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चलो
आज जिन्दगी का
एक नया गीत गुनगुनाएं।
न कोई बात हो
न हो कोई किस्सा
फिर भी अकारण ही मुस्कुराएं
ठहाके लगाएं।
न कोई लय हो न धुन
न करें सरगम की चिन्ता
ताल सब बिखर जायें।
कुछ बेसुरी सी लय लेकर
सारी धुनें बदल कर
कुछ बेसुरे से राग नये बनाएं।
अलंकारों को बेसुध कर
तान को बेसुरा गायें।
न कोई ताल हो न कोई सरगम
मंद्र से तार तक
हर सप्तक की धज्जियां उड़ाएं
तानों को खींच –खींच कर
पुरज़ोर लड़ाएं
तारों की झंकार, ढोलक की थाप
तबले की धमक, घुंघुरूओं की छनक
बेवजह खनकाएं।
मीठे में नमकीन और नमकीन में
कुछ मीठा बनायें।
चाहने वालों को
ढेर सी मिर्ची खिलाएं।
दिन भर सोयें
और रात को सबको जगाएं।
पतंग के बहाने छत पर चढ़ जाएं
इधर-उधर कुछ पेंच लड़ाएं
कभी डोरी खींचे
तो कभी ढिलकाएं।
और, इस आंख का क्या करें
आप ही बताएं।
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पंखों की उड़ान परख
पंखों की उड़ान परख
गगन परख, धरा निरख ।
तुझको उड़ना सिखलाती हूं,
आशाओं के गगन से
मिलवाना चाहती हूं,
साहस देती हूं,
राहें दिखलाती हूं।
जीवन में रोशनी
रंगीनियां दिखलाती हूं।
पर याद रहे,
किसी दिन
अनायास ही
एक उछाल देकर
हट जाउंगी
तेरी राहों से।
फिर अपनी राहें
आप तलाशना,
जीवन भर की उड़ान के लिए।
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एक उपहार है ज़िन्दगी
हर रोज़ एक नई कथा पढ़ाती है जिन्दगी
हर दिन एक नई आस लाती है ज़िन्दगी
कभी हंसाती-रूलाती-जताती है ज़िन्दगी
हर दिन एक नई राह दिखाती है ज़िन्दगी
कदम दर कदम नई आस दिलाती है जिन्दगी
घनघोर घटाओं में भी धूप दिखाती है जिन्दगी
कभी बादलों में कड़कती-चमकती-सी है ज़िन्दगी
कुछ पाने के लिए निरन्तर भगाती है जिन्दगी
भोर से शाम तक देखो जगमगाती है जिन्दगी
झड़ी में भी कभी-कभी धूप दिखाती है जिन्दगी
कभी आशाओं का सागर लहराती है जिन्दगी
और कभी कभी खूब धमकाती भी है जिन्दगी
तब दांव पर पूरी लगानी पड़ती है जिन्दगी
यूं ही तो नहीं आकाश दिला देती है जिन्दगी
पर कुल मिलाकर देखें तो एक उपहार है ज़िन्दगी
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वक्त की रफ्तार देख कर
वक्त की रफ्तार देख कर
मैंने कहा, ठहर ज़रा,
साथ चलना है मुझे तुम्हारे।
वक्त, ऐसा ठहरा
कि चलना ही भूल गया।
आज इस मोड़ पर समझ आया,
वक्त किसी के साथ नहीं चलता।
वक्त ने बहुत आवाज़ें दी थीं,
बहुत बार चेताया था मुझे,
द्वार खटखटाया था मेरा,
किन्तु न जाने
किस गुरूर में था मेरा मन,
हवा का झोंका समझ कर
उपेक्षा करती रही।
वक्त के साथ नहीं चल पाते हम।
बस हर वक्त
किसी न किसी वक्त को कोसते हैं।
एक भी
ईमानदार कोशिश नहीं करते,
अपने वक्त को,
अपने सही वक्त को पहचानने की ।
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कितने सबक देती है ज़िन्दगी
भाग-दौड़ में लगी है ज़िन्दगी।
खेल-खेल में रमी है ज़िन्दगी।
धूल-मिट्टी में आनन्द देती
मज़े-मजे़ से बीतती है ज़िन्दगी।
तू हाथ बढ़ा, मैं हाथ थामूँ,
धक्का-मुक्की, उठन-उठाई
नाम तेरा यही है ज़िन्दगी।
आगे-पीछे देखकर चलना
बायें-दायें, सीधे-सीधे
या पलट-पलटकर,
सम्हल-सम्हलकर।
तब भी न जाने
कितने सबक देती है ज़िन्दगी।
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छनक-छन तारे छनके
ज़रा-सा मैंने हाथ बढ़ाया, नभ मेरे हाथ आया
छनक-छनक-छन तारे छनके, चंदा भी मुस्काया
सूरज की गठरी बांधी, सपनों की सीढ़ी तानी
इन्द्रधनुष ने रंग बिखेरे, मनमोहक चित्र बनाया
बदली के पीछे से कुछ बूंदे निकली, मन भरमाया
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छोटा-सा जीवन है हंस ले मना
छोटा-सा जीवन है हंस ले मना
जीवन में
बार-बार अवसर नहीं मिलते,
धूप ज्यादा हो
तो सदैव बादल नहीं घिरते,
चांद कभी कहीं नहीं जाता।
बस हमारी ही समझ का फेर है
कभी पूर्णिमा
कभी ईद और कभी अमावस
की बात करते हैं।
निभा सको तो निभा लो
हर मौसम को जीवन में
यूं जीने के अवसर
बार-बार नहीं मिलते।
रूठने-मनाने का
सिला तो जीवन-भर चला रहता है
अपनों को मनाने के
अवसर बार -बार नहीं मिलते।
कहते हैं छोटा-सा जीवन है
हंस ले मना,
यूं अकारण
खुश रहने के अवसर
बार-बार नहीं मिलते ।
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पांच-सात क्या पी ली
जगती हूं,उठती हूं, फिर सोती हूं,मनमस्त हूं
घड़ी की सूईयों को रोक दिया है, अलमस्त हूं
पूरा दिन पड़ा है कर लेंगे सारे काम देर-सबेर
बस पांच-सात क्या पी ली,(चाय),मदमस्त हूं
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आशाओं के दीप
सुना है
आशाओं के
दीप जलते हैं।
शायद
इसी कारण
बहुत छोटी होती है
आशाओं की आयु।
और
इसी कारण
हम
रोज़-हर-रोज़
नया दीप प्रज्वलित करते हैं
आशाओं के दीप
कभी बुझने नहीं देते।
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हम भी शेर हुआ करते थे
एक प्राचीन कथा है
गीदड़ ने शेर की खाल ओढ़ ली थी
और जंगल का राजा बन बैठा था।
जब साथियों ने हुंआ-हुंआ की
तब वह भी कर बैठा था।
और पकड़ा गया था,
पकड़ा क्या, बेचारा मारा गया था।
ज़माना बदल गया ।
शेर न सोचा
मैं गीदड़ की खाल ओढ़कर देखूं एक बार।
एक की देखा-देखी,
सभी शेरों ने गीदड़ की खाल ओढ़ ली
और हुंआ-हुंआ करने लगे।
धीरे-धीरे वे
अपनी असलियत भूलते चले गये।
आज सारे शेर
दहाड़ना भूलकर
हुंआ-हुंआ करने में लगे हैं।
अपना शिकार करना छोड़कर
औरों की जूठन खाने में लगे हैं।
गीदड़-भभकियां दे रहे हैं,
और सारे अपने-आप को
राजा समझ बैठे हैं।
शोक किस बात का, आरोप किस बात का।
हमारे भीतर का शेर भी तो
हुंआ-हुंआ करने में ही लगा है।
लेकिन बड़ी बात यह,
कि हमें यही नहीं पता
कि हम भीतर से वास्तव में शेर हैं
जो गीदड़ की खाल ओढ़े बैठे हैं,
या हैं ही गीदड़
और इस भ्रम में जी रहे हैं,
कि एक समय की बात है,
हम भी शेर हुआ करते थे।
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यह वह मेरा सूरज तो नहीं
यह वह सूरज तो नहीं
जिसकी मैं बात किया करती थी।
यह वह सूरज भी नहीं
जो अक्सर
मेरे सपनों में आया करता था।
यह वह सूरज तो नहीं
जो मुझे राह दिखाया करता था।
यह वह सूरज भी नहीं
जो मेरी राहें आलोकित
किया करता था।
यह वह सूरज भी नहीं
जिस पर मैं विश्वास किया करती थी।
यह वह सूरज भी नहीं
जो मुझे रोज़ मिला करता था।
गली-गली ढूंढ रही
मेरा सूरज कहां गया।
यह सूरज तो राहों से भटक गया।
अंधेरे-रोशनी की
पहचान भूल गया।
जहां रोशनी चाहिए
वहां अंधेरा पसरता है,
किसी के घर में
झांके बिना ही निकल जाता है,
और कहीं आग बरसाता है।
मेरा सूरज तो ऐसा नासमझ नहीं था।
कल मिला बड़े दिनों के बाद।
पूछा मैंने कहाँ गये,
ऐसे कैसे हो गये।
सूरज मुस्काया,
समय के साथ चलना सीख।
नज़र बदल, सड़क बदल
कुछ कांटे बिछा, कुछ ज़हर उगल।
न अंधेरे से डर
न रोशनी की चाहत रख
जो मिले, उसे निगल
आगे बढ़, सबकी खींच।
न आस रख, न विश्वास रख
न जी का जंजाल रख।
सबको तोड़, अपने को जोड़
बस ऐसा जीवन जी
इशारा कर दिया मैंने
शेष अपनी बुद्धि लगा
और मस्त जीवन जी।