Share Me
अच्छे-भले मुंह ढककर सो रहे थे यूं ही हिला हिलाकर जगा दिया
अच्छा-सा चाय-नाश्ता कराओं खाना बनाओ, हुक्म जारी किया
अरे अवकाश हमारा अधिकार है, चैन से सो लेने दो, न जगाओ
नींद तोड़ी हमारी तो मीडिया बुला लेंगे हमने बयान जारी किया
Share Me
Write a comment
More Articles
होगा कैसे मनोरंजन
कौन कहे ताक-झांक की आदत बुरी, होगा कैसे मनोरंजन
किस घर में क्या पकता, नहीं पता तो कैसे मानेगा मन
अपने बर्तन-भांडों की खट-पट चाहे सुनाये पूरी कथा
औरों की सीवन उधेड़ कर ही तो मिलता है चैन-अमन
Share Me
ये आंखें
मन के भीतर प्रवेश का द्वार हैं ये आंखें
सुहाने सपनों से सजा संसार हैं ये आंखें
होंठ बेताब हैं हर बात कह देने के लिए
शब्द को भाव बनने का आधार हैं ये आंखें
Share Me
चिड़-चिड़ करती गौरैया
चिड़-चिड़ करती गौरैया
उड़-उड़ फिरती गौरैया
दाना चुगती, कुछ फैलाती
झट से उड़ जाती गौरैया
Share Me
शब्द और भाव
बड़े सुन्दर भाव हैं
दया, करूणा, कृपा।
किन्तु कभी-कभी
कभी-कभी क्यों,
अक्सर
आहत कर जाते हैं
ये भाव
जहां शब्द कुछ और होते हैं
और भाव कुछ और।
Share Me
अपनी आवाज़ अपने को सुनाती हूं मैं
मन के द्वार
खटखटाती हूं मैं।
अपनी आवाज़
अपने को सुनाती हूं मैं।
द्वार पर बैठी
अपने-आपसे
बतियाती हूं मैं।
इस एकान्त में
अपने अकेलपन को
सहलाती हूं मैं।
द्वार उन्मुक्त हों या बन्द,
कहानी कहां बदलती है जीवन की,
सहेजती हूं कुछ स्मृतियां रंगों में,
कुछ को रंग देती हूं,
आकार देती हूं,
सौन्दर्य और आभास देती हूं।
जीवन का, नवजीवन का
भास देती हूं।
Share Me
बारिश के मौसम में
बारिश के मौसम में मन देखो, है भीग रहा
तरल-तरल-सा मन-भाव यूं कुछ पूछ रहा
क्यों मन चंचल है आज यहां कौन आया है
कैसे कह दूं किसकी यादों में मन सीज रहा
Share Me
यादें: शिमला की बारिश की
न जाने वे कैसे लोग हैं
जो बारिश की
सौंधी खुशबू से
मदहोश हो जाते हैं
प्रेम-प्यार के
किस्सों में खो जाते हैं।
विरह और श्रृंगार की
बातों में रो जाते हैं।
सर्द सांसों से
खुशियों में
आंसुओं के
बीज बो जाते हैं।
और कितने तो
भीग जाने के डर से,
घरों में छुपकर सो जाते हैं।
यह भी कोई ज़िन्दगी है भला !
.
कभी तेज़, कभी धीमी
कभी मूसलाधार
बेपरवाह हम और बारिश !
पानी से भरी सड़क पर
छप-छपाक कर चलना
छींटे उछालना
तन-मन भीग-भीग जाना
चप्पल पानी में बहाना
कभी भागना-दौड़ना
कभी रुककर
पेड़ों से झरती बूँदों को
अंजुरी में सम्हालना
बरसती बूंदों से
सिहरती पत्तियों को
सहलाना
चीड़-देवदार की
नुकीली पत्तियों से
झरती एक-एक बूँद को
निरखना
उतराईयों पर
तेज़ दौड़ते पानी से
रेस लगाना।
और फिर
रुकती-रुकती बरसात,
बादलों के बीच से
रास्ता खोजता सूरज
रंगों की आभा बिखेरता
मानों प्रकृति
नये कलेवर में
अवतरित होती है
एक नवीन आभा लिए।
हरे-भरे वृक्ष
मानों नहा-धोकर
नये कपड़े पहन कर
धूप सेंकने आ खड़े हों।
Share Me
झुकना तो पड़ता ही है
कहां समय मिलता है
कमर सीधी करने का।
काम कोई भी करें,
घर हो या खलिहान,
झुकना तो पड़ता ही है,
झुककर ही
काम करना पड़ता है।
फिर धीरे-धीरे
आदत हो जाती है,
झुके रहने की।
और फिर एक समय
ऐसा आता है
कि सिर उठाकर
चलना ही भूल जाती हैं।
फिर,
कहां कभी सिर उठाकर
चल पाती हैं।
Share Me
समानता का भाव
बस एक इंसानियत का भाव जगाना होगा।
समानता का भाव सबके मन में लाना होगा।
मानवता को बांटकर देश प्रगति नहीं करते,
हर तरह का भेद-भाव अब मिटाना होगा।
Share Me
आने वाला कल
अपने आज से परेशान हैं हम।
क्या उपलब्धियां हैं
हमारे पास अपने आज की,
जिन पर
गर्वोन्नत हो सकें हम।
और कहें
बदलेगा आने वाला कल।
.
कैसे बदलेगा
आने वाला कल,
.
डरे-डरे-से जीते हैं।
सच बोलने से कतराते हैं।
अन्याय का
विरोध करने से डरते हैं।
भ्रमजाल में जीते हैं -
आने वाला कल अच्छा होगा !
सही-गलत की
पहचान खो बैठे हैं हम,
बनी-बनाई लीक पर
चलने लगे हैं हम।
राहों को परखते नहीं।
बरसात में घर से निकलते नहीं।
बादलों को दोष देते हैं।
सूरज पर आरोप लगाते हैं,
चांद को घटते-बढ़ते देख
नाराज़ होते हैं।
और इस तरह
वास्तविकता से भागने का रास्ता
ढूंढ लेते हैं।
-
तो
कैसे बदलेगा आने वाला कल ?
क्योंकि
आज ही की तो
प्रतिच्छाया होता है
आने वाला कल।