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शहर में
चूहे बिल्लियों को सुला रहे हैं
कानों में लोरी सुना रहे हैं।
उधर जंगल में गीदड़ दहाड़ रहे हैं।
शेर-चीते पिंजरों में बन्द
हमारा मन बहला रहे हैं।
पढ़ाते थे हमें
शेर-बकरी
कभी एक घाट पानी नहीं पीते,
पर आज
एक ही मंच पर
सब अपनी-अपनी बीन बजा रहे हैं।
यह भी पता नहीं लगता
कब कौन सो जायेगा]
और कौन लोरी सुनाएगा।
अब जहां देखो
दोस्ती के नाम पर
नये -नये नज़ारे दिखा रहे हैं।
कल तक जो खोदते थे कुंए
आज साथ--साथ
घाट-घाट का
पानी पीते नज़र आ रहे हैं।
बच कर चलना ऐसी मित्रता से
इधर बातों ही बातों में
हमारे भी कान काटे जा रहे हैं।
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फूल खिलखिलाए
बारिश के बाद धूप निखरी
आंसुओं के बाद मुस्कान बिखरी
बदलते मौसम के एहसास हैं ये
फूल खिलखिलाए, महक बिखरी
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मन का दीप प्रज्वलित हो
अपनों का साथ हो
सपनों का राग हो
सम्बन्धों का उन्माद हो
सबसे संवाद हो
मन बाग बाग हो
जीवन में राग राग हो
मधुर मधुर तान हो
भावों में अनुराग हो
मलिनता मिट जाए
दूरियां सिमट जाएं
रिश्तों की गरिमा हो
अपनों की महिमा हो
विश्वास की दमक हो
अपनेपन की महक हो
सहज सहज जीवन हो
सरल पावन मन हो
मन से मन का मिलन हो
न द्वेष का राग हो,
न सत्य से विराग हो
जीवन की सुंदर कहानी हो
अपनों की जु़बानी हो
जगमग जगमग संसार हो
खुशियां अपार हों
पर्वों की सी हरदम आहट हो
बस मन का दीप प्रज्वलित हो।
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मानसून की आहट
मानसून की आहट डराने लगी है
गलियों में तालाब दिखाने लगी है
मेंढक टर्राते हैं रात भर नींद कहाँ
मच्छरों की भिन-भिन सताने लगी है।
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ज़िन्दगी लगती बेमानी है
जन्म की अजब कहानी है, मरण से जुड़ी रवानी है।
श्मशान घाट में जगह नहीं, खो चुके ज़िन्दगानी हैं।
पंक्तियों में लगे शवों का टोकन से होगा संस्कार,
फ़ुटपाथ पर लगी पंक्तियां, ज़िन्दगी लगती बेमानी है।
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बारिश के मौसम में
बारिश के मौसम में मन देखो, है भीग रहा
तरल-तरल-सा मन-भाव यूं कुछ पूछ रहा
क्यों मन चंचल है आज यहां कौन आया है
कैसे कह दूं किसकी यादों में मन सीज रहा
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मन में विषधर पाले
विषधर तो है !
लेकिन देखना होगा,
विष कहां है?
आजकल लोग
परिपक्व हो गये हैं,
विष निकाल लिया जाता है,
और इंसान के मुख में
संग्रहीत होता है।
तुम यह समझकर
नाग को मारना,
कुचलना चाहते हो,
कि यही है विषधर
जो तुम्हें काट सकता है।
अब न तो
नाग पकड़ने वाले रह गये,
कि नाग का नृत्य दिखाएंगे,
न नाग पंचमी पर
दुग्ध-दहीं से अभिषेक करने वाले।
मन में विषधर पाले
ढूंढ लो चाहे कितने,
मिल जायेंगे चाहने वाले।
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नयनों में घिर आये बादल
धूप खिली, मौसम खुशनुमा, घूम रहे बादल
हवाएं चलीं-चलीं, गगन पर छितराए बादल
कुछ बूंदें बरसी, मन महका-बहका-पगला
तुम रूठे, नयनों में गहरे घिर आये बादल
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अपनी पहचान की तलाश
नाम ढूँढती हूँ पहचान पूछती हूँ ।
मैं कौन हूँ बस अपनी आवाज ढूँढती हूँ ।
प्रमाणपत्र जाँचती हूँ
पहचान पत्र तलाशती हूँ
जन्मपत्री देखती हूँ
जन्म प्रमाणपत्र मांगती हूँ
बस अपना नाम मांगती हूँ।
परेशान घूमती हूँ
पूछती हूँ सब से
बस अपनी पहचान मांगती हूं।
खिलखिलाते हैं सब
अरे ! ये कमला की छुटकी
कमली हो गई है।
नाम ढूँढती है, पहचान ढूँढती है
अपनी आवाज ढूँढती है।
अरे ! सब जानते हैं
सब पहचानते हैं
नाम जानते हैं।
कमला की बिटिया, वकील की छोरी
विन्नी बिन्नी की बहना,
हेमू की पत्नी, देवकी की बहू,
और मिठू की अम्मा ।
इतने नाम इतनी पहचान।
फिर भी !
परेशान घूमती है, पहचान पूछती है
नाम मांगती है, आवाज़ मांगती है।
मैं पूछती हूं
फिर ये कविता कौन है
कौन है यह कविता ?
बौखलाई, बौराई घूमती हूं
नाम पूछती हूं, अपनी आवाज ढूँढती हूं
अपनी पहचान मांगती हूं
अपना नाम मांगती हूं।
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हाथों से मिले नेह-स्पर्श
पत्थरों में भाव गढ़ते हैं,
जीवन में संवाद मरते हैं।
हाथों से मिले नेह-स्पर्श,
बस यही आस रखते है।
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अंदाज़ उनका
उलझा कर गया अंदाज़ उनका
बहका कर गया अंदाज़ उनका
अंधेरे में रोशनियाँ हैं चमक रही
पराया कर गया अंदाज़ उनका