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किरचों से नहीं संवरते मन और दर्पण
कांच पर रंग लगा देने से
वह दर्पण बन जाता है।
इंसान मुखौटे ओढ़ लेता है,
सज्जन कहलाता हैं।
किरचों से नहीं संवरते
मन और दर्पण,
छोटी-छोटी खुशियां समेट लें,
जीवन संवर जाता है।
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प्यार का नाता
एक प्यार का नाता है, विश्वास का नाता है
भाई-बहन से मान करता, अपनापन भाता है
दूर रहकर भी नज़दीकियाँ यूँ बनी रहें सदा
जब याद आती है, आँख में पानी भर आता है
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बांसुरी अब भावशून्य हो गई
कृष्ण तेरी बांसुरी अब
भावशून्य हो गई।
राधा तेरे नृत्य की गति भी
कहीं खो गई।
छोड़ अब ये रास लीला,
प्रेम मनुहार की बातें।
चक्र उठा,
कंस, दु:शासन,दुर्योधनों की
भीड़ भारी हो गई।
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विवेक कहां अब नीर क्षीर का
हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, किससे आस लिये बैठे हैं
अंधे-गूंगे बहरे-नाकारों की बस्ती में विश्वास लिए बैठे हैं
अपने अपने मद में डूबे हम, औरों से क्या लेना देना
विवेक कहां अब नीर क्षीर का, सब ढाल लिए बैठे है।
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किसकी टोपी किसका सिर
बचपन में कथा पढ़ी है,
टोपी वाला टोपी बेचे,
पेड़ के नीचे सो जाये।
बन्दर उसकी टोपी ले गये,
पेड़ पर बैठे उसे चिड़ायें।
टोपी पहने भागे जायें।
बन्दर थे पर नकल उतारें।
टोपी वाले ने आजमाया
अपनी टोपी फेंक दिखलाया।
बन्दरों ने भी टोपी फेंकी,
टोपी वाला ले उठाये।
.
हर पांच साल में आती हैं,
टोपी पहनाकर जाती हैं।
समझ आये तो ठीक
नहीं तो जाकर माथा पीट।
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दीवारें एक नाम है पूरे जीवन का
दीवारें
एक नाम है
पूरे जीवन का ।
हमारे साथ
जीती हैं पूरा जीवन।
सुख-दुख, अपना-पराया
हंसी-खुशी या आंसू,
सब सहेजती रहती हैं
ये दीवारें।
सब सुनती हैं,
देखती हैं, सहती हैं,
पर कहती नहीं किसी से।
कुछ अर्थहीन रेखाएं
अंगुलियों से उकेरती हूं
इन दीवारों पर।
पर दीवारें
समझती हैं मेरे भाव,
मिट्टी दरकने लगती है।
कभी गीली तो कभी सूखी।
दरकती मिट्टी के साथ
कुछ आकृतियां
रूप लेने लगती हैं।
समझाती हैं मुझे,
सहलाती हैं मेरा सर,
बहते आंसुओं को सोख लेती हैं।
कभी कुछ निशान रह जाते हैं,
लोग समझते हैं,
कोई कलाकृति है मेरी।
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तुम्हारा अंहकार हावी रहा मेरे वादों पर
जीवन में सारे काम
सदा
जल्दबाज़ी से नहीं होते।
कभी-कभी
प्रतीक्षा के दो पल
बड़े लाभकारी होते हैं।
बिगड़ी को बना देते हैं
ठहरी हुई
ज़िन्दगियों को संवार देते हैं।
समझाया था तुम्हें
पर तुम्हारा
अंहकार हावी रहा
मेरे वादों पर।
मैंने कब इंकार किया था
कि नहीं दूंगी साथ तुम्हारा
जीवन की राहों में।
हाथ थामना ही ज़रूरी नहीं होता
एक विश्वास की झलक भी
अक्सर राहें उन्मुक्त कर जाती है।
किन्तु
तुम्हारा अंहकार हावी रहा,
मेरे वादों पर।
अब न सुनाओ मुझे
कि मैं अकेले ही चलता रहा।
ये चयन तुम्हारा था।
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यादें: शिमला की बारिश की
न जाने वे कैसे लोग हैं
जो बारिश की
सौंधी खुशबू से
मदहोश हो जाते हैं
प्रेम-प्यार के
किस्सों में खो जाते हैं।
विरह और श्रृंगार की
बातों में रो जाते हैं।
सर्द सांसों से
खुशियों में
आंसुओं के
बीज बो जाते हैं।
और कितने तो
भीग जाने के डर से,
घरों में छुपकर सो जाते हैं।
यह भी कोई ज़िन्दगी है भला !
.
कभी तेज़, कभी धीमी
कभी मूसलाधार
बेपरवाह हम और बारिश !
पानी से भरी सड़क पर
छप-छपाक कर चलना
छींटे उछालना
तन-मन भीग-भीग जाना
चप्पल पानी में बहाना
कभी भागना-दौड़ना
कभी रुककर
पेड़ों से झरती बूँदों को
अंजुरी में सम्हालना
बरसती बूंदों से
सिहरती पत्तियों को
सहलाना
चीड़-देवदार की
नुकीली पत्तियों से
झरती एक-एक बूँद को
निरखना
उतराईयों पर
तेज़ दौड़ते पानी से
रेस लगाना।
और फिर
रुकती-रुकती बरसात,
बादलों के बीच से
रास्ता खोजता सूरज
रंगों की आभा बिखेरता
मानों प्रकृति
नये कलेवर में
अवतरित होती है
एक नवीन आभा लिए।
हरे-भरे वृक्ष
मानों नहा-धोकर
नये कपड़े पहन कर
धूप सेंकने आ खड़े हों।
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हाथ जब भरोसे के जुड़ते हैं
हाथ
जब भरोसे के
जुड़ते हैं
तब धरा, आकाश
जल-थल
सब साथ देते हैं
परछाईयाँ भी
संग-संग चलती हैं
जल किलोल करता है
कदम थिरकने लगते हैं
सूरज राह दिखाता है
जीवन रंगीनियों से
सराबोर हो जाता है,
नितान्त निस्पृह
अपने-आप में खो जाता है।
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अनजान राही
एक अनजान राही से
एक छोटी-सी
मुस्कान का आदान-प्रदान।
ज़रा-सा रुकना,
झिझकना,
और देखते-देखते
चले जाना।
अनायास ही
दूर हो जाती है
जीवन की उदासी
मिलता है असीम आनन्द।
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झूला झुलाये जिन्दगी
कहीं झूला झुलाये जिन्दगी
कभी उपर तो कभी नीचे
लेकर आये जिन्दगी
रस्सियों पर झूलती
दूर से तो दिखती है
आनन्द देती जिन्दगी
बैठना कभी झूले पर
आकाश और धरा
एक साथ दिखा देती है जिन्दगी
कभी हाथ छूटा, कभी तार टूटी
तो दिन में ही
तारे दिखा देती है जिन्दगी
सम्हलकर बैठना जरा
कभी-कभी सीधे
उपर भी ले जाती है जिन्दगी