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मुस्कुराने की भी
अपनी एक अदा होती है
ज़िन्दगी बिताने की भी
अपनी एक अदा होती है।
ज़िन्दगी की इन लम्बी राहों पर
चलते चलते
फूलों संग मुस्कुराने की भी
अपनी एक अदा होती है।
बरसात की मार हो या
सूखे की धार
ज़िन्दगी को मनाने की भी
अपनी एक अदा होती है।
ठहर गये अगर
तो चुक जायेंगे
चलते रहने की भी
अपनी एक अदा होती है।
खड़े हैं आपकी प्रतीक्षा में,
चले आओ हमारे साथ,
ज़िन्दगी में संग संग
दूर-दूर तक
चलने की भी
अपनी एक अदा होती है।
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More Articles
ज़िन्दगी मिली है आनन्द लीजिए
ज़िन्दगी मिली है आनन्द लीजिए, मौत की क्यों बात कीजिए
मन में कोई भटकन हो तो आईये हमसे दो बात कीजिए
आंख खोलकर देखिए पग-पग पर खुशियां बिखरी पड़ी हैं
आपके हिस्से की बहुत हैं यहां, बस ज़रा सम्हाल कीजिए
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लीपा-पोती जितनी कर ले
रंग रूप की ऐसी तैसी
मन के भाव देख प्रेयसी
लीपा-पोती जितनी कर ले
दर्पण बोले दिखती कैसी
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मन मिलते हैं
जब हाथों से हाथ जुड़ते हैं
जीवन में राग घुलते हैं
रिश्तों की डोर बंधती है
मन से फिर मन मिलते हैं
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इरादे नेक हों तो
सिर उठाकर जीने का
मज़ा ही कुछ और है।
बाधाओं को तोड़कर
राहें बनाने का
मज़ा ही कुछ और है।
इरादे नेक हों तो
बड़े-बड़े पर्वत ढह जाते हैं
इस धरा और पाषाणों को भेदकर
गगन को देखने का
मज़ा ही कुछ और है।
बहुत कुछ सिखा जाता है यह अंकुरण
सुविधाओं में तो
सभी पनप लेते हैं
अपनी हिम्मत से
अपनी राहें बनाने मज़ा ही कुछ और है।
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पीछे मुड़कर क्या देखना
जीवन के उतार-चढ़ाव को
समझाती हैं ये सीढ़ियां
दुख-सुख के पल आते-जाते हैं
ये समझा जाती हैं ये सीढ़ियां
जीवन में
कुछ गहराते अंधेरे हैं
और कुछ होती हैं रोशनियां
हिम्मत करें
तो अंधेरे को बेधकर
रोशनी का मार्ग
दिखाती हैं ये सीढ़ियां
जो बीत गया
सो बीत गया
पीछे मुड़कर क्या देखना
आगे की राह
दिखाती हैं ये सीढि़यां
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ज़िन्दगी की पथरीली राहों में
सुना था
पत्थरों में फूल खिलते हैं,
किन्तु यह लिखते समय
यह क्यों नहीं याद रहता
कि फूलों से ही
फल मिलते हैं।
ज़िन्दगी की
पथरीली राहों में,
कांटों से उलझकर,
मिट्टी से सुलझकर,
बस फूल खिलते रहें,
फल ज़रूर मिलेंगें।
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जीवन का आनन्द ले
प्रकृति ने पुकारा मुझे,
खुली हवाओं ने
दिया सहारा मुझे,
चल बाहर आ
दिल बहला
न डर
जीवन का आनन्द ले
सुख के कुछ पल जी ले।
वृक्षों की लहराती लताएँ
मन बहलाती हैं
हरीतिमा मन के भावों को
सहला-सहला जाती है।
मन यूँ ही भावनाओं के
झूले झूलता है
कभी हँसता, कभी गुनगुनाता है।
गुनगुनी धूप
माथ सहला जाती है
एक मीठी खुमारी के साथ
मानों जीवन को गतिमान कर जाती है।
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ठहरी ठहरी सी लगती है ज़िन्दगी
अब तो
ठहरी-ठहरी-सी
लगती है ज़िन्दगी।
दीवारों के भीतर
सिमटी-सिमटी-सी
लगती है ज़िन्दगी।
द्वार पर पहरे लगे हैं,
मन पर गहरे लगे हैं,
न कोई चोट है कहीं,
न घाव रिसता है,
रक्त के थक्के जमने लगे हैं।
भाव सिमटने लगे हैं,
अभिव्यक्ति के रूप
बदलने लगे हैं।
इच्छाओं पर ताले लगने लगे हैं।
सत्य से मन डरने लगा है,
झूठ के ध्वज फ़हराने लगे हैं।
न करना शिकायत किसी की
न बताना कभी मन के भेद,
लोग बस
तमाशा बनाने में लगे हैं।
न ग्रहण है न अमावस्या,
तब भी जीवन में
अंधेरे गहराने लगे हैं।
जीतने वालों को न पूछता कोई
हारने वालों के नाम
सुर्खियों में चमकने लगे हैं।
अनजाने डर और खौफ़ में जीते
अपने भी अब
पराये-से लगने लगे हैं।
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क्लोज़िंग डे
हर छ: महीने बाद
वर्ष में दो बार आने वाला
क्लोज़िंग डे
जब पिछले सब खाते
बन्द करने होते हैं
और शुरू करना होता है
फिर से नया हिसाब किताब।
मिलान करना होता है हर प्रविष्टि का,
अनेक तरह के समायोजन
और एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति।
मैंने कितनी ही बार चाहा
कि अपनी ज़िन्दगी के हर दिन को
बैंक का क्लोज़िंग डे बना दूं।
ज़िन्दगी भी तो बैंक का एक खाता ही है
पर फर्क बस इतना है कि
बैंक और बैंक के खाते
कभी तो लाभ में भी रहते हैं
ब्याज दर ब्याज कमाते हैं।
पर मेरी ज़िन्दगी तो बस
घाटे का एक उधार खाता बन कर रह गई है।
रोज़ शाम को
जब ज़िन्दगी की किताबों का
मिलान करने बैठती हूं
तो पाती हूं
कि यहां तो कुछ भी समायोजित नहीं होता।
कहीं कोई प्रविष्टि ही गायब है
तो कहीं एक के उपर एक
इतनी बार लिखा गया है कई कुछ
कि अपठनीय हो गया है सब।
फिर कहीं पृष्ट ही गायब हैं
और कहीं पर्चियां बिना हस्ताक्षर।
सब नियम विरूद्ध।
और कहीं दूर पीछे छूटते लक्ष्य।
कितना धोखा धड़ी भरा खाता है यह
कि सब नामे ही नामे है
जमा कुछ भी नहीं।
फिर खाता बन्द कर देने पर भी
उधार चुकता नहीं होता
उनका नवीनीकरण हो जाता है।
पिछला सब शेष है
और नया शुरू हो जाता है।
पिछले लक्ष्य अधूरे
नये लक्ष्यों का खौफ़।
एक एक कर खिसकते दिन।
दिन दिन से जुड़कर बनते साल।
उधार ही उधार।
कैसे चुकता होगा सब।
विचार ही विचार।
यह दिनों और सालों का हिसाब।
और उन पर लगता ब्याज।
इतिहास सदा ही लम्बा होता है
और वर्तमान छोटा।
इतिहास स्थिर होता है
और वर्तमान गतिशील।
सफ़र जारी है
उस दिन की ओर
जिस दिन
अपनी ज़िन्दगी के खातों में
कोई समायोजित प्रविष्टि,
कोई मिलान प्रविष्टि
करने में सफ़लता मिलेगी।
वही दिन
मेरी जिन्दगी का
ओपनिंग डे होगा
पर क्या कोई ऐसा भी दिन होगा ?
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हम तो आनन्दित हैं, तुमको क्या
इस जग में एक सुन्दर जीवन मिला है, मर्त्यन लोक है इससे क्या
सुख-दुख तो आने जाने हैं,पतझड़-सावन, प्रकाश-तम है हमको क्या
जब तक जीवन है, भूलकर मृत्यु के डर को जीत लें तो क्या बात है
कोई कुछ भी उपदेश देता रहे, हम तो आनन्दित हैं, तुमको क्या