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चारों ओर खलबली है।
समाचारों में सनसनी है।
सड़कों पर हंगामा है।
आन्दोलन-उपद्रव चल रहे हैं
और हम
सास-बहू के मुद्दों पर लिख रहे हैं।
गढ़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं।
पुरानी सीवनें उधेड़ रहे हैं।
खिड़की से बाहर का अंधेरा नहीं दिखता
दूर देश में रोशनियां खोज रहे हैं।
हज़ार साल पुरानी बातों का
पिष्ट-पेषण करने में लगे हैं,
और अपने घर में लगी आग से
हाथ सेंकने में लगे हैं।
और यदि और कुछ न हो पाये
तो हमारे पास
ऊपर वाले बहुत हैं,
उनका नाम जपकर
मुंह ढककर सो रहे हैं।
कितना भी मुंह मोड़ लें,
हाथों को जोड़ लें,
शोर को रोक लें,
कानों में रुईं ठूंस लें,
किसी दिन तो
अपने घाव भी रिसेंगे ही।
वैसे भी मुंह मोड़ने
या छुपाने से
कान बन्द नहीं होते,
बस मुंह चुराते हैं हम।
सच लिखने से घबराते हैं हम।
और यदि
औन कुछ न दिखे
तो करताल बजाते हैं हम।
खड़ताल खड़काते हैं हम।
रोज़, हर रोज़
बेवजह
मरने वालों का
हिसाब नहीं मांगती मैं।
किन्तु हमारे भाव मर रहे हैं,
सोच मर रही है,
बेबाक बोलने की आवाज़ डर रही है।
किससे बात करुं मैं ?
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सुन्दर इंद्रधनुष लाये बादल
शरारती से न जाने कहां -कहां जायें पगलाये बादल
कही धूप, कहीं छांव कहीं यूं ही समय बितायें बादल
कभी-कभी बड़ी अकड़ दिखाते, यहां-वहां छुप जाते
डांट पड़ी तब जलधार संग सुन्दर इंद्रधनुष लाये बादल
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कोई तो आयेगा
भावनाओं का वेग
किसी त्वरित नदी की तरह
अविरल गति से
सीमाओं को तोड़ता
तीर से टकराता
कंकड़-पत्थर से जूझता
इक आस में
कोई तो आयेगा
थाम लेगा गति
सहज-सहज।
.
जीवन बीता जाता है
इसी प्रतीक्षा में
और कितनी प्रतीक्षा
और कितना धैर्य !!!!
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वक्त कहां किसी का
वक्त को
जब मैं वक्त नहीं दे पाई
तो वह कहां मेरा होता ।
कहा मेरे साथ चल, हंस दिया।
कहा, ठहर ज़रा,
मैं तैयार तो हो लूं
साथ तेरे चलने के लिए,
उपहास किया मेरा।
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चल आगे बढ़ जि़न्दगी
भूल-चूक को भूलकर, चल आगे बढ़ जि़न्दगी
अच्छा-बुरा सब छोड़कर, चल आगे बढ़ जि़न्दगी
हालातों से कभी-कभी समझौता करना पड़ता है
बदले का भाव छोड़कर, चल आगे बढ़ जि़न्दगी
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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
इधर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
अभियान ज़ोरों पर है।
विज्ञापनों में भरपूर छाया है
जिसे देखो वही आगे आया है।
भ्रूण हत्याओं के विरूद्ध नारे लग रहे हैं
लोग इस हेतु
घरों से निकलकर सड़कों पर आ रहे हैं,
मोमबत्तियां जला रहे हैं।
लेकिन क्या सच में ही
बदली है हमारी मानसिकता !
प्रत्येक नवजात के चेहरे पर
बालक की ही छवि दिखाई देती है
बालिका तो कहीं
दूर दूर तक नज़र नहीं आती है।
इस चित्र में एक मासूम की यह छवि
किसी की दृष्टि में चमकता सितारा है
तो कहीं मसीहा और जग का तारणहार।
कहीं आंखों का तारा है तो कहीं राजदुलारा।
एक साधारण बालिका की चाह तो
हमने कब की त्याग दी है
अब हम लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा
की भी बात नहीं करते।
कभी लक्ष्मीबाई की चर्चा हुआ करती थी
अब तो हम उसको भी याद नहीं करते।
पी. टी. उषा, मैरी काम, सान्या, बिछेन्द्री पाल
को तो हम जानते ही नहीं
कि कहें
कि ईश्वर इन जैसी संतान देना।
कोई उपमाएं, प्रतीक नहीं हैं हमारे पास
अपनी बेटियों के जन्म की खुशी मनाने के लिए।
शायद आपको लग रहा होगा
मैं विषय-भ्रम में हूं।
जी नहीं,
इस नवजात को मैं भी देख रही हूं
एक चमकते सितारे की तरह
रोशनी से भरपूर।
किन्तु मैं यह नहीं समझ पा रही हूं
कि इस चित्र में सबको
एक नवजात बालक की ही प्रतीति
क्यों है
बालिका की क्यों नहीं।
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पता नहीं ज़िन्दगी में क्या बनना है
तुम्हें ज़िन्दगी में कुछ बनना है कि नहीं? अंग्रेज़ी में बस 70 अंक और गणित में 75। अकेले तुम हो जिसके 70 अंक हैं, सब बच्चों के 80 से ज़्यादा हैं। हिन्दी में 95 आ भी गये तो क्या तीर मार लोगे, शिक्षक महोदय वरूण को सारी कक्षा के सामने डांटते हुए बोले। चपड़ासी भी नहीं बन पाओगे इस तरह तो, आजकल चपड़ासी को भी अच्छी इंग्लिश आनी चाहिए, क्या करोगे ज़िन्दगी में। अपने पापा को बुलाकर लाना कल।
वरूण डरता-डरता घर पहुंचा । मां जानती थी कि आज अर्द्धवार्षिक परीक्षा का रिपोर्ट कार्ड होगा। बच्चे का उतरा चेहरा देखकर कुछ नहीं बोली, बस ,खाना खिलाकर खेलने भेज दिया। फिर बैग से रिपोर्ट कार्ड निकाल कर देखा और दौड़कर बाहर से वरूण को बांह खींचकर ले आई और गुस्से से बोली, रिपोर्ट कार्ड क्यों नहीं दिखाया ?वरूण रोने लगा, लेकिन मां ने पुचकार कर पकड़ लिया, अरे ,मैंने तो शाबाशी देने के लिए बुलाया है। इतने अच्छे अंक आये हैं रोता क्यों है? हिन्दी में 95 । वाह! अंगे्रज़ी में कुछ कम हैं पर कोई बात नहीं, कौन-सा अंगे्रज़ी का टीचर बनना है। और गणित में भी ठीक हैं। पापा भी खुश हो जायेंगे। वरूण बोला किन्तु मां, सर तो कहते हैं 100 आने चाहिए।
100? कोई रूपये हैं कि सौ के सौ आ जायेंगे, तू चिन्ता न कर।
संध्या पापा की आवाज़ सुनकर दरवाजे़ के पीछे छिप-सा गया। लेकिन वरूण हैरान था कि पापा भी खुश हैं। आवाज़ दी, कहां हो वरूण, लो तुम्हारी पसन्द की मिठाई लाया हूं। वरूण फिर भी सहमा-सा था। पापा उसके मुंह में गुलाबजामुन डालते हुए बोले , वाह बेटा अंग्रेज़ी में 70 अंक, मेरे तो सात आते थे, हा हा ।
और वरूण अचम्भित-सा खड़ा था समझ नहीं पा रहा था कि उसके अंक कैसे हैं।
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स्वनियन्त्रण से ही मिटेगा भ्रष्टाचार
नित परखें हम आचार-विचार
औरों की सोच पर करते प्रहार
अपने भाव परखते नहीं हम कभी
स्वनियन्त्रण से ही मिटेगा भ्रष्टाचार
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सब साथ चलें बात बने
भवन ढह गये, खंडहर देखो अभी भी खड़ा है।
लड़खड़ाते कदमों से कौन पर्वत तक चढ़ा है।
जीवन यूं चलता है, सब साथ चलें, बात बने,
कठिन समय सहायक बनें, इंसान वही बड़ा है।
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आशाओं का उगता सूरज
चिड़िया को पंख फैलाए नभ में उड़ते देखा
मुक्त गगन में आशाओं का उगता सूरज देखा
सूरज डूबेगा तो चंदा को भेजेगा राह दिखाने
तारों को दोनों के मध्य हमने विहंसते देखा