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कहते हैं,
कहते क्या हैं,
सुना है मैंने,
न-न
पता नहीं
कितनी पुस्तकों में
पढ़ा और गुना है मैंने।
बहुत समय पहले
कोई आये थे
और कह गये
कर्म किये जा
फल की चिन्ता मत कर।
पता नहीं
उन्होंने ऐसा क्यों कहा
मैं आज तक
समझ नहीं पाई।
अब आम का पेड़ बोयेंगे
तो आम तो देखने पड़ेंगे।
वैसे भी
किसी और ने भी तो कहा है
कि बोया पेड़ बबूल का
तो आम कहां से पाये।
सब बस कहने की ही बाते हैं
जो फल की चिन्ता नहीं करते
वे कर्म की भी चिन्ता नहीं करते
ज़माना बदल गया है
युग नया है
मुफ्तखोरी की आदत न डाल
कर्म कर और फल
के लिए खाद-पानी डाल
पेड़ पर चढ़
पर डाल न काट।
उपर बैठकर न देख
जमीनी सच्चाईओं पर उतर
कर्म कर पर फल न पाकर
हार न मान।
बस कर्म कर और
फल की चिन्ता कर।
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रात से सबको गिला है
रात और चांद का अजीब सा सिलसिला है
चांद तो चाहिए पर रात से सबको गिला है
चांद चाहिए तो रात का खतरा उठाना होगा
चांद या अंधेरा, देखना है, किसे क्या मिला है
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सखियाँ झूला झूलें
हिलमिल सखियाँ झूला झूलें
कभी धरा, कभी गगन छू लें
फुहारें मन मुदित कर रहीं
खुशियों के भर-भर घूंट पी लें
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कल डाली पर था आज गुलदान में
कवियों की सोच को न जाने क्या हुआ है, बस फूलों पर मन फिदा हुआ है
किसी के बालों में, किसी के गालों में, दिखता उन्हें एक फूल सजा हुआ है
प्रेम, सौन्दर्य, रस का प्रतीक मानकर हरदम फूलों की चर्चा में लगे हुये हैं
कल डाली पर था, आज गुलदान में, और अब देखो धरा पर पड़ा हुआ है।
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अवसान एवं उदित
यह कैसा समय है,
अंधेरे उजालों को
डराने में लगे हैं,
अपने पंख फैलाने में लगे हैं।
दूर जा रही रोशनियां,
अंधेरे निकट आने में लगे हैं।
अक्सर मैंने पाया है,
अवसान एवं उदित में
ज़्यादा अन्तर नहीं होता।
दोनों ही तम-प्रकाश से
जूझते प्रतीत होते हैं मुझे।
एक रोशनी-रंगीनियां समेटकर
निकल लेता है,
किसी पथ पर,
किसी और को
रोशनी बांटने के लिए।
और दूसरा
बिखरी रोशनी-रंगीनियों को
एक धुरी में बांधकर
फिर बिखेरता है
धरा पर।
चलो, आज एक नई कोशिश करें,
दोनों में ही रंगीनियां-रोशनी ढूंढे।
अंधेरे सिमटने लगेंगें
रोशनियां बिखरने लगेंगी।
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वक्त की रफ्तार देख कर
वक्त की रफ्तार देख कर
मैंने कहा, ठहर ज़रा,
साथ चलना है मुझे तुम्हारे।
वक्त, ऐसा ठहरा
कि चलना ही भूल गया।
आज इस मोड़ पर समझ आया,
वक्त किसी के साथ नहीं चलता।
वक्त ने बहुत आवाज़ें दी थीं,
बहुत बार चेताया था मुझे,
द्वार खटखटाया था मेरा,
किन्तु न जाने
किस गुरूर में था मेरा मन,
हवा का झोंका समझ कर
उपेक्षा करती रही।
वक्त के साथ नहीं चल पाते हम।
बस हर वक्त
किसी न किसी वक्त को कोसते हैं।
एक भी
ईमानदार कोशिश नहीं करते,
अपने वक्त को,
अपने सही वक्त को पहचानने की ।
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बड़ा मुश्किल है Very Difficult
बड़ा मुश्किल है नाम कमाना
मेहनत का फल किसने जाना
बाधाएँ आती हैं आनी ही हैं
किसने राहें रोकी, भूल जाना
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इसे कहते हैं एक झाड़ू
कभी थामा है झाड़ू हाथ में
कभी की है सफ़ाई अंदर-बाहर की
या बस एक फ़ोटो खिंचवाई
और चल दिये।
साफ़ सड़कों की सफ़ाई
साफ़ नालियों की धुलाई
इन झकाझक सफ़ेद कपड़ों पर
एक धब्बा न लगा।
कभी हलक में हाथ डालकर
कचरा निकालना पड़े
तो जान जाती है।
कभी दांत में अटके तिनके को
तिनके से निकालना पड़े तो
जान हलक में अटक जाती है।
हां, मुद्दे की बात करें,
कल को होगी नीलामी
इस झाड़ू की,
बिकेगा लाखों-करोड़ों में
जिसे कोई काले धन का
कचरा जमा करने वाला
सम्माननीय नागरिक
ससम्मान खरीदेगा
या किसी संग्रहालय में रखा जायेगा।
देखेगी इसे अगली पीढ़ी
टिकट देकर, देखो-देखो
इसे कहते हैं एक झाड़ू
पिछली सदी में
साफ़ सड़कों पर कचरा फैलाकर
साफ़ नालियों में साफ़ पानी बहाकर
एक स्वच्छता अभियान का
आरम्भ किया गया था।
लाखों नहीं
शायद करोड़ों-करोड़ों रूपयों का
अपव्यय किया गया था
और सफ़ाई अभियान के
वास्तविक परिचालक
पीछे कहीं असली कचरे में पड़े थे
जिन्होंने अवसर पाते ही
बड़ों-बड़ों की कर दी थी सफ़ाई
किन्तु जिन्हें अक्ल न आनी थी
न आई !!!!!
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मेंहदी के रंगों की तरह
जीवन के रंग भी अद्भुत हैं।
हरी मेंहदी
लाल रंग छोड़ जाती है।
ढलते-ढलते गुलाबी होकर
मिट जाती है
लेकिन अक्सर
हाथों के किसी कोने में
कुछ निशान छोड़ जाती है
जो देर तक बने रहते हैं
स्मृतियों के घेरे में
यादों के, रिश्तों के,
सम्बन्धों के,
अपने-परायों के
प्रेम-प्यार के
जो उम्र के साथ
ढलते हैं, बदलते हैं
और अन्त में
कितने तो मिट जाते हैं
मेंहदी के रंगों की तरह।
जैसे हम नहीं जानते
जीवन में
कब हरीतिमा होगी,
कब पतझड़-सा पीलापन
और कब छायेगी फूलों की लाली।
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सरस-सरस लगती है ज़िन्दगी।
जल सी भीगी-भीगी है ज़िन्दगी।
कहीं सरल, कहीं धीमे-धीमे
आगे बढ़ती है ज़िन्दगी।
तरल-तरल भाव सी
बहकती है ज़िन्दगी।
राहों में धार-सी बहती है ज़िन्दगी।
चलें हिल-मिल
कितनी सुहावनी लगती है ज़िन्दगी।
किसी और से क्या लेना,
जब आप हैं हमारे साथ ज़िन्दगी।
आज भीग ले अन्तर्मन,
कदम-दर-कदम
मिलाकर चलना सिखाती है ज़िन्दगी।
राहें सूनी हैं तो क्या,
तुम साथ हो
तब सरस-सरस लगती है ज़िन्दगी।
आगे बढ़ते रहें
तो आप ही खुलने लगती हैं मंजिलें ज़िन्दगी।
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सबकी ही तो हार हुई है
जब भी तकरार हुई है
सबकी ही तो हार हुई है।
इन राहों पर अब जीत कहां
बस मार-मारकर ही तो बात हुई है।
हाथ मिलाने निकले थे,
क्यों मारा-मारी की बात हुई है।
बात-बात में हो गई हाथापाई,
न जाने क्यों
हाथ मिलाने की न बात हुई है।
समझ-बूझ से चले है दुनिया,
गोला-बारी से तो
इंसानियत बरबाद हुई है।
जब भी युद्धों का बिगुल बजा है,
पूरी दुनिया आक्रांत हुई है।
समझ सकें तो समझें हम,
आयुधों पर लगते हैं अरबों-खरबों,
और इधर अक्सर
भुखमरी-गरीबी पर बात हुई है।
महामारी से त्रस्त है दुनिया
औषधियां खोजने की बात हुई है।
चल मिल-जुलकर बात करें।
तुम भी जीओ, हम भी जी लें।
मार-काट से चले न दुनिया,
इतना जानें, तब आगे बढ़े है दुनिया।