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कुछ मुखौटै चढ़े हैं, कुछ नकली बने हैं
किसे अपना मानें, कौन पराये बने हैं
मीठी-मीठी बातों पर मत जाना यारो
मानों खेत में खड़े बिजूका से सजे हैं
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निरन्तर बढ़ रही हैं दूरियां
कुछ शहरों की हैं दूरियां, कुछ काम-काज की दूरियां।
मेल-मिलाप कैसे बने, निरन्तर बढ़ रही हैं दूरियां।
परिवार निरन्तर छिटक रहे, दूर-पार सब जा रहे,
तकनीक आज मिटा रही हम सबके बीच की दूरियां।
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मेहनत करते हैं जीते हैं
मां ने बोला था कल लोहड़ी है, लकड़ी का न हुआ है इंतज़ाम
विद्यालय में कुछ पुराने पेड़ कटे थे, मैं ले आई माली से मांग
बस हर वक्त भूख, रोटी, लड़की, शोषण की ही बात मत कर
मेहनत करते हैं, जीते हैं अपने ढंग से, यह लो तुम भी मान
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याद है आपको डंडे खाया करते थे
याद है आपको, भूगोल की कक्षा में ग्लोब घुमाया करते थे
शहरों की गलत पहचान करने पर कितने डंडे खाया करते थे
नदी, रेल, सड़क, सूखा, हरियाली के चिह्न याद नहीं होते थे
मास्टर जी के जाते ही ग्लोब को गेंद बनाकर नचाया करते थे
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अपने कर्मों पर रख पकड़
चाहे न याद कर किसी को
पर अपने कर्मों से डर
न कर पूजा किसी की
पर अपने कर्मों पर रख पकड़ ।
न आराधना के गीत गा किसी के
बस मन में शुद्ध भाव ला ।
हाथ जोड़ प्रणाम कर
सद्भाव दे,
मन में एक विश्वास
और आस दे।
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तेरा ख़याल
उदास कर जाता है तेरा ख़याल
यादों में ले जाता है तेरा ख़याल
यूँ लगता है मानों युग बीत गये
मिलन की आस है तेरा ख़याल
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छोटी रोशनियां सदैव आकाश बड़ा देती हैं
छोटी-सी है अर्चना,
छोटा-सा है भाव।
छोटी-सी है रोशनी।
अर्पित हैं कुछ फूल।
नेह-घृत का दीप समर्पित,
अपनी छाया को निहारे।
तिरते-तिरते जल में
भावों का गहरा सागर।
हाथ जोड़े, आंख मूंदे,
क्या खोया, क्या पाया,
कौन जाने।
छोटी रोशनियां
सदैव आकाश बड़ा देती हैं,
हवाओं से जूझकर
आभास बड़ा देती हैं।
सहज-सहज
जीवन का भास बड़ा देती हैं।
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मन गीत गुने
मृदंग बजे
सुर-साज सजे
मन-मीत मिले
मन गीत गुने
निर्जन वन में
वन-फूल खिले
अबोल बोले
मन-भाव बने
इस निर्जन में
इस कथा कहे
अमर प्रेम की
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तितलियां
फूल-फूल से पराग चुराती तितलियां
उड़ती-फिरती, मुस्कुराती तितलियां
पंख जोड़ती, पंख खोलतीं रंग सजाती
उड़-उड़ जातीं, हाथ न आतीं तितलियां
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जीवन अंधेरे और रोशनियों के बीच
अंधेरे को चीरती
ये झिलमिलाती रोशनियां,
अनायास,
उड़ती हैं
आकाश की ओर।
एक चमक और आकर्षण के साथ,
कुछ नये ध्वन्यात्मक स्वर बिखेरतीं,
फिर लौट आती हैं धरा पर,
धीरे-धीरे सिमटती हैं,
एक चमक के साथ,
कभी-कभी
धमाकेदार आवाज़ के साथ,
फिर अंधेरे में घिर जाती हैं।
जीवन जब
अंधेरे और रोशनियों में उलझता है,
तब चमक भी होती है,
चिंगारियां भी,
कुछ मधुर ध्वनियां भी
और धमाके भी,
आकाश और धरा के बीच
जीवन ऐसे ही चलता है।
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बस एक हिम्मत की चाह
जीवन बोझ-सा
समस्याएं नाग-सी
तब चाहिए
तुम्हारा साथ
हाथ पकड़ा है
मैं तुम्हें समस्याओं से बचाउं
तुम मेरे साथ
तो जीवन भी बोझ-सा नहीं
बस एक हिम्मत की चाह
होंगे हम साथ-साथ