Share Me
आंखें बोलती हैं
कहां पढ़ पाते हैं हम
कुछ किस्से खोलती हैं
कहां समझ पाते हैं हम
किसी की मानवता जागी
किसी की ममता उठ बैठी
पल भर के लिए
मन हुआ द्रवित
भूख से बिलखते बच्चे
बेसहारा अनाथ
चल आज इनको रोटी डालें
दो कपड़े पुराने साथ।
फिर भूल गये हम
इनका कोई सपना होगा
या इनका कोई अपना होगा,
कहां रहे, क्या कह रहे
क्यों ऐसे हाल में है
हमारी एक पीढ़ी
कूड़े-कचरे में बचपन बिखरा है
किस पर डालें दोष
किस पर जड़ दें आरोप
इस चर्चा में दिन बीत गया !!
सांझ हुई
अपनी आंखों के सपने जागे
मित्रों की महफ़िल जमी
कुछ गीत बजे, कुछ जाम भरे
सौ-सौ पकवान सजे
जूठन से पंडाल भरा
अनायास मन भर आया
दया-भाव मन पर छाया
उन आंखों का सपना भागा आया
जूठन के ढेर बनाये
उन आंखों में सपने जगाये
भर-भर उनको खूब खिलाये
एक सुन्दर-सा चित्र बनाया
फे़सबुक पर खूब सजाया
चर्चा का माहौल बनाया
अगले चुनाव में खड़े हो रहे हम
आप सबको अभी से करते हैं नमन
Share Me
Write a comment
More Articles
चल रही है ज़िन्दगी
थमी-थमी, रुकी-रुकी-सी चल रही है ज़िन्दगी।
कभी भीगी, कभी ठहरी-सी दिख रही है जिन्दगी।
देखो-देखो, बूँदों ने जग पर अपना रूप सजाया
रोशनियों में डूब रही, कहीं गहराती है ज़िन्दगी।
Share Me
सपना देखने में क्या जाता है
कोई भी उड़ान
इतनी सरल नहीं होती
जितनी दिखती है।
बड़ा आकर्षित करता है
आकाश को चीरता यान।
रंगों में उलझता।
दोनों बाहें फैलाये
आकाश को
हाथों से छू लेने की
एक नाकाम कोशिश,
अक्सर
मायूस तो करती है,
लेकिन आकाश में
चमकता चांद !
कुछ सपने दिखाता है
पुकारता है
साहस देता है,
चांद पर
घर बसाने का सपना
दिखाता है,
जानती हूं , कठिन है
असम्भव-प्रायः
किन्तु सपना देखने में क्या जाता है।
Share Me
नई शुरूआत
जो मैं हूं
वैसा सब मुझे जान नहीं पाते
और जैसा सब मुझे जान पाते हैं
वह मैं बन नहीं पाती।
बार बार का यह टकराव
हर बार हताश कर जाता है मुझे
फिर साथ ही उकसा जाता है
एक नई शुरूआत के लिए।।।।।।।।।।।
Share Me
नेह-जलधार हो
जीवन में
कुछ पल तो ऐसे हों
जो केवल
मेरे और तुम्हारे हों।
जलधि-सी अटूट
नेह-जलधार हो
रेत-सी उड़ती दूरियों की
दीवार हो।
जीवन में
कुछ पल तो ऐसे हों
जो केवल
मेरे और तुम्हा़रे हों।
Share Me
वास्तविकता और कल्पना
सच कहा है किसी ने
कलाकार की तूलिका
जब आकार देती है
मन से कुछ भाव देती है
तब मूर्तियाँ बोलती हैं
बात करती हैं।
हमें कभी
कलाकार नहीं बताता
अपने मन की बात
कला स्वयँ बोलती है
कहानी बताती है
बात कहती है।
.
निरखती हूँ
कलाकार की इस
अद्भुत कला को,
सुनना चाहती हूँ
इसके मन की बात
प्रयास करती हूँ
मूर्ति की भावानाओं को
समझने का।
आपको
कुछ रुष्ट-सी नहीं लगी
मानों कह रही
हे पुरुष !
अब तो मुझे आधुनिक बना
अपने आनन्द के लिए
यूँ न सँवार-सजा
मैं चाहती हूँ
अपने इस रूप को त्यागना।
घड़े हटा, घर में नल लगवा।
वैसे आधुनिकाओं की
वेशभूषा पर
करते रहते हो टीका-टिप्पणियाँ,
मेरी देह पर भी
कुछ अच्छे वस्त्र सजाते
सुन्दर वस्त्र पहनाते।
देह प्रदर्शनीय होती हैं
क्या ऐसी
कामकाजी घरेलू स्त्रियाँ।
गांव की गोरी
क्या ऐसे जाती है
पनघट जल भरन को ?
हे आदमी !
वास्तविकता और अपनी कल्पना में
कुछ तो तालमेल बना।
समझ नहीं पाती
क्यों ऐसी दोगली सोच है तुम्हारी !!
Share Me
कुछ और नाम न रख लें
समाचार पत्र
कभी मोहल्ले की
रौनक हुआ करते थे।
एक आप लेते थे
एक पड़ोसियों से
मांगकर पढ़ा करते थे।
पूरे घर की
माँग हुआ करते थे।
दिनों-दिन
बातचीत का
आधार हुआ करते थे,
चैपाल और काॅफ़ी हाउस में
काफ़ी से ज़्यादा गर्म
चर्चा का आधार हुआ करते थे।
विश्वास का
नाम हुआ करते थे।
ज्ञान-विज्ञान की
खान हुआ करते थे।
नित नये काॅलम
पूरे परिवार के
मनोरंजन का
आधार हुआ करते थे।
-
मानों
युग बदल गया।
अब
समाचार पत्रों में
सब मिलता है
बस
समाचार नहीं मिलते।
कोई मुद्दे,
कोई भाव नहीं मिलते।
पृष्ठ घटते गये
विज्ञापन बढ़ते गये।
चार पन्नों को
उलट-पुलटकर
पलभर में रख देते हैं।
चित्र बड़े हो रहे हैं
पर कुछ बोलते नहीें।
बस
डराते हैं
धमकाते हैं
और चले जाते हैं।
कहानियाँ रह गईं
सत्य कहीं बिखर गया।
अन्त में लिखा रहता है
अनेक जगह
इन समाचारों/विचारों का
हमारा कोई दायित्व नहीं।
तो फिर
इनका
कुछ और नाम न रख लें।
Share Me
तिनके का सहारा
कभी किसी ने कह दिया
एक तिनके का सहारा भी बहुत होता है,
किस्मत साथ दे
तो सीखा हुआ
ककहरा भी बहुत होता है।
लेकिन पुराने मुहावरे
ज़िन्दगी में साथ नहीं देते सदा।
यूं तो बड़े-बड़े पहाड़ों को
यूं ही लांघ जाता है आदमी,
लेकिन कभी-कभी एक तिनके की चोट से
घायल मन
हर आस-विश्वास खोता है।
Share Me
ले जीवन का आनन्द
सपनों की सीढ़ी तानी
चलें गगन की ओर
लहराती बदरियां
सागर की लहरियां
चंदा की चांदनी
करती उच्छृंखल मन।
लरजती डालियों से
झांकती हैं रोशनियां
कहती हैं
ले जीवन का आनन्द।
Share Me
त्रिवेणी विधा में रचना
दर्पण में अपने ही चेहरे को देखकर मुस्कुरा देती हूं
फिर उसी मुस्कान को तुम्हारे चेहरे पर लगा देती हूं
पर तुम कहां समझते हो मैंने क्या कहा है तुमसे