौती नहीं है
भिक्षा नहीं,दान नहीं,दया नहीं,आत्मग्लानि भी नहीं
पीड़ा नहीं कि शिक्षित नहीं हैं,मुस्कानों में कटौती नहीं है
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कांटों को थाम लीजिए
रूकिये ज़रा, मुहब्बत की बात करनी है तो कांटों को थाम लीजिए
छोड़िये गुलाब की चाहत को, अनश्वर कांटों को अपने साथ लीजिए
न रंग बदलेंगे, न बिखरेंगे, न दिल तोड़ेंगे, दूर तक साथ निभायेंगे,
फूल भी अक्सर गहरा घाव कर जाते हैं, बस इतना जान लीजिए
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अपना ही साथ हो
उम्र के इस पड़ाव पर
अनजान सुनसान राहों पर
जब नहीं पाती हूं
किसी को अपने आस पास
तब अपनी ही प्रतिकृति तराशती हूं ।
मन का कोना कोना खोलती हूं उसके साथ।
बालपन से अब तक की
कितनी ही यादें और कितनी ही बातें
सब सांझा करती हूं इसके साथ।
लौट आता है मेरा बचपना
वह अल्हड़पन और खुशनुमा यादें
वो बेवजह की खिलखिलाहटें
वो क्लास में सोना
कंचे और गोटियां, सड़क पर बजाई सीटियां
छत की पतंग
आमपापड़ और खट्टे का स्वाद
पुरानी कापियां देकर
चूरन और रेती खाने की उमंग
गुल्लक से चुराए पैसे
फिल्में देखीं कैसे कैसे
टीचर की नकल, उनके नाम
और पता नहीं क्या क्या
अब सब तो बताया नहीं जा सकता।
यूं ही
खुलता है मन का कोना कोना।
बांटती हूं सब अपने ही साथ।
जिन्हें किसी से बांटने के लिए तरसता था मन
अपना ही हाथ पकड़कर आगे बढ़ जाती हूं
नये सिरे से।
यूं ही डरती थी, सहमी थी।
अब जानी हूं
ज़िन्दगी को पहचानी हूं।