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छोटी-सी है अर्चना,
छोटा-सा है भाव।
छोटी-सी है रोशनी।
अर्पित हैं कुछ फूल।
नेह-घृत का दीप समर्पित,
अपनी छाया को निहारे।
तिरते-तिरते जल में
भावों का गहरा सागर।
हाथ जोड़े, आंख मूंदे,
क्या खोया, क्या पाया,
कौन जाने।
छोटी रोशनियां
सदैव आकाश बड़ा देती हैं,
हवाओं से जूझकर
आभास बड़ा देती हैं।
सहज-सहज
जीवन का भास बड़ा देती हैं।
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हे विधाता ! किस नाम से पुकारूं तुम्हें
शायद तुम्हें अच्छा न लगे सुनकर,
किन्तु, आज
तुम्हारे नामों से डरने लगी हूं।
हे विधाता !
कहते हैं, यथानाम तथा गुण।
कितनी देर से
निर्णय नहीं कर पा रही हूं
किस नाम से पुकारूं तुम्हें।
जितने नाम, उतने ही काम।
और मेरे काम के लिए
तुम्हारा कौन-सा नाम
मेरे काम आयेगा,
समझ नहीं पा रही हूं।
तुम सृष्टि के रचयिता,
स्वयंभू,
प्रकृति के नियामक
चतुरानन, पितामह, विधाता,
और न जाने कितने नाम।
और सुना है
तुम्हारे संगी-साथी भी बहुत हैं,
जो तुम्हारे साथ चलाते हैं,
अनगिनत शस्त्र-अस्त्रों से सुसज्जित।
हे विश्व-रचयिता !
क्या भूल गये
जब युग बदलते हैं,
तब विचार भी बदलते हैं,
सत्ता बदलती है,
संरचनाएं बदलती हैं।
तो
हे विश्व रचयिता!
सामयिक परिस्थितियों में
गुण कितने भी धारण कर लो
बस नाम एक कर लो।
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अवसर है अकेलापन अपनी तलाश का
एक सपने में जीती हूं,
अंधेरे में रोशनी ढूंढती हूं।
बहारों की आस में,
कुछ पुष्प लिए हाथ में,
दिन-रात को भूलती हूं।
काल-चक्र घूमता है,
मुझसे कुछ पूछता है,
मैं कहां समझ पाती हूं।
कुछ पाने की आस में
बढ़ती जाती हूं।
गगन-धरा पुकारते हैं,
कहते हैं
चलते जाना, चलते जाना
जीवन-गति कभी ठहर न पाये,
चंदा-सूरज से सीख लेना
तारों-सा टिमटिमाना,
अवसर है अकेलापन
अपनी तलाश का ,
अपने को पहचानने का,
अपने-आप में
अपने लिए जीने का।
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अपने-आपको परखना
कभी-कभी अच्छा लगता है,
अपने-आप से बतियाना,
अपने-आपको समझना-समझाना।
डांटना-फ़टकारना।
अपनी निगाहों से
अपने-आपको परखना।
अपने दिये गये उत्तर पर
प्रश्न तलाशना।
अपने आस-पास घूम रहे
प्रश्नों के उत्तर तलाशना।
मुर्झाए पौधों में
कलियों को तलाशना।
बिखरे कांच में
जानबूझकर अंगुली घुमाना।
उफ़नते दूध को
गैस पर गिरते देखना।
और
धार-धार बहते पानी को
एक अंगुली से
रोकने की कोशिश करना।
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सखियाँ झूला झूलें
हिलमिल सखियाँ झूला झूलें
कभी धरा, कभी गगन छू लें
फुहारें मन मुदित कर रहीं
खुशियों के भर-भर घूंट पी लें
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पंखों की उड़ान परख
पंखों की उड़ान परख
गगन परख, धरा निरख ।
तुझको उड़ना सिखलाती हूं,
आशाओं के गगन से
मिलवाना चाहती हूं,
साहस देती हूं,
राहें दिखलाती हूं।
जीवन में रोशनी
रंगीनियां दिखलाती हूं।
पर याद रहे,
किसी दिन
अनायास ही
एक उछाल देकर
हट जाउंगी
तेरी राहों से।
फिर अपनी राहें
आप तलाशना,
जीवन भर की उड़ान के लिए।
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मन के भाव देख प्रेयसी
रंग रूप की ऐसी तैसी
मन के भाव देख प्रेयसी
लीपा-पोती जितनी कर ले
दर्पण बोले दिखती कैसी
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रे मन अपने भीतर झांक
सागर से गहरे हैं मन के भाव, किसने पाई थाह
सीपी में मोती से हैं मन के भाव, किसने पाई थाह
औरों के चिन्तन में डूबा है रे मन अपने भीतर झांक
जीवन लभ्य हो जायेगा जब पा लेगा अपने मन की थाह
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चिराग जलायें बैठे हैं
घनघोर अंधेरे में
जुगनुओं को जूझते देखा।
गहरे सागर में
दीपक को राह ढूंढते
तिरते देखा।
गहन अंधेरी रातों में
चांद-तारे भी
भटकते देखे मैंने,
रातों की आहट से
सूरज को भी डूबते देखा।
और हमारी
हिम्मत देखो
चिराग जलायें बैठे हैं
चलो, राह दिखाएं तुमको।
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सबको बहकाते
पुष्प निःस्वार्थ भाव से नित बागों को महकाते
पंछी को देखो नित नये राग हमें मधुर सुनाते
चंदा-सूरज दिग्-दिगन्त रोशन करते हर पल
हम ही क्यों छल-कपट में उलझे सबको बहकाते
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कहां किस आस में
सूर्य की परिक्रमा के साथ साथ ही परिक्रमा करता है सूर्यमुखी
अक्सर सोचती हूं रात्रि को कहां किस आस में रहता है सूर्यमुखी
सम्भव है सिसकता हो रात भर कहां चला जाता है मेरा हमसफ़र
शायद इसीलिए प्रात में अश्रुओं से नम सुप्त मिलता है सूर्यमुखी