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रंगों की रंगीनियों में बसी है जि़न्दगी।
डगर कठिन है,
पर जिजीविषा के लिए
प्रतिदिन, यूं ही
सफ़र पर निकलती है जिन्दगी।
आज के निकले कब लौटेंगे,
यूं ही एकाकीपन का एहसास
देती रहती है जिन्दगी।
मृगमरीचिका है जल,
सूने घट पूछते हैं
कब बदलेगी जिन्दगी।
सुना है शहरों में, बड़े-बडे़ भवनों में
ताल-तलैया हैं,
घर-घर है जल की नदियां।
देखा नहीं कभी, कैसे मान ले मन ,
दादी-नानी की परी-कथाओं-सी
लगती हैं ये बातें।
यहां तो,
रेत के दानों-सी बिखरी-बिखरी
रहती है जिन्दगी।
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अभिनन्दन करते मातृभूमि का
वन्दन करते, अभिनन्दन करते मातृभूमि का जिस पर हमने जन्म लिया।
लोकतन्त्र देता अधिकार असीमित, क्या कर्त्तव्यों की ओर कभी ध्यान दिया।
देशभक्ति के नारों से, कुछ गीतों, कुछ व्याखानों से, जय-जय-जयकारों से ,
पूछती हूं स्वयं से, इससे हटकर देशहित में और कौन-कौन-सा कर्म किया।
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सच्चाई से भाग रहे
मुख देखें बात करें।
सुख देखें बात करें।
सच्चाई से भाग रहे,
धन देखें बात करें।
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पर उपदेश कुशल बहुतेरे
यह मुहावरा सुना तो बहुत बार था किन्तु कभी इसकी गुणवत्ता की ओर ध्यान ही नहीं गया। धन्यवाद इस मंच का जिसने इस मुहावरे की महत्ता एवं विशेषताओं पर चिन्तन करने का अवसर प्रदान किया।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे!!
वाह!!
इसका अर्थ यह है कि जो कुशल होगा वही तो पर को अर्थात अन्य को बहुत सारे उपदेश दे सकेगा। जो कुशल ही नहीं है वह किसी को क्या उपदेश देगा और क्या मार्ग-दर्शन करेगा।
हम जीवन में कोई भी कार्य करते हैं हमारी जवाबदेही तय होती है। घर-परिवार में, समाज में, नौकरी में, कार्यालय में, व्यवसाय में, सड़क पर चलते हुए, हर जगह, हर जगह। हानि-लाभ, अच्छा-बुरा, खरा-खोटा, उत्तर-प्रति-उत्तर, लिखित, मौखिक। हम बच नहीं पाते।
किन्तु उपदेश देने में किसी उत्तरदायित्व का वहन नहीं होता। आप उपदेश दीजिए, चाय-नाश्ता लीजिए और निकल लीजिए। किन्तु ध्यान रहे कि न तो अपने घर बुलाकर उपदेश दीजिए और न किसी उपवन-बात में। जिसे उपदेश देना हो सीधे उसके घर जाकर ही स्थापित रहिए। उपदेशात्मक संस्था खोल लीजिए, दान-दक्षिणा लीजिए, दिल खोलकर परामर्श दीजिए।
किन्तु बस पहले से ही बचने का उपाय बांधकर चलिए।
कुछ ऐसे ‘‘ देखिए मैं तो अपने मन से एक अच्छा परामर्श आपको दे रहा हूँ /दे रही हूँ, यह तो आप पर और परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि फ़लित हो। और आपकी मनोभावनाओं का भी इस पर प्रभाव रहेगा। बस कोई कमी नहीं रहनी चाहिए हमारे बताये उपाय में। ’’
और जब आपका बताया परामर्श फ़लित न हो तो आपके पास पहले से ही तैयार उत्तर होगा कि ‘‘देखिए मैंने तो पहले ही कहा था कि मन से कीजिएगा, अथवा आपने कोई न कोई विधि तो छोड़ दी होगी। ’’
और साथ ही कुछ अगली सलाहें परोस दीजिए।। और आप जब अपना समय दे रहे हैं, दिमाग़ दे रहे हैं तो कुछ न कुछ मूल्य तो लेंगे ही, चाहे अच्छा चाय-पानी ही।
किन्तु यह उपदेश मैं आप सब मित्रों को दे रही हूँ, मेरे अपने लिए नहीं है।
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भूल-भुलैया की इक नगरी होती
भूल-भुलैया की इक नगरी होती
इसकी-उसकी बात न होती
सुबह-शाम कोई बात न होती
हर दिन नई मुलाकात तो होती
इसने ऐसा, उसने वैसा
ऐसे कैसे, वैसे कैसे
कोई न कहता।
रोज़ नई-नई बात तो होती
गिले-शिकवों की गली न होती,
चाहे राहें छोटी होतीं
या चौड़ी-चौड़ी होतीं
बस प्रेम-प्रीत की नगरी होती
इसकी-उसकी, किसकी कैसे
ऐसी कभी कोई बात न होती
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यह जीवन है
कुछ गांठें जीवन-भर
टीस देती हैं
और अन्त में
एक बड़ी गांठ बनकर
जीवन ले लेती हैं।
जीवन-भर
गांठों को उकेरते रहें
खोलते
या किसी से
खुलवाते रहें,
बेहिचक बांटते रहें
गांठों की रिक्तता,
या उनके भीतर
जमा मवाद उकेरते रहें,
तो बड़ी गांठें नहीं लेंगी जीवन
नहीं देंगी जीवन-भर का अवसाद।
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ऋद्धि सिद्धि बुध्दि के नायक
वक्रतुण्ड , एकदन्त, चतुर्भुज, फिर भी रूप तुम्हारा मोहक है
शांत चित्त, स्थिर पद्मासन में बैठै प्रिय भोज तुम्हारा मोदक है
ऋद्धि सिद्धि बुध्दि के नायक, क्षुद्र मूषक को सम्मान दिया
शिव गौरी के सुत, मां के वचन हेतु अपना मस्तक बलिदान किया
शांत चित्त, स्थिर पद्मासन में बैठै जग का नित कल्याण किया
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झूठे मुखौटे मत चढ़ा
झूठे मुखौटे मत चढ़ा।
असली चेहरा दुनिया को दिखा।
मन के आक्रोश पर आवरण मत रख।
जो मन में है
उसे निडर भाव से प्रकट कर।
यहां डर से काम नहीं चलता।
वैसे भी हंसी चेहरे,
और चेहरे पर हंसी,
लोग ज़्यादा नहीं सह पाते।
इससे पहले
कि कोई उतारे तुम्हारा मुखौटा,
अपनी वास्तविकता में जीओ,
अपनी अच्छाईयों-बुराईयों को
समभाव से समझकर
जीवन का रस पीओे।
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शायद प्यार से मन मिला नहीं था
यूं तो उनसे कोई गिला नहीं था
यादों का कोई सिला नहीं था
कभी-कभी मिल लेते थे यूं ही
शायद प्यार से मन मिला नहीं था
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नियति
जन्म होता है
मरने के लिए।
लड़कियां भी
जन्म लेती हैं
मरने के लिए।
अर्थात्
जन्म लेकर
मरना है
हर लड़की को।
फिर, जब
मरना तय है
तो क्या फ़र्क पड़ता है
कि वह
किस तरह मरे।
कल की मरती
आज मरे।
कल का क्लेश
आज कटे।
जलकर मरे
या डूबकर मरे।
या पैदा होने से
पहले ही मरे।
जब जन्म होता ही
मरने के लिए है
तो जल्दी जल्दी मरे।
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मुस्कानों की भाषा लिखूं
छलक-छलक-छलकती बूंदें,
मन में रस भरती बूंदें
लहर-लहर लहराता आंचल
मन हरषे जब घन बरसे
मुस्कानों की भाषा लिखूं
हवाओं संग उड़ान भरूं मैं
राग बजे और साज बजे
मन ही मन संगीत सजे
धारा संग बहती जाती
अपने में ही उड़ती जाती
कोई न रोके कोई न टोके
जीवन-भर ये हास सजे।