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बिन नाविक मैं बहती जाती
अपनी छाया से कहती जाती
तुम साथ चलो या न हो कोई
जीवन पथ पर बढ़ती जाती
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दिखाने को अक्सर मन हंसता है
चोट कहां लगी थी,
कब लगी थी,
कौन बतलाए किसको।
दिल छोटा-सा है
पर दर्द बड़ा है,
कौन बतलाए किसको।
गिरता है बार-बार,
और बार-बार सम्हलता है।
बहते रक्त को देखकर
दिखाने को अक्सर मन हंसता है।
मन की बात कह ले पगले,
कौन समझाए उसको।
न डर कि कोई हंसेगा,
या साथ न देगा कोई।
ऐसे ही दुनिया चलती है,
जीवन ऐसे ही चलता है,
कौन समझाए उसको।
आंसू भीतर-भीतर तिरते हैं,
आंखों में मोती बनते हैं,
तिनका अटका है आंख में,
कहकर,
दिखाने को अक्सर मन हंसता है।
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कड़वा सच पिलवाऊँगा
न मैंने पी है प्यारी
न मैंने ली है।
नई यूनिफ़ार्म
बनवाई है
चुनाव सभा के लिए आई है।
जनसभा से आया हूँ,
कुछ नये नारे
लेकर आया हूँ।
चाय नहीं पीनी है मुझको
जाकर झाड़ू ला।
झाड़ू दूँगा,
हाथ भी दिखलाऊँगा,
फूलों-सा खिल जाऊँगा,
साईकिल भी चलाऊँगा,
हाथी पर तुझको
बिठलाऊँगा,
फिर ढोलक बजवाऊँगा।
वहाँ तीर-कमान भी चलते हैं
मंजी पर बिठलाऊँगा।
आरी भी देखी मैंने
हल-बैल भी घूम रहे,
तुझको
क्या-क्या बतलाउँ मैं।
सूरज-चंदा भी चमके हैं
लालटेन-बल्ब
सब वहाँ लटके हैं।
चल ज़रा मेरे साथ
वहाँ सोने-चाँदी भी चमके है,
टाट-पैबन्द भी लटके हैं,
चल तुझको
असली दुनियाँ दिखलाऊँगा,
चाय-पानी भूलकर
कड़वा सच पिलवाऊँगा।
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मन चंचल करती तन्हाईयां
जीवन की धार में
कुछ चमकते पल हैं
कुछ झिलमिलाती रोशनियां
कुछ अवलम्ब हैं
तो कुछ
एकाकीपन की झलकियां
स्मृतियों को संजोये
मन लेता अंगड़ाईयां
मन को विह्वल करती
बहती हैं पुरवाईयां
कुछ ठिठके-ठिठके से पल हैं
कुछ मन चंचल करती तन्हाईयां
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मन उदास क्यों है
कभी-कभी
हम जान ही नहीं पाते
कि मन उदास क्यों है।
और जब
उदास होती हूं,
तो चुप हो जाती हूं अक्सर।
अपने-आप से
भीतर ही भीतर
तर्क-वितर्क करने लगती हूं।
तुम इसे, मेरी
बेबात की नाराज़गी
समझ बैठते हो।
न जाने कब के रूके आंसू
आंखों की कोरों पर आ बैठते हैं।
मन चाहता है
किसी का हाथ
सहला जाये इस अनजाने दर्द को।
लेकिन तुम इसे
मेरा नाराज़गी जताने का
एहसास कराने का
नारीनुमा तरीका मान लेते हो।
.
पढ़ लेती हूं
तुम्हारी आंखों में
तुम्हारा नज़रिया,
तुम्हारे चेहरे पर खिंचती रेखाएं,
और तुम्हारी नाराज़गी।
और मैं तुम्हें मनाने लगती हूं।
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साथी तेरा प्यार
साथी तेरा प्यार
जैसे खट्टा-मीठा
मिर्ची का अचार।
कभी पतझड़
तो कभी बहार,
कभी कण्टक चुभते
कभी फूल खिलें।
कभी कड़क-कड़क
बिजली कड़के
कभी बिन बादल बरसात।
कभी नदियां उफ़ने
कभी तलछट बनते
कभी लहर-लहर
कभी भंवर-भंवर।
कभी राग बने
सुर-साज सजे
जीवन की हर तान बजे।
लुक-छिप, लुक-छिप
खेल चला
जीवन का यूं ही
मेल चला।
साथी तेरा प्यार
जैसे खट्टा-मीठा अचार।
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वक्त कहां किसी का
वक्त को
जब मैं वक्त नहीं दे पाई
तो वह कहां मेरा होता ।
कहा मेरे साथ चल, हंस दिया।
कहा, ठहर ज़रा,
मैं तैयार तो हो लूं
साथ तेरे चलने के लिए,
उपहास किया मेरा।
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जीवन चलता तोल-मोल से
सड़कों पर बाज़ार बिछा है
रोज़ सजाते, रोज़ हटाते।
आज हरी हैं
कल बासी हो जायेंगी।
आस लिए बैठे रहते हैं
देखें कब तक बिक जायेंगी
ग्राहक आते-जाते
कभी ख़रीदें, कभी सुनाते।
धरा से उगती
धरा पर सजती
धरा पर बिकती।
धूप-छांव में ढलता जीवन
सांझ-सवेरे कब हो जाती।
तोल-मोल से काम चले
और जीवन चलता तोल-मोल से
यूँ ही दिन ढलते रहते हैं
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कोई बात ही नहीं
आज तो कोई बात ही नहीं है बताने के लिए
बस यूँ ही लिख रहे हैं कुछ जताने के लिए
दर्दे-दिल की बात तो अब हम करते ही नहीं
वे झट से आँसू बहाने लगते हैं दिखाने के लिए।
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कभी कुछ नहीं बदलता
एक वर्ष
और गया मेरे जीवन से।
.
अथवा
यह कहना शायद
ज़्यादा अच्छा लगेगा,
कि
एक वर्ष
और मिला जीने के लिए।
.
जीवन एक रेखा है,
जिस पर हम
बढ़ते हैं,
चलते तो आगे हैं,
पर पता नहीं क्यों,
पीछे मुड़कर
देखने लगते हैं।
.
समस्याओं,
उलझनों से जूझते,
बीत रहा था 2020।
जैसे रोज़, हर रोज़
प्रतीक्षा करते थे
एक नये वर्ष की,
खटखटाएगा द्वार।
भीतर आकर
सहलायेगा माथा।
न निराश हो,
आ गया हूं अब मैं
सब बदल दूंगा।
.
पर मुझे अक्सर लगता है,
कभी कुछ नहीं बदलता।
कुछ हेर-फ़ेर के साथ
ज़िन्दगी, दोहराती है,
बस हमारी समझ का फ़ेर है।
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कशमकश में बीतता है जीवन
सुख-दुख तो जीवन की बाती है
कभी जलती, कभी बुझती जाती है
यूँ ही कशमकश में बीतता है जीवन
मन की भटकन कहाँ सम्हल पाती है।