कर्म कर और फल की चिन्ता कर

कहते हैं,

कहते क्या हैं

सुना है मैंने,

न-न

पता नहीं

कितनी पुस्तकों में

पढ़ा और गुना है मैंने।

बहुत समय पहले

कोई आये थे

और कह गये

कर्म किये जा

फल की चिन्ता मत कर।

पता नहीं

उन्होंने ऐसा क्यों कहा

मैं आज तक

समझ नहीं पाई।

अब आम का पेड़ बोयेंगे

तो आम तो देखने पड़ेंगे।

वैसे भी

किसी और ने भी तो कहा है

कि बोया पेड़ बबूल का

तो आम कहां से पाये।

 

सब बस कहने की ही बाते हैं

 

जो फल की चिन्ता नहीं करते

वे कर्म की भी चिन्ता नहीं करते

 

ज़माना बदल गया है

युग नया है

मुफ्तखोरी की आदत न डाल

कर्म कर और फल

के लिए खाद-पानी डाल

पेड़ पर चढ़

पर डाल न काट।

उपर बैठकर न देख

जमीनी सच्चाईओं पर उतर

कर्म कर पर फल न पाकर

हार न मान।

बस कर्म कर और

फल की चिन्ता कर।