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चल सावन की घटाओं को हेर फेर घेर लें हम
जैसा मन आये वैसे ही मन की बात टेर लें हम
कभी हरा, कभी सूखा कभी फुहार तो कभी बहार
प्यार, मनुहार, इकरार, जैसे भी उनको घेर लें हम
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चेहरा गुलाल हुआ
यादों में उनकी चेहरा गुलाल हुआ
मन की बात कही नहीं, मलाल हुआ
राग बेसुरे हो गये, साज़ बजे नहीं
प्यार करना ही जी का जंजाल हुआ
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मेरे बारे में क्या लिखेंगे लोग
अक्सर
अपने बारे में सोचती हूं
मेरे बारे में
क्या लिखेंगे लोग।
हंसना तो आता है मुझे
पर मेरी हंसी
कितनी खुशियां दे पाती है
किसी को,
यही सोच कर सोचती हूं,
कुछ ज्यादा अच्छा नहीं
मेरे बारे में लिखेंगे लोग।
ज़िन्दगी में उदासी तो
कभी भी किसी को सुहाती नहीं,
और मैं जल्दी मुरझा जाती हूं
पेड़ से गिरे पत्तों की तरह।
छोटी-छोटी बातों पर
बहक जाती हूं,
रूठ जाती हूं,
आंसूं तो पलकों पर रहते हैं,
तब
मेरे बारे में कहां से
कुछ अच्छा लिखेंगे लोग।
सच बोलने की आदत है बुरी,
किसी को भी कह देती हूं
खोटी-खरी,
बेबात
किसी को मनाना मुझे आता नहीं
अकारण
किसी को भाव देना मुझे भाता नहीं,
फिर,
मेरे बारे में कहां से
कुछ अच्छा लिखेंगे लोग।
अक्सर अपनी बात कह पाती नहीं
किसी की सुननी मुझे आती नहीं
मौसम-सा मन है,
कभी बसन्त-सा बहकता है,
पंछी-सा चहकता है,
कभी इतनी लम्बी झड़ी
कि सब तट-बन्ध टूटते है।
कभी वाणी में जलाती धूप से
शब्द आकार ले लेते हैं
कभी
शीत में-से जमे भाव
निःशब्द रह जाते हैं।
फिर कैसे कहूं,
कि मेरे बारे में
कुछ अच्छा लिखेंगे लोग।
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आदरणीय शिव जी पर एक रचना
कुछ कथाएं
मुझे कपोल-कल्पित लगती हैं
एक आख्यान
किसी कवि-कहानीकार की कल्पना
किसी बीते युग का
इतिहास का पुर्नआख्यन,
कहानी में कहानी
कहानी में कहानी और
फिर कहानी में कहानी।
जाने-अनजाने
घर कर गई हैं हमारे भीतर
इतने गहरे तक
कि समझ-बूझ से परे हो जाती हैं।
** ** ** **
भूत-पिचाश हमारे भीतर
बुद्धि पर भभूत चढ़ी है,
विषधर पाले अपने मन में
नर-मुण्डों-सा भावहीन मन है।
वैरागी की बातें करते
लूट-खसोट मची हुई है।
आंख-कान सब बंद किये हैं
गौरी, सुता सब डरी हुई हैं।
त्रिपुरारी, त्रिशूलधारी की बातें करते
हाथों में खंजर बने हुए हैं।
गंगा की तो बात न करना
भागीरथी रो रही है।
डमरू पर ताण्डव करते
यहां सब डरे हुए हैं।
** ** ** **
फिर कहते
शिव-शिव, शिव-शिव,
शिव-शिव, शिव-शिव।
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अस्त होते सूर्य को नमन करें
हार के बाद भी जीत मिलती है
चलो आज हम अस्त होते सूर्य को नमन करें
घूमकर आयेगा, तब रोशनी देगा ही, मनन करें
हार के बाद भी जीत मिलती है यह जान लें,
न डर, बस लक्ष्य साध कर, मन से यत्न करें
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मेरा नाम श्रमिक है
कहते हैं
पैरों के नीचे
ज़मीन हो
और सिर पर छत
तो ज़िन्दगी
आसान हो जाती है।
किन्तु
जिनके पैरों के नीचे
छत हो
और सिर पर
खुला आसमान
उनका क्या !!!
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जल की बूंदों का आचमन कर लें
सावन की काली घटाएं मन को उजला कर जाती हैं
सावन की झड़ी मन में रस-राग-रंग भर जाती है
पत्तों से झरते जल की बूंदों का आचमन कर लें
सावन की नम हवाएं परायों को अपना कर जाती हैं
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दिमाग़ की बत्ती गुल पड़ी है
मैं भाषण देता हूं
मैं राशन देता हूं
मैं झाड़ू देता हूं
मैं पैसे देता हूं
रोटी दी मैंने
मैंने गैस दिया
पहले कर्ज़ दिये
फिर सब माफ़ किया
टैक्स माफ़ किये मैंने
फिर टैक्स लगाये
मैंने दुनिया देखी
मैंने ढोल बजाये
नये नोट बनाये
अच्छे दिन मैं लाया
सारी दुनिया को बताया
ये बेईमानों का देश था,
चोर-उचक्कों का हर वेश था
मैंने सब बदल दिया
बेटी-बेटी करते-करते
लाखों-लाखों लुट गये
पर बेटी वहीं पड़ी है।
सूची बहुत लम्बी है
यहीं विराम लेते हैं
और अगले पड़ाव पर चलते हैं।
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चुनावों का अब बिगुल बजा
किसका-किसका ढोल बजा
किसको चुन लें, किसको छोड़ें
हर बार यही कहानी है
कभी ज़्यादा कभी कम पानी है
दिमाग़ की बत्ती गुल पड़ी है
आंखों पर पट्टी बंधी है
बस बातें करके सो जायेंगे
और सुबह फिर वही राग गायेंगे।
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कुछ सपने
भाव भी तो लौ-से दमकते हैं
कभी बुझते तो कभी चमकते हैं
मन की बात मन में रह जाती है
कुछ सपने आंखों में ही दरकते हैं
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प्रकृति के प्रपंच
प्रकृति भी न जाने कहां-कहां क्या-क्या प्रपंच रचा करती है
पत्थरों को जलधार से तराश कर दिल बना दिया करती है
कितना भी सजा संवार लो इस दिल को रंगीनियों से तुम
बिगड़ेगा जब मिज़ाज उसका, पल में सब मिटा दिया करती है
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मन हर्षाए बादल
बिन मौसम आज आये बादल
कड़क-कड़क यूँ डराये बादल
पानी बरस-बरस मन भिगाये
शाम सुहानी, मन हर्षाए बादल