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छोटी-सी है अर्चना,
छोटा-सा है भाव।
छोटी-सी है रोशनी।
अर्पित हैं कुछ फूल।
नेह-घृत का दीप समर्पित,
अपनी छाया को निहारे।
तिरते-तिरते जल में
भावों का गहरा सागर।
हाथ जोड़े, आंख मूंदे,
क्या खोया, क्या पाया,
कौन जाने।
छोटी रोशनियां
सदैव आकाश बड़ा देती हैं,
हवाओं से जूझकर
आभास बड़ा देती हैं।
सहज-सहज
जीवन का भास बड़ा देती हैं।
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तेरा ख़याल
उदास कर जाता है तेरा ख़याल
यादों में ले जाता है तेरा ख़याल
यूँ लगता है मानों युग बीत गये
मिलन की आस है तेरा ख़याल
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जीवन की डगर चल रही
राहें पथरीली
सुगम सुहातीं।
कदम-दर कदम
चल रहे
साथ न छूटे
बात न छूटे,
अगली-पिछली भूल
बस बढ़ते जाते।
साथ-साथ
चलते जाते।
क्यों आस करें किसी से
हाथों में हाथ दे
बढ़ते जाते।
जीवन की डगर चल रही,
मंज़िल की ओर बढ़ रही,
न किसी से शिकवा
न शिकायत।
धीरे-धीरे
पग-भर सरक रही,
जीवन की डगर चल रही।
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नादानियां भी आप ही तो कर रहे हैं हम
बाढ़ की विभीषिका से देखो डर रहे हैं हम
नादानियां भी आप ही तो कर रहे हैं हम
पेड़ काटे, नदी बांधी, जल-प्रवाह रोक लिए
आफ़त के लिए सरकार को कोस रहे हैं हम
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मैं उपवास नहीं करती
मैं उपवास नहीं करती।
वह वाला
उपवास नहीं करती
जिसमें बन्धन हो।
मैंने देखा है
जो उपवास करते हैं
सारा दिन
ध्यान रहता है
अरे कुछ नहीं खाना
कुछ नहीं पीना।
अथवा
यह खाना और
यह पीना।
विशेष प्रकार का भोजन
स्वाद
कभी नमक रहित
कभी मिष्ठान्न सहित।
किस समय, किस रूप में,
यही चर्चा रहती है
दो दिन।
फिर
विशेष पूजा-पाठ,
सामग्री,
चाहे-अनचाहे
सबको उलझाना।
मैं बस मस्ती में जीती हूँ,
अपने कर्मों का
ध्यान करती हूँ,
अपनी ही
भूल-चूक पर
स्वयँ प्रायश्चित कर लेती हूँ
और अपने-आपको
स्वयँ क्षमा करती हूँ।
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करिये योग भगाये रोग
कैसी विडम्बना एवं आश्चर्य की बात है कि जिस योग पद्धति का उल्लेख हमारे प्राचीनतम ग्रंथों ऋग्वेद एवं कठोपनिषद ग्रंथों में मिलता है, जो ईसा पूर्व के ग्रंथ हैं, उस प्राचीनतम योग पद्धति को हम आज प्रदर्शन के रूप में योगा डे के रूप में मना रहे हैं। पतंजलि का योगसूत्र योग का सबसे महत्वपूर्ण गं्रथ है। अन्य अनेक ग्रंथों में भी योग की परिभाषाएँ महत्व एवं क्रियाएँ उल्लिखित हैं। योग केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं है, अपितु एक मानसिक, चिकित्सीय पद्धति भी है।
वर्तमान में हम इस बात से ज़्यादा प्रसन्न नहीं हैं कि एक हमारी प्राचीनतम योग पद्धति जो लुप्त हो रही थी, पुनः प्रकाश में आई है, हमारे जीवन का हिस्सा बनने लगी है, उसके गुणों को हम अपने जीवन में उतारने में लगे हैं बल्कि हम इस बात की ज़्यादा खुशियाँ मनाने में लगे हैं कि देखिए हमारा योगा अब विश्व में मनाया जाने लगा है। हमारे योगा का अब अन्तर्राष्ट्रीय दिवस है।
यदि सत्य को समझने का साहस रखते हों तो आज भी योग हमारे दैनिक जीवन का, नित्यप्रति का हिस्सा नहीं बन सका है। चाहे विद्यालयों में यह एक विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा है किन्तु बच्चे भी इसे एक विषय के रूप में ही लेते हैं न कि दैनिक जीवन की एक अपरिहार्य क्रिया के रूप में, जीवन-शैली के रूप में अथवा चिकित्सा-पद्धति के रूप में। बड़े-बुजुर्ग पार्क में एकत्र होकर अनुलोम-विलोम आदि करते दिखाई दे जायेंगे अथवा एक-दो और क्रियाएँ , और हमारा योगा डे सम्पन्न हो जाता है।
21 जून को सड़कों पर छपी टी-शर्ट पहने, बढ़िया-सी चटाई बिछाये और बाद में कुछ खान-पानी ही योगा-डे की उपलब्धि बनकर रह जाते हैं।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में योग का जो महत्व दर्शाया गया है एवं क्रियाएँ बताईं गईं हैं हम उनसे अभी भी बहुत-बहुत दूर हैं। आवश्यकता है प्रत्येक स्तर पर प्रयास की, अभ्यास की, सम्मान की और इसे अपने दैनिन्दन जीवन का हिस्सा बनाने की। योग को उचित रूप में जीवन का हिस्सा बनाने से निश्चित रूप से आधुनिक जीवन शैली से उत्पन्न मानसिक, शारीरिक एवं अने मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान हो पायेगा।
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कदम रखना सम्भल कर
इन राहों पर कदम रखना सम्भल कर, फ़िसलन है बहुत
मन को कौन समझाये इधर-उधर तांक-झांक करे है बहुत
इस श्वेताभ नि:स्तब्धता के भीतर जीवन की चंचलता है
छूकर देखना, है तो शीतल, किन्तु जलन देता है बहुत
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आनन्द है प्यार में और हार में
जीवन की नैया बार-बार अटकती है मझधार में
पुकारती हूं नाम तुम्हारा बहती जाती हूं जलधार में
कभी मिलते,कभी बिछड़ते,कभी रूठते,कभी भूलते
यही तो आनन्द है हर बार प्यार में और हार में
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भाव तिरंगे के
बालमन भी समझ गये हैं भाव तिरंगे के
केशरी, श्वेत, हरे रंगों के भाव तिरंगे के
गर्व से शीश उठता है, देख तिरंगे को
शांति, सत्य, अहिंसा, प्रेम भाव तिरंगे के
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सपने अपने - अपने सपने
रेत के घर बनाने की एक कोशिश तो ज़रूर करना।
आकाश पर कसीदे काढ़ने की एक कोशिश तो ज़रूर करना।
जितनी चादर हो उतने पैर फैलाकर तो सभी सो लेते हैं,
आकाश पैरों पर थाम एक बार सोने की कोशिश ज़रूर करना।
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अपने ही घर को लूटने से
कुछ रोशनियां अंधेरे की आहट से ग्रस्त हुआ करती हैं
जलते घरों की आग पर कभी भी रोटियां नहीं सिकती हैं
अंधेरे में हम पहचान नहीं पाते हैं अपने ही घर का द्वार
अपने ही घर को लूटने से तिज़ोरियां नहीं भरती हैं।