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चल री सखी
आज झूला झूलें,
कभी धरा
तो कभी
गगन को छू लें,
डोर हमारी अपने हाथ
जहां चाहे
वहां घूमें।
चिन्ताएं छूटीं
बाधाएं टूटीं
सखियों संग
हिल-मिल मन की
बातें हो लीं,
कुछ गीत रचें
कुछ नवगीत रचें,
मन के सब मेले खेंलें
अपने मन की खुशियां लें लें।
नव-श्रृंगार करें
मन से सज-संवर लें
कुछ हंसी-ठिठोली
कुछ रूसवाई
कभी मनवाई हो ली।
मेंहदी के रंग रचें
फूलों के संग चलें
कभी बरसे हैं घन
कभी तरसे है मन
आशाओं के दीप जलें
हर दिन यूं ही महक रहे
हर दिन यूं ही चहक रहे।
चल री सखी
आज झूला झूलें
कभी धरा
तो कभी
गगन को छू लें।
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More Articles
छोटी-छोटी बातों पर
छोटी-छोटी बातों पर
अक्सर यूँ ही
उदासी घिर आती है
जीवन में।
तब मन करता है
कोई सहला दे सर
आँखों में छिपे आँसू पी ले
एक मुस्कुराहट दे जाये।
पर सच में
जीवन में
कहाँ होता है ऐसा।
-
आ गया है
अपने-आपको
आप ही सम्हालना।
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अकारण क्यों हारें
राहों में आते हैं कंकड़-पत्थर, मार ठोकर कर किनारे।
न डर किसी से, बोल दे सबको, मेरी मर्ज़ी, हटो सारे।
जो मन चाहेगा, करें हम, कौन, क्यों रोके हमें यहां।
कर्म का पथ कभी छोड़ा नहीं, फिर अकारण क्यों हारें।
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चाहतों का अम्बार दबा है
मन के भीतर मन है, मन के भीतर एक और मन
खोल खोल कर देखती हूं कितने ही तो हो गये मन
इस मन के किसी गह्वर में चाहतों का अम्बार दबा है
किसको रखूं, किसको छोड़ूं नहीं बतलाता है रे मन।
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कोरोनामय वातावरण में मानसिकता
एक बात समझ नहीं पा रही हूं। जब से कोरोना या कोविड -19 आया है, पहले की तरह साधारण बुखार, वायरल, गला खराब, खांसी-जुकाम होना बन्द हो गया है क्या? मौसम बदलने पर, बारिश में भीगने पर, सर्दी लग जाने पर, ज़्यादा धूप में घूमने या लू लग जाने पर, ए सी या कूलर की सीधी हवा लग जाने से उक्त समस्याएं हो जाती थीं। अब क्या ये सब बन्द हो गई हैं, सीधा कोरोना ही होता है क्या? आजकल चिकित्सकों की बात से तो ऐसा ही लगता है। घर में किसी को इनमें से कोई समस्या होने पर किसी चिकित्सक को फोन कीजिए कि एक-दो दिन से बुखार है अथवा उक्त सारी समस्याओं में से कोई समस्या है। सीधा दो टूक उत्तर मिलता है कोरोना टैस्ट करवा लीजिए।
नहीं डाक्टर ऐसी बात नहीं है।
डाक्टर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं।
नहीं पहले आप कोरोना टैस्ट करवा लीजिए, फिर देखेंगे।
लेकिन डाक्टर, उसमें तो दो दिन लग जायेंगे, बुखार तो तेज़ है।
तो ठीक है ये दो गोली नोट कर लीजिए, 100 बुखार होने तक पहली गोली दे देना दिन में एक बार। 101 से ज़्यादा होने पर पी सी एम दे देना।
मिलते-जुलते उत्तर ही मिलते हैं।
अब मान लीजिए 1 तारीख को बुखार हुआ। हर कोई पहले तो घर में ही रखी पी सी एम या क्रोसीन ले लेता है। दूसरे दिन बुखार न उतरने पर डाक्टर को फोन किया। डाक्टर का उत्तर आपने पढ़ लिया। तीसरे दिन टैस्ट करवाया। पांचवें दिन रिपोर्ट मिली। नैगेटिव।
डाक्टर ने नैगेटिव रिपोर्ट की बात सुनकर कहा, चलो ठीक है, आप बुखार की ये दवाई ले लीजिए।
किन्तु वे पांच दिन कितने भारी थे, उन पांच दिन में बुखार बिगड़कर कोई भी रूप ले लेता है, कोरोना का नहीं। क्या उन पांच दिन के लिए साधारण बुखार की या वायरल की दवाई नहीं दी जा सकती थी, मैं तो डाक्टर नहीं हूं। कोई बतायेगा क्या?
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अपने भीतर झांक
नदी-तट पर बैठ
करें हम प्रलाप
हो रहा दूषित जल
क्या कर रही सरकार।
भूल गये हम
जब हमने
पिकनिक यहां मनाई थी
कुछ पन्नियां, कुछ बोतलें
यहीं जल में बहाईं थीं
कचरा-वचरा, बचा-खुचा
छोड़ वहीं पर
मस्ती में
हम घर लौटे थे।
साफ़-सफ़ाई पर
किश्तीवाले को
हमने खूब सुनाई थी।
फिर अगले दिन
नदियों की दुर्दशा पर
एक अच्छी कविता-कहानी
बनाई थी।
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कोई हमें क्यों रोक रहा
आँख बन्द कर सोने में मज़ा आने लगता है।
बन्द आँख से झांकने में मज़ा आने लगता है।
पकी-पकाई मिलती रहे, मुँह में ग्रास आता रहे
कोई हमें क्यों रोक रहा, यही खलने लगता है
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गूगल गुरू घंटाल
कम्प्यूटर जी गुरू हो गये, गूगल गुरू घंटाल
छात्र हो गये हाई टैक, गुरू बैठै हाल-बेहाल
नमन करें या क्लिक करें, समझ से बाहर बात
स्मार्ट बोर्ड, टैबलैट,पी सी, ई पुस्तक में उलझे
अपना ज्ञान भूलकर, घूम रहे, ले कंधे बेताल
आॅन-लाईन शिक्षा बनी यहाँ जी का जंजाल
लैपटाॅप खरीदे नये-नये, मोबाईल एंड््रायड्
गूगल बिन ज्ञान अधूरा यह ले अब तू जान
गुरुओं ने लिंक दिये, नैट ने ले लिए प्राण
रोज़-रोज़ चार्ज कराओ, बिल ने ले ली जान
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भोर की आस
चिड़िया आई
कहती है
भोर हुई,
उठ जा, भोर हुई।
आ मेरे संग
चल नये तराने गा,
रंगों से
मन में रंगीनीयाँ ला।
चल
एक उड़ान भर
मन में उमंग ला।
धरा पर पाँव रख।
गगन की आस रख।
जीवन में भाव रख।
रात की बात कर
भोर की आस रख।
चल मेरे संग उड़ान भर।
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विश्वास का एहसास
हर दिन रक्षा बन्धन का-सा हो जीवन में
हर पल सुरक्षा का एहसास हो जीवन में
कच्चे धागों से बंधे हैं जीवन के सब रिश्ते
इन धागों में विश्वास का एहसास हो जीवन में
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रोशनी की एक लकीर
राहें कितनी भी सूनी हों
अंधेरे कितने भी गहराते हों
वक्त के किसी कोने से
रोशनी की एक लकीर
कभी न कभी,
ज़रूर निकलती ही है।
फिर वह एक रेखा हो,
चांद का टुकड़ा
अथवा चमकता सूरज।
इसलिए कभी भी
निराश न होना
अपने जीवन के सूनेपन से
अथवा अंधेरों से
और साथ ही
ज़रूरत से ज़्यादा रोशनी से भी ।